राजस्थान के लोक देवता पाबूजी: Pabu ji

राजस्थान के लोक देवता पाबूजी: Pabu ji – नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान के लोक देवता पाबूजी( Lok Devta Pabu ji), के इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

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Lok Devta Pabu ji

पाबूजी उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने लोक कल्याण के लिए अपना सारा जीवन दाँव पर लगा दिया। पाबूजी को लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। मेहरजाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते है| इन्हे ऊंटों का देवता भी कहा जाता है। मारवाड़ में ऊँट लाने का श्रेय इन्ही को है। ऊँट के बीमार होने पे इनकी पूजा की जाती है। रायका/ रेबारी जाति इन्हें अपना आराध्यदेव मानती है। साथ ही ये समाजसेवक भी थे, ‘नैणसी री ख्यात’ से पता चलता है की म्लेच्छ समझी जाने वाली थोरी जाति के सात भाइयों को इन्होने न केवल आश्रय दिया, वरन उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान दिलवाने का प्रयास किया। इनके मुख्य अनुयायी ‘थोरी, जाती के लोग है। जो ‘पाबूजी री फड़’ और ‘पाबूजी रा पावड़ा’ गाकर इनका सन्देश घर-घर पहुंचते है।

पाबूजी का जीवन परिचय

  • राठौङ राजवंश के पाबूजी राठौड़ का जन्म 1239 ईस्वी 13 वीं शताब्दी में फलौदी (जोधपुर) के निकट कोलूमण्ड गाँव में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम धाँधलजी राठौङ तथा माता का नाम ’कमला दे’था। ये राठौङों के मूल पुरुष ’राव सीहा’  के वंशज थे। धांधल जी के चार संतानें थी जिनमें से उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थी। उनके पुत्र – पाबूजी व बूडोजी थे तथा बहनें – सोनल बाई और पेमल बाई थी।
  • आना बघेला जैसे शक्ति संपन्न शासक के भगोङे सात थोरी-भाईयों (चांदा, देवा, खापू, पेमा, खलमल, खंधार और चासल) को पाबू ने आश्रय देकर उनकी रक्षा की।

विवाह गाथा

  • अमरकोट के सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सुपियार सोढ़ी (फुलम दे) के साथ पाबूजी का विवाह हुआ था। विवाह के मध्य ही उनके प्रतिद्वंद्वी बहनोई जायल (नागौर) नरेश जींदराव खींची ने पूर्व वैर के कारण देवल चारणी की गायों को घेर लिया। देवल ने पाबूजी से गायों को छुड़ाने की प्रार्थना की। तीन फेरे लेने के पश्चात् चौथे फेरे से पूर्व ही वे देवल चारणी की केसर कालमी घोड़ी पर सवार होकर गायों की रक्षार्थ रवाना हो गये।
  • जींदराव खींची से युद्ध लड़ते हुए 1276 ईं. में देंचूँ गांव (जोधपुर) में 24 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी पत्नी फूलमदे भी उनके साथ सती हो गयी।
  • इसीलिए पाबूजी के अनुयायी आज भी विवाह के अवसर पर साढ़े तीन फैरे ही लेते है ।
  • वीरता, प्रतिज्ञापालन, त्याग, शरणागत वत्सलता एवं गौ-रक्षा हेतु बलिदान होने के कारण जनमानस इन्हें लोक देवता के रूप में पूजता है।

पाबूजी की घोड़ी – Pabuji Ki Godi

  • एक बार की बात है जब पाबूजी की उम्र कम थी तभी वे कहीं रास्ते से गुजर रहे थे। उसी समय एक गायों के झुण्ड के बीच में एक छोटी घोङी चर रही थी और पाबूजी को देखकर वह घोङी प्रफुल्लित हो गयी तथा नाचने लगी। उस घोङी ने पाबूजी का मन मोह लिया। यह घोङी देवल चारणी नामक महिला की थी।
  • तभी पाबूजी ने देवल चारणी से घोङी मांगी। तब देवल चारणी ने एक वचन पर पाबूजी को घोङी देने को तैयार हो गई थी कि अगर मुझ पर या मेरी गायों पर कोई संकट आयेगा तो आपको हमारी रक्षा करनी होगी। साथ ही देवल चारणी ने यह भी कहा था कि जब मुझ पर कोई संकट आयेगा, तो यह घोङी विचित्र आवाज में हिनहिनाने लगेगी। उसके बाद पाबूजी ये घोङी अपने साथ ले गये।
  • पाबूजी ने इस घोङी का नाम केसर कालमी रखा। यह घोङी पाबूजी को प्राणों से भी प्रिय थी और वे उसे सदैव ही अपने साथ रखते थे। पाबूजी के अन्तिम समय तक कालमी इनके साथ रही थी।

पाबूजी की फड़

पाबूजी की फङ ’रात्रि जागरण’की तरह होती है, यह फङ मध्य रात्रि तक चलती है। ’पाबूजी की फङ’ नायक जाति के भोपों द्वारा ’रावणहत्था’ वाद्य के साथ बाँची जाती है। पाबूजी के ’पवाङे’ गाते समय ’माठ वाद्य यंत्र’ का उपयोग किया जाता है। पाबूजी की फङ राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है और आज भी यह बहुत अधिक प्रचलित है।

पाबूजी के बारे में अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • ऊँट के बीमार होने पर पाबूजी की भक्ति की जाती है ।
  • पाबूजी के पवाड़े विशेष रूप से प्रचलित है। इन पवाडों में इनका प्रमुख वाद्ययंत्र माठ होता है ।
  • ऊँटों की पालक रांईका (रेबारी) जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती है ।
  • पाबूजी थोरी एवं आयड़ जाति में लोकप्रिय है और मेहर जाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते है ।
  • पुरानी मान्यता के अनुसार मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को मिला था ।
  • ‘पाबूजी की फड़’ नायक जाति के भोपो द्वारा ‘रावणहत्या’ वाद्य के साथ बांची जाती है ।
  • पाबूजी की अराधना में थाली लोकनृत्य किया जाता है।
  • ‘चांदा-डेमा, हरमल एवं सलजी सौलंकी पाबूजी के रक्षक सहयोगी के रूप में माने जाते है ।
  • पाबूजी का बोध चिन्ह भाला लिये अश्वारोही है ।
  • इनका कोलूमण्ड में प्रमुख मंदिर जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है ।
  • मुस्लिम सुल्तान दूदा सूमरा को पाबूजी ने युद्ध में परास्त किय , क्योंकि यह एक हिन्दू द्रोही व हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाली प्रवृति का शासक था।
  • पाबूजी अल्प आयु में ही छुआछूत का विरोध करते थे।
  • पाबूजी को ‘ प्लेग रक्षक/हाड-फाड वाले देवता/गायों के मुक्तिदाता’ के रूप में भी पूजा जाता है।
पाबूजी से सम्बंधित यशोगान रचनाएँ
पाबुजी रा छन्द – बीठूसूजा की रचना
पाबूजी रा दोहा – लघराज की रचना
पाबूप्रकाश- आशिया मोडजी की रचना (जीवनी)
पाबूधणी री रचना – थोरी जाति द्वारा सारंगी पर किया जाने वाला यशोगान।
पाबूजी की फड़(यश गाथा) – ऊँटों के स्वस्थ होने पर भोपे–भोपियों द्वारा गाई जाती है।
पाबूजी के पावड़े ‘माठ’ वाद्य यंत्र के साथ थोरी जाति के लोगों द्वारा बांचे जाते है।

पाबूजी के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण तथ्य

जन्म1239 ई. कोलूमंड गाँव, जोधपुर
अन्य नामलक्ष्मण के अवतार, ऊंटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता, गायों के देवता
पिताधांधलजी राठौड़
माताकमला देवी
पत्नीसुपियार सोढ़ी {फुलम दे (अमरकोट के शासक सूरजमल सोढ़ा की पुत्री)
कुलधाँधलोत शाखा के राजपूत राठौड़ व राव सीहा के वंशज
घोड़ीकेसर कालमी
मंदिरकोलू गांव(फलौदी, जोधपुर)
मेलाप्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को पाबूजी के मुख्य ‘थान’ (मंदिर गाँव कोलूमण्ड) में विशाल मेला लगता है
प्रतीकभाला लिये अश्वारोही बांयी ओर झुकी पाग (पगड़ी)
वीरगति1276 ई. में जोधपुर के देचु गांव
फड़गीत – बयावले फड़ के साथ वाद्ययंत्र – रावण हत्थे राजस्थान के सभी लोक देवताओं में सबसे छोटी फड़ है।

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