राजस्थान की प्रमुख  हवेलियाँ | Major Havelis of Rajasthan

राजस्थान की प्रमुख  हवेलियाँ | Major Havelis of Rajasthan: नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान की प्रमुख हवेलियाँ से संबंधित संपूर्ण जानकारी MYRPSC पर प्राप्त करेंगे।

राजस्थान की प्रमुख  हवेलियाँ | Major Havelis of Rajasthan,

राजस्थान की प्रमुख  हवेलियाँ

हवेली स्थापत्य कला का विकास विशेषकर 17वीं-18वीं सदी में हुआ। हवेली निर्माण में मुख्य योगदान राजस्थान के सेठ-साहूकारों का रहा है। राजस्थान में सर्वाधिक हवेलियों का निर्माण शेखावाटी क्षेत्र में हुआ है।

हवेलियां कई मंजिलों में निर्मित होती थी। हवेली के मुख्य द्वार के दोनों ओर ऊँचे चबूतरों के समानस्थान बना हुआ था जहाँ बैठा जाता था उसे गवाक्ष कहते है। गवाक्ष के आगे का हिस्सा जहाँ परिवार रहता था पोल कहलाता था।

राजस्थान में मरु क्षेत्र की हवेलियाँ अपनी पत्थर की जाली व कटाई के कारण तथा पूर्वी राजस्थान व हाड़ौती की हवेलियाँ अपनी कलात्मक संगतरासी के लिए प्रसिद्ध है।

शेखावटी की हवेलियाँ फ्रेस्कों पेंटिंग (भित्ति चित्रण) के लिए जानी जाती हैं। राजस्थान की हवेलियाँ अपने छज्जों, बरामदों और झरोखों पर बारीक व उम्दा नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।

NOTE: राजस्थान में जैसलमेर को हवेलियों का शहर तथा बीकानेर को हजार हवेलियों का शहर कहा जाता है।

Rajasthan Ki Pramukh Haweliya

जैसलमेर की हवेलियाँ

जैसलमेर को हवेलियों का शहर के रूप में जाना जाता है। जैसलमेर की हवेलियाँ पत्थरों की कटाई एवं जालियों के लिए प्रसिद्ध है। जैसलमेर में पटवों की हवेली, सालिमसिंह की हवेली, नथमल की हवेली स्थित है। सभी जालियों में एक ही पत्थर का प्रयोग तथा ज्यामितिक आकारों की प्रधानता जैसलमेर हवेलियों की विशेषताएँ हैं।

पटवों की हवेली

पटवों की हवेली राजस्थान के जैसलमेर में स्थित एक प्राचीन आवास संरचना है। पटवों की हवेली का निर्माण सेठ गुमानचन्द बाफना द्वारा 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में करवाया गया। जो एक प्रसिद्ध आभूषण और ब्रोकेस व्यापारी थे। जिसकें अपने पांच बेटों में से प्रत्येक के लिए एक का निर्माण किया था।

  • यहां पर ब्रोकेड व्यापारिक प्रतिष्ठा के कारण पटवों की हवेली को अपने उत्कट व्यापारिक विशेषताओं की वजह से ‘हवेली ऑफ़ ब्रोकेड मर्चेंट्स भी कहा जाता था।
  • इस हवेली में हिन्दू, ईरानी, यहूदी व मुगल स्थापत्य कला का सुन्दर समन्वय है।
  • यह हवेली अपनी शिल्पकला, नक्काशी एवं पत्थर में बारीक कटाई के लिए प्रसिद्ध है।
  • 5 मंजिला एवं 66 झरोखों से युक्त यह सबसे बड़ी हवेली है। पटवों की हवेली विश्व की एकमात्र हवेली है जिसकी खिड़कियाँ पत्थर की बनी हुई हैं।
  • पटवों की हवेली पाँच हवेलियों से मिलकर बनी हैं। इनकी पहली हवेली को ‘कोठारी की पटवा हवेली’ कहते है। इसकी पहली मंजिल में नाव तथा हस्ती-हौपे के आकार के गवाक्ष है, दूसरी मंजिल में मेहराबदार सुन्दर छज्जे हैं, तीसरी मंजिल पर षट्कोणीय छज्जे हैं। इसमें एक हवेली के ‘दीपघरों’ के शीशों पर ग्वालियर के मराठा शासक महादजी सिन्धिया को अंकित किया गया है।

नथमल की हवेली

  • 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में पीले रंग के पत्थरों से निर्मित 5 मंजिली हवेली का निर्माण महारावल बैरीसाल के समय हुआ है।
  • इस हवेली के शिल्पकार ‘हाथीएवं लालू थे। हवेली के प्रवेश द्वार के दोनों छोरों पर दो अलंकृत हाथी बने हुए हैं।

सालिमसिंह की हवेली

जैसलमेर के प्रधानमंत्री सालिमसिंह द्वारा 18वीं सदी में निर्मित की गई। यह हवेली अपनी पत्थर की नक्काशी एवं महीन जालियों के लिए प्रसिद्ध हैं।  

  • सालिम सिंह की हवेली की ऊपरी मंजिल को जहाज महल और मोती महल कहा जाता है।
  • सालिम सिंह की हवेली नौ खण्डों में बनाई गई जिसमें सात खण्ड पत्थर के तथा आठवां, नौंवां खण्ड लकड़ी का बना था। इन्हें क्रमश: रंगमहल व शीशमहल कहा जाता था।
  • इसे 9 खण्डों वाली हवेली भी कहते हैं।

जोधपुर की हवेलियाँ

जोधपुर की हवेलियों में पुष्य हवेली, पाल हवेली, बड़े मियां की हवेली, पोकरण की हवेली, पच्चीसा हवेली, राखी हवेली प्रमुख है।

  • पुष्य हवेली विश्व का ज्ञात एकमात्र ऐसा भवन है जो एक ही नक्षत्र पुष्य नक्षत्र से बना है।
  • पुष्य हवेली का निर्माण महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के कामदार रघुनाथमल जोशी (भूरजी) ने करवाया था।
  • खीचन (जोधपुर) में लाल पत्थरों की गोलेच्छा एवं टाटिया परिवारों की हवेलियाँ कलात्मक दृष्टि से अनुपम है।
  • आसोपा हवेली– जोधपुर
  • लालचंद ढड्डा की हवेली– फलौदी (जोधपुर)
  • सांगीदास थानवी की हवेली– फलौदी (जोधपुर)
  • मोतीलाल अमरचंद कोचर हवेली– फलौदी (जोधपुर)
  • फूलचंद गोलछा की हवेली– फलौदी (जोधपुर)

बीकानेर की हवेलियाँ

बीकानेर की हवेलियों में अधिकांश लाल पत्थरों का उपयोग हुआ है। रामपुरिया हवेलियाँ- बीकानेर मुगल, हिंदु और यूरोपीय कला का अद्भुत समन्वय। बीकानेर की हवेलियों में ज्यामितीय शैली की नक्काशी है एवं आधार को तराश कर बेल-बूटे, फूल, पत्तियाँ आदि उकेरे गये हैं।

बच्छावतों की हवेली

  • बीकानेर की सबसे पुरानी हवेली है।
  • इस हवेली का निर्माण 1593 ई. में कर्णसिंह बच्छावत ने करवाया था।
  • यह लाल पत्थर से निर्मित है।

रामपुरिया की हवेलियाँ

  • ये हवेलियाँ रामपुरिया मोहल्लों की एक गली में क्रमबद्ध रूप से निर्मित है।
  • यह हवेलियाँ अपने विशाल आँगन और स्थापत्य कला के करण विश्व विख्यात है।
  • बच्छावतों की हवेलियों में सेठ भंवरलालजी रामपुरिया की हवेली, हीरालाल रामपुरिया की हवेली, माणिकचंद रामपुरिया की हवेली प्रमुख है।

सेठ चाँदमल ढड्‌ढा की हवेली बीकानेर में है।

रिखजी बागड़ी की हवेली – (3 मंजिला) बीकानेर में है।

लक्ष्मीनारायण डागा की हवेली को गोल्डन किंग की हवेली के रूप में जाना जाता है।

पूनमचंद जी कोठारी की हवेली

  • यह हवेली तितलीनुमा है। इस हवेली में सारा पत्थर दुलमेरा का है। इस हवेली के निर्माता भूधर जी चलवा थे।

भैरोंदान जी कोठारी की हवेली – (बीकानेर में) शाहजहाँ कालीन मुगल इमारतों की याद को ताजा कर देती है।

बीकानेर के लाखोटिया चौक की हवेली में सेठ मुरलीधर मोहता की हवेली, हनुमानदास मोहता की हवेली, शिवदास जी माणकलाल जी बिन्नाणी की हवेली प्रमुख है।

सेठ रामगोपाल गोवर्धनदास मेहता की हवेली बीकानेर में है।

मोहता हवेली, मूंदड़ा हवेली, डागा हवेली, गुलेच्छा हवेली, बागड़ी हवेली, रिखजी हवेली, कोठारी हवेली, सेठिया, बांठिया हवेली, ओसवाल एवं माहेश्वरी की हवेलियाँ बीकानेर की महत्वपूर्ण हवेलियाँ हैं।

NOTE: वर्ष 2012 में बीकानेर की हवेलियों को ‘वर्ल्ड मोन्यूमेंट वाच कार्यक्रम में शामिल किया गया था।

उदयपुर की हवेलियाँ

बागौर की हवेली

  • उदयपुर में पिछौला झील के निकट बागौर की हवेली का निर्माण ठाकुर अमरचंद बड़वा ने करवाया। इस हवेली में 138 कमरे बने हुए हैं।
  • 1986 में यहाँ पर पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र को स्थापित किया गया है। इसी हवेली में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी रखी हुई है।
  • बाफना की हवेली
  • पीपलिया की हवेली
  • मोहनसिंह जी की हवेली

कोटा की हवेलियाँ

  • बड़े देवता की हवेली – इसे देवता श्रीधरजी की हवेली भी कहा जाता है।
  • झालाजी की हवेली – जालिमसिंह द्वारा निर्मित हवेली।

जयपुर की हवेलियाँ

  • पुरोहित जी की हवेलीजयपुर (पुरोहितजी की हवेली में प्रवेश द्वार पर बने विशाल कक्ष में टेम्परा पद्धति के भित्ति चित्र है)।
  • नाटाणियों की हवेली
  • ख्वास जी की हवेली
  • चूड़सिंह की हवेली (आमेर में)
  • नानाजी की हवेली।
  • काले बाबू की हवेली
  • सात खाँ की हवेली
  • गुलजार हवेली
  • दीवान साहब की हवेली
  • धाबाईजी की दीवान साहब की हवेली।
  • रत्नाकर पुण्डरीक की हवेली – रत्नाकार भट्ट पुण्डरीक की हवेली के ऊपर के कक्ष में 10 आलों के मध्य शृंगार व सवारियों के चित्र चित्रित है।

शेखावटी की हवेलियाँ

शेखावटी की हवेलियों का निर्माण भारतीय वास्तुकाल की हवेली शैली स्थापत्य कला की विशेषताओं के अनुरूप हुआ है। रामगढ़, नवलगढ़, मण्डावा, मुकुन्दगढ़, पिलानी आदि कस्बों की उत्कृष्ट हवेलियां हैं जो अपने भित्ति चित्रण के लिए विश्व विख्यात है।

शेखावटी की हवेलियों के भित्ति चित्रण में पौराणिक, ऐतिहासिक विविध विषयों का चयन, स्वर्ण व प्राकृतिक रंगों का प्रयोग तथा फ्रेस्कों बुनों, फ्रेस्को सेको व फ्रेस्को सिम्पल विधियों का प्रयोग किया गया है।

NOTE: रामगढ़ शेखावटी धनाढ्य सेठों की नगरी कहलाती है।

NOTE: नवलगढ़ को हवेलियों का नगर अथवा शेखावटी की स्वर्ण नगरी कहा जाता है।

झुंझुनूं की हवेलियाँ

  • रुपनिवास महल हवेली
  • खुर्रेदार चबूतरों की हवेलियाँ
  • मोरारका की हवेली
  • बिसाऊ की हवेली (झुंझुनूं)
  • पौद्दारों की हवेली
  • भगतों की हवेलियाँ
  • टीबड़े वाला की हवेलियाँ
  • भगेरियां की हवेली
  • आठ हवेली कॉम्प्लेक्स
  • चौखानी परिवार की हवेली
  • नाथूराम पोद्दार की हवेली
  • सेठ जयदयाल केड़िया की हवेली
  • सीताराम सिगतिया की हवेली
  • सेठ हीरालाल – बनारसीलाल की हवेली
  • सोने-चाँदी की हवेली – महनसर
  • सागरमल लाडिया की हवेली – मण्डावा
  • रामदेव चौखाणी की हवेली – मण्डावा
  • रामनाथ गोयनका की हवेली
  • बिरला हवेली – पिलानी (झुंझुनूं)
  • सेठ लालचन्द गोयनका की हवेली – डूंडलोद (झुंझुनूं)
  • सेठ राधाकृष्ण की हवेली – मुकुन्दगढ़ (झुंझुनूं)
  • केसरदेव कानोड़िया की हवेली – मुकुन्दगढ़ (झुंझुनूं)
  • बागड़ियों की हवेली – चिड़ावा (झुंझुनूं)
  • डालमिया की हवेली – चिड़ावा (झुंझुनूं)

NOTE: झुंझुनूं की इसरदास मोदी की हवेली शताधिक खिड़कियों के लिए विश्वविख्यात है।

सीकर की हवेलियाँ

  • राठी की हवेली
  • जिजोड़िया हवेली
  • पंसारी की हवेली – श्रीमाधोपुर
  • केड़िया की हवेली – लक्ष्मणगढ़
  • शिवनारायण मिर्जामल कायला की हवेली
  • तोलाराम परशुराम पुरिया की हवेली
  • रोनेड़ी वालों के चौक की हवेली
  • बैजनाथ रुइयाँ की हवेली
  • राचन्द रुइया की हवेली
  • खेमका सेठों की हवेलियाँ

 NOTE: सीकर में बिनाणियों की हवेली एवं नई हवेली समकालीन भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।

चूरू की हवेलियाँ

  • मंत्रियों की हवेली
  • मालजी का कमरा – मालचंद कोठारी द्वारा निर्मित।
  • रामनिवास गोयनका की हवेली
  • सुराणों की हवेली – चूरू की इस हवेली में 1100 से ज्यादा दरवाजे एवं खिड़कियाँ हैं।
  • दानचंद चोपड़ा की हवेली – सुजानगढ़ (चूरू) में स्थित है।

अजमेर की हवेली

  • बादशाह की हवेली- (अकबर के समय निर्मित)

टोंक की हवेली

सुनहरी कोठी  

  • इसका निर्माण सन् 1824 ई. में नवाब अमीर खां पिण्डारी ने प्रारम्भ करवाया जिसको 1834 में नवाब वजीरूद्धौला ने पूर्ण करवाया।
  • प्रारम्भ में यह शीश महल के नाम से जानी जाती थी।
  • यह दो मंजिला इमारत है जिसकी दूसरी मंजिल का निर्माण नवाब इब्राहिम अली खान ने करवाया तथा इस पर स्वर्ण की नक्काशी तथा चित्रकारी का काम करवाया। तब से यह इमारत सुनहरी कोठी के नाम से जानी जाने लगी।
  • इस कोठी को ‘Golden mension of tonk’ भी कहा जाता है।

चितोडगढ़ की हवेलियाँ

  • भामाशाह की हवेली – चितौड़गढ दुर्ग – अब भग्नावस्था में मौजूद यह इमारत, एक समय मेवाड़ की आनबान के रक्षक महाराणा प्रताप को मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दान करने वाले प्रसिद्ध दानवीर दीवार भामाशाह की याद दिलाने वाली है। कहा जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप का राजकोष खाली हो गया था व मुगलों से युद्ध के लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी। ऐसे कठिन समय में प्रधानमंत्री भामाशाह ने अपना पीढियों से संचित धन महाराणा को भेंट कर दिया। कई इतिहासकारों का मत है कि भामाशाह द्वारा दी गई राशि मालवा को लूट कर लाई गई थी, जिसे भामाशाह ने सुरक्षा की दृष्टि से कहीं गाड़ रखी थी।
  • सलूम्बर ठिकाने की हवेली – चितौड़गढ़
  • दुर्गरामपुरा ठिकाने की हवेली – चितौड़गढ
  • जयमल व फत्ता की हवेलियाँ -चितौड़गढ़ दुर्ग

करौली की हवेली

  • वंशी पत्थर की हवेली

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