राजस्थान के लोक देवता रामदेव जी: नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेव जी (Lok Devta Baba Ramdev ji ), बाबा रामदेव जी के इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।
Lok Devta Baba Ramdev ji
रामदेवजी लोकदेवताओं मे एक प्रमुख अवतारी पुरूष है। समाज सुधारक के रूप में रामदेवजी ने मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा व जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया।
राजस्थान के पंचपीर– पाबूजी , हड़बूजी , रामदेव जी , मांगलिया व मेहाजी। |
बाबा रामदेव का जीवन परिचय
- रामदेवजी का ज़न्म बाडमेर के शिव तहसील के ऊडकासमेर गाँव में भाद्रपद शुक्ल दूज (द्वितीया) को हुआ था।
- रामदेव जी के पिता का नाम अजमाल जी (तंवर वंशीय) तथा माता का नाम मैणादे था।
- ये अर्जुन के वंशज माने जाते है
- रामदेव जी ‘रामसा पीर’, ‘रूणीचा रा धणी’, “बाबा रामदेव’, आदि उपनामों से भी जाने जाते है।
- रामदेव जी का विवाह अमरकोट (वर्तमान पाकिस्तान मे) सोढा, दलैसिंह की सुपुत्री नैतलदे/निहालदे के साथ हुआ।
- रामदेवजी के गुरू का नाम बालीनाथ था।
- इनके भाई का नाम बीरमदे था।
- रामदेव जी को ‘मल्लीनाथ जी’ के समकालीन माना जाता है। मल्लीनाथ जी ने रामदेव जी को पोकरण का इलाका दिया था। उसके बाद रामदेव जी ने पोकरण को अपनी भतीजी के विवाह में दहेज में दे दिया था।
- रामदेवजी ने पश्चिम भारत में मतान्तरण व्यवस्था को रोकने हेतु प्रभावी भूमिका निभाई थी।
- भैरव राक्षस, लखी बंजारा, रत्ना राईका का सम्बन्ध रामदेवजी से था।
- यूरोप की क्रांति से बहुत पहले रामदेवजी द्वारा हिन्दू समाज को दिया गया संदेश समता और बंधुत्व था।
बाल्यकाल
- तंवर वंशीय अजमालजी और मैणादे के पुत्र रामदेवजी का जन्म बाड़मेर जिले की शिव तहसील के ऊँडूकासमेर गाँव में हुआ था।
- इन्हें मल्लीनाथजी के समकालीन माना जाता है। बालयवस्था में ही सातलमेर (पोकरण) क्षेत्र मल्लीनाथजी से प्राप्त करने के पश्चात् भैरव नामक क्रूर व्यक्ति का अंत करके वहाँ के लोगों को अराजकता व आतंक मुक्त किया था।
रामदेव जी के भक्त
- रामदेव जी के मेघवाल जाति के भक्त रिखिया कहलाते हैं ।
- हिन्दू रामदेव जी को कृष्ण का अवतार मानकर तथा मुसलमान ‘रामसा पीर’ के रूप में इनको पूजते है ।
- रामदेवजी के प्रिय भक्त यात्री जातरू कहलाते है ।
- रामदेवजी द्वारा शोषण के विरूद चलाया जन-जागरण अभियान जाम्मा-जागरण कहलाता है ।
- रामदेवजी की फड़ का वाचन कामड़ जाति के भोपा द्वारा ‘रावणहत्था’ के साथ किया जाता है।
प्रतीक चिन्ह
- रामदेव जी के भक्त इन्हें कपडे का बना घोडा चढाते है।
- रामदेव जी का वाहन नीला घोडा था।
- रामदेव जी के प्रतीक चिन्ह के रूप में पगलिये (चरण चिन्ह) बनाकर पूजे जाते है ।
रामदेव मेला Ramdevra, Rajasthan
- रामदेवरा (रूणेचा) जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील में रामदेव जी का समाधि स्थल है।
- यहाँ रामदेव का भव्य मंदिर है तथा भाद्रपद , शुक्ल द्वितीया‘ बाबे री बीज’ (दूज) से एकादशी तक मेला भरता है।
- रामदेव जी के मंदिरों को ‘ देवरा ‘ कहा जाता है, जिन पर श्वेत या 5 रंगों की ध्वजा, ‘ नेजा ‘ फहराई जाती है।
- रामदेवजी का मेला साम्प्रदायिक सदभाव का सबसे बडा मेला है। रामदेवजी ने अपनी योग साधना के बल पर तांत्रिक भैरव का वध करके पोकरण क्षेत्र के आसपास के लोगों को उससे मुक्ति दिलवाई थी।
- लोकदेवताओं में सबसे लम्बे गीत रामदेवजी के गीत है।
- रामदेवजी के मेले का आकर्षण तेरहताली नृत्य है, जिसे कामडिया लोग प्रस्तुत करते है।
- रामदेव जी के नाम पर भाद्रपद द्वितीया व एकादशी को रात्रि जागरण किया जाता है, जिसे ‘ जम्मा ‘ कहते है ।
रामदेवजी के मंदिर
- जोधपुर के पश्चिम में मसूरियां पहाडी , बिराटियां (पाली) , सूरताखेड़ा (चित्तौड़) तथा छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है।
- ‘रामसरोवर की पाल’ (रूणेचा) में समाधि ली तथा इनकी धर्म-बहिन ‘डाली जाई’ ने यहाँ पर उनकी आज्ञा से एक दिन पहले जलसमाधि ली थी। डाली बाईं का मंदिर इनकी समाधि के समीप स्थित है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- रामदेव जी ने परावर्तन नाम से एक शुद्धि अन्दोलन चलाया जो मुसलमान मने हिन्दुओं की शुद्धि कर उन्हें पुन हिन्दू धर्म में दीक्षित करना था।
- अजमाल की पत्नी मैणादे के श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से दो पुत्र बीरमदे और रामदेव पैदा हुए।
- भगवान द्वारिकाधीश की तपस्या के फलस्वरूप जन्म लेने के कारण ‘लोक-कथाओं में दोनों भाईयों को बलराम और कृष्ण का अवतार माना गया है।
- रामदेव जी हड़बूजी और पाबूजी के समकालीन थे।
- मेघवाल जाति की कन्या डालीबाईं को रामदेव जी ने धर्म-बहिन बनाया था। डालीबाईं ने रामेदव जी के समाधि लेने से एक दिन पूर्व समाधि ग्रहण की थी।
- रामदेव जी की सगी बहिन का नाम सुगना बाईं था।
- सुगना बाई का विवाह पुगलगढ़ के पडिहार राव विजय सिंह से हुआ। बीकानेर, जैसलमेर में रामदेवजी की फड़ ब्यावले भक्तों द्वारा बांची जाती है।
- रामदेवजी ने मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा में अविश्वास प्रकट किया तथा जाति प्रथा का विरोध करते हुए वे हरिजनों को गले का हार, मोती और मूंगा बताते है।
- रामदेव जी के द्वारा दिखाए गये चमत्कारो को ‘पर्चा’ कहा जाता है। मक्का से आए हुए पाँच पीरों द्वारा जब रामदेव जी के चमत्कारों को येखा तो कहा – ‘मैं तो केवल पीर हाँ और थे पीरा का पीर’। रामदेव जी द्वारा इन पाँच पीरो को पर्चा (चमत्कार) को पंचपीपली नामक स्थान पर दिया था यह स्थान रामदेवरा से 12 कि.मी. दूर सिथत है।
- पंचपीपली में एक बावड़ी स्थित है जिसे ‘पर्चा बावड़ी’ कहा जाता है।
NOTE- रामदेव जी ही एक मात्र ऐसे देवता है, जौ एक कवि भी थे। इनकी रचना ‘ चौबीस वाणियां ‘ प्रसिद्ध है। |
रामदेवजी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
अन्य नाम | रामसापीर(मुस्लिम समाज), रूणेचा का धणी |
जन्म | विक्रम सवत् 1462 (1405 ई.) |
जन्म स्थान | ऊँडूकासमेर(बाड़मेर) |
पिता | अजमल जी |
माता | मैणा दे |
पत्नी | नेतल-दे |
धर्म- बहन | मेघावल जाति की डालीबाई |
सगी बहिन | सुगना बाईं |
गुरू | बालिनाथ |
कुल | तंवर वंश |
घोड़ा | नीला |
पूजा प्रतीक | पगलिये पंचरंगी ध्वजा – नेजा |
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