महाराणा प्रताप का जीवन परिचय I Maharana Pratap Biography: महाराणा प्रताप भारत के सबसे महान राजपूत योद्धाओं में से एक थे। मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा महाराणा प्रताप से ही मिलती है। महाराणा प्रताप उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत वंश के राजा थे।
महाराणा प्रताप का जन्म
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग के (बादल महल) में हुआ था। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
- महाराणा प्रताप का जन्म – 9 मई, 1540 (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, विक्रम संवत् 1597, रविवार)
- जन्म स्थान – बादल महल (कटारगढ़) कुंभलगढ़ दुर्ग
- पिता का नाम: महाराणा उदय सिंह
- माता का नाम: जैवन्ताबाई (पाली के सोनागरा अखैराज की पुत्री)
- विवाह – 1557 ई. में अजबदे पँवार के साथ हुआ।
- पुत्र – अमरसिंह
- शासनकाल – 1572-1597 ई.
- उपनाम – 1. ‘कीका’ (मेवाड़ के पहाड़ी प्रदेशों में) 2. मेवाड़ केसरी 3. हिन्दुआ सूरज
- महाराणा प्रताप का घोड़ा – चेतक
- महाराणा प्रताप का हाथी – रामप्रसाद व लूणा
महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका था।
महाराणा प्रताप बचपन से ही कर्तृत्ववान और प्रतिभाशाली थे। महाराणा प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ बीता, भील अपने पुत्र को कीका कहकर पुकारते है इसलिए महाराणा को कीका नाम से भी जाना जाता है।
NOTE: राणा उदयसिंह की दूसरी रानी धीरबाई जिसे राज्य के इतिहास में रानी भटियाणी के नाम से जाना जाता है, वे अपने पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी। प्रताप केे उत्तराधिकारी होने पर उसकेे विरोध स्वरूप जगमाल अकबर केे खेमे में चला जाता है।
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महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
- प्रथम राज्याभिषेक – 28 फरवरी, 1572 को महादेव बावड़ी (गोगुन्दा)
- विधिवत् राज्याभिषेक – कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ जिसमें मारवाड़ के राव चन्द्रसेन सम्मिलित हुए।
- महाराणा प्रताप 32 वर्ष की अवस्था में कुंभलगढ़ दुर्ग के शासन पर बैठे।
राजमहल की क्रांति – उदयसिंह ने जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था लेकिन मेवाड़ के सामन्तों ने जगमाल को हटाकर महाराणा प्रताप को शासक बनाया, यह घटना ‘राजमहल की क्रांति’ कहलाती है।
मुगलों से संघर्ष के लिए महाराणा प्रताप ने वीर सामन्तों तथा भीलों को एकजुट किया और उन्हें सैन्य व्यवस्था में उच्च पद देकर उनके सम्मान को बढ़ाया। गोपनीय तरीके से युद्ध का प्रबंध करने के लिए प्रताप ने अपना निवास स्थान गोगुन्दा से कुंभलगढ़ स्थानान्तरित कर दिया।
अकबर द्वारा महाराणा प्रताप के पास भेजे गए 4 संधि प्रस्तावक/शिष्ट मण्डल
- जलाल खाँ कोरची – नवम्बर, 1572
- मानसिंह – जून, 1573
- भगवन्तदास – अक्टूबर, 1573
- टोडरमल – दिसम्बर, 1573
हल्दीघाटी का युद्ध (राजसमन्द) : 18 जून, 1576
- वर्ष 1576 की शुरुआत में अकबर मेवाड़ पर आक्रमण की तैयारी हेतु अजमेर आया और यहीं पर मानसिंह को इस युद्ध का नेतृत्व सौंपा।
- अकबर ने युद्ध की व्यूह रचना मैगजीन दुर्ग में रची थी।
- मुगल सेना का प्रधान सेनानायक – मिर्जा मानसिंह (आमेर) सहयोगी सेनानायक – आसफ खाँ
- महाराणा प्रताप की हरावल सेना का नेतृत्व – हकीम खाँ सूर। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले हकीम खाँ सूरी एकमात्र मुस्लिम सरदार थे।
- चंदावल सेना का नेतृत्व – महाराणा पूँजा
- मुगल सेना के हरावल भाग का नेतृत्व – सैय्यद हाशिम
- मुगल पक्ष – मुहम्मद बदख्शी रफी, राजा जगन्नाथ और आसफ खाँ
- इतिहासकार बदायूँनी युद्ध में मुगल सेना के साथ उपस्थित था।
- हकीम खाँ सूर के नेतृत्व में राजपूतों ने पहला वार इतना भयंकर किया कि मुगल सेना भाग खड़ी हुई। उसी समय मुगलों की आरक्षित सेना के प्रभारी मिहत्तर खाँ ने यह झूठी अफवाह फैलाई कि – “बादशाह अकबर स्वयं शाही सेना लेकर आ रहे हैं।”
- यह सुनकर मुगल सेना फिर युद्ध के लिए आगे बढ़ी। मेवाड़ की सेना भी ‘रक्तताल’ नामक मैदान में आ डटी।
- युद्ध में महाराणा प्रताप के लूणा व रामप्रसाद और अकबर के गजमुक्ता व गजराज हाथियों के मध्य युद्ध हुआ। रामप्रसाद हाथी को मुगलों ने अपने अधिकार में ले लिया जिसका बाद में अकबर ने नाम बदलकर ‘पीरप्रसाद’ कर दिया।
- महाराणा प्रताप ने पठान बहलोल खाँ पर ऐसा प्रहार किया कि उसके घोड़े सहित दो टुकड़े हो गए।
- युद्ध में चेतक घोड़े पर महाराणा प्रताप और मर्दाना हाथी पर सवार मानसिंह का प्रत्यक्ष आमना-सामना हुआ। प्रताप ने भाले से मानसिंह पर वार किया लेकिन मानसिंह बच गया। इस दौरान चेतक हाथी के प्रहार से घायल हो गया। मुगल सेना ने प्रताप को चारों ओर से घेर लिया।
- महाराणा प्रताप के घायल होने पर झाला बीदा ने राजचिह्न धारण किया तथा युद्ध लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की।
- युद्ध में हाथी के वार से घायल महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की एक नाले को पार करने के बाद मृत्यु हो गई।
- बलीचा गाँव में घोड़ेचेतक की समाधि बनी हुई है।
- ‘अमरकाव्य वंशावली’ नामक ग्रंथ तथा राजप्रशस्ति के अनुसार यहाँ महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह ने प्रताप से मिलकर अपने किए की माफी माँगी।
- हल्दीघाटी युद्ध अनिर्णीत रहा। अकबर महाराणा प्रताप को बंदी बनाने में विफल रहा। युद्ध के परिणाम से नाराज अकबर ने मानसिंह और आसफ खाँ की ड्योढ़ी बंद कर दी।
- बदायूँनी कृत ‘मुन्तखब-उत्त-तवारीख’ में हल्दीघाटी युद्ध का वर्णन किया।
- इस युद्ध को अबुल-फजल ने ‘खमनौर का युद्ध’, बदायूँनी ने ‘गोगुन्दा का युद्ध’ तथा कर्नल टॉड ने ‘हल्दीघाटी का युद्ध’ कहा।
- राजसमन्द में प्रत्येक वर्ष ‘हल्दीघाटी महोत्सव’ मनाया जाता है।
- महाराणा प्रताप ने ‘आवरगढ़’ में अपनी अस्थाई राजधानी स्थापित की।
- फरवरी, 1577 में अकबर खुद मेवाड़ अभियान पर आया लेकिन असफल रहा।
- अक्टूबर, 1577 से नवम्बर, 1579 तक शाहबाज खाँ ने तीन बार मेवाड़ पर असफल आक्रमण किया।
- 3 अप्रैल, 1578 को शाहबाज खाँ ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर अधिकार किया।
- महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ दुर्ग पर पुन: अधिकार कर भाण सोनगरा को किलेदार नियुक्त किया।
- भामाशाह (पाली) ने महाराणा प्रताप की आर्थिक सहायता की थी। मेवाड़ का उद्धारक व दानवीर – भामाशाह को कहा जाता है।
1580 में अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को प्रताप के विरुद्ध भेजा। कुँवर अमरसिंह ने शेरपुर के मुगल शिविर पर आक्रमण कर खानखाना के परिवार की महिलाओं को बंदी बना लिया। यह सूचना जब महाराणा प्रताप को मिली तो उन्होंने तुरन्त मुगल महिलाओं को सम्मानपूर्वक वापस भेजने का आदेश दिया।
स्वभूमिध्वंस की नीति: महाराणा प्रताप ने स्वभूमिध्वंस नीति अपनाकर मुग़ल थानों के आसपास की भूमि पर किसानों को अन्न उगाने के लिए मना कर दिया। जिससे मुग़ल सैनिक भूखों मरने लगे। छापामार युद्ध के कारण सूरत के बंदरगाह से फारस की खाड़ी व यूरोप में होने वाला मुगलों का व्यापार ठप पड़ने लगा।
दिवेर का युद्ध (अक्टूबर, 1582):
- कुँवर अमरसिंह ने अकबर के काका सेरिमा सुल्तान का वध कर दिवेर पर अधिकार किया।
- कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को ‘प्रताप के गौरव का प्रतीक’ और ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहा।
- 5 दिसम्बर, 1584 को अकबर ने आमेर के भारमल के छोटे पुत्र जगन्नाथ कच्छवाहा को प्रताप के विरुद्ध भेजा। जगन्नाथ भी असफल रहा। जगन्नाथ की माण्डलगढ़ में मृत्यु हो गई।
- जगन्नाथ कच्छवाहा की ’32 खम्भों की छतरी’ – माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित है।
- महाराणा प्रताप ने बदला लेने के लिए आमेर क्षेत्र के मालपुरा को लूटा और झालरा तालाब के निकट ‘नीलकंठ महादेव मंदिर’ का निर्माण करवाया।
- 1585 ई. से 1597 ई. के मध्य प्रताप ने चित्तौड़ एवं माण्डलगढ़ को छोड़कर शेष सम्पूर्ण राज्य पर पुन: अधिकार कर लिया था.
- 1585 ई. में लूणा चावण्डिया को पराजित कर प्रताप ने चावण्ड पर अधिकार किया तथा इसे अपनी नई राजधानी बनाया.
- चावण्ड में प्रताप ने ‘चामुण्डा माता’ का मंदिर बनवाया।
- चावण्ड 1585 से अगले 28 वर्षों तक मेवाड़ की राजधानी रहा।
महाराणा प्रताप की मृत्यु
1597 में धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय प्रताप को गहरी चोट लगी। जो उनकी मृत्यु का कारण बनी। और 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई। ‘एक सच्चे राजपूत, शूरवीर, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हो गए।
चावंड से कुछ दूर बांडोली गांव के निकट महाराणा का अग्नि संस्कार हुआ।
महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी – बांडोली (उदयपुर) में खेजड़ बाँध की पाल पर।
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प्रताप की मृत्यु पर अकबर के दरबार में उपस्थित कवि दुरसा आढ़ा ने एक दोहा सुनाया
- गहलोत राणो जीत गयो दसण मूंद रसणा डसी। नीलास मूक भरिया नयन तो मृत शाह प्रताप सी।
महाराणा प्रताप के संदर्भ में कर्नल टॉड ने लिखा – “आलप्स पर्वत के समान अरावली में कोई भी ऐसी घाटी नहीं, जो प्रताप के किसी न किसी वीर कार्य, उज्ज्वल विजय या उससे अधिक कीर्तियुक्त पराजय से पवित्र न हुई हो। हल्दीघाटी ‘मेवाड़ की थर्मोपल्ली’ और दिवेर ‘मेवाड़ का मैराथन’ है।“
प्रताप के बारे में कहा गया है कि –
“पग-पग भम्या पहाड़, धरा छोड़ राख्यो धरम।
महामहाराणा मेवाड़, हिरदे बसया हिन्द रे। ”
प्रताप कालीन रचनाएँ
- दरबारी पंडित चक्रपाणि मिश्र – विश्ववल्लभ, मुहूर्तमाला, व्यवहारादर्श व राज्याभिषेक पद्धति।
- जैन मुनि हेमरत्न सूरी – गोरा-बादल, पद्मिनी चरित्र चौपाई, महिपाल चौपाई, अमरकुमार चौपाई, सीता चौपाई, लीलावती
महाराणा प्रतापप्रताप द्वारा निर्मित मंदिर
- 1. चामुण्डा देवी (चावण्ड)
- 2. हरिहर मंदिर (बदमहाराणा)
- चित्रकला – चावण्ड शैली का जन्म ▪प्रमुख चित्रकार – निसारुद्दीन
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