राजस्थान में नृत्य (Rajasthani Dance – Folk Dances of Rajasthan)

राजस्थान में नृत्य

नृत्य भी मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन है। यह एक सार्वभौम कला है, जिसका जन्म मानव जीवन के साथ हुआ है। बालक जन्म लेते ही रोकर अपने हाथ पैर मार कर अपनी भावाभिव्यक्ति करता है कि वह भूखा है- इन्हीं आंगिक -क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति हुई है। यह कला देवी-देवताओं, दैत्य, दानवों,मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों को अति प्रिय है। भारतीय पुराणों में यह दुष्ट नाशक एवं ईश्वर प्राप्ति का साधन मानी गई है।

1. क्षेत्रिय नृत्य

1 बम नृत्य, 2 ढोल नृत्य 3 डांडिया नृत्य, 4 डांग नृत्य 5 बिन्दौरी नृत्य 6 अग्नि नृत्य 7 चंग नृत्य 8 ढफ नृत्य 9 गीदड़ नृत्य

2. जातिय नृत्य

(अ) भीलों के नृत्य

1 गैर 2 गवरी/ राई, 3 द्विचकी, 4 घुमरा नृत्य, 5 युद्ध 6 हाथीमना

(ब) गरासियों के नृत्य

1 वालर, 2 कूद 3 मांदल 4 गौर, 5 मोरिया 6 जवारा 7 लूर

(स) कथौड़ी जाति के नृत्य

1 मावलिया, 2 होली

(द) मेव जाति के नृत्य

1 रणबाजा 2 रतवई

(य) गुर्जर जाति के नृत्य

1 चरी नृत्य

(र) सहरियों के नृत्य

1. शिकारी

3. सामाजिक नृत्य/धार्मिक नृत्य

1 धूमर नृत्य 2 घुडला नृत्य 3 गरबा नृत्य, 4 गोगा नृत्य 5 तेजा नृत्य

4. व्यावसायिक नृत्य

1 भवाई नृत्य 2 तेरहताली नृत्य 3 कच्छी घोड़ी नृत्य 4 चकरी नृत्य 5 कठपुतली नृत्य 6 कालबेलियों के नृत्य 7 भोपों के नृत्य

क्षेत्रिय नृत्य

1. बम नृत्य

पूर्वी क्षेत्र /मेवात क्षेत्र (विशेषकर भरतपुर व अलवर) मे लोकप्रिय नृत्य है।

होली के समय फसल कटाई की खुशी में कियया जाने वाला नृत्य है।

नगाडा “बम”कहलाता है जो एक वाद्य यंत्र है।

पुरूष प्रधान नृत्य है।

2. ढोल नृत्य

ढोल बजाने की शैली “थाकणा” है।

भीनमाल व सिवाड़ा (जालौर) क्षेत्र में लोकप्रिय है।

” साचलिया सम्प्रदायय” का संबंध ढोल नृत्य से है।

ढोल बजाने वाली प्रमुख जातियां – 1. सरगडा (शेखावटी की) 2. ढोली

पुरूषों द्वारा विवाह के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है।

3. डांग नृत्य

नाथ द्वारा (राजसमंद) को लोकप्रियय नृत्य है।

होली के अवसर पर स्त्री व पुरूषों द्वारा किया जाता है।

4. डांडिया नृत्य

मारवाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय नृत्य है।

पुरूषों द्वारा डांडियों के साथ वृताकार घेरे में किया जाने वाला नृत्य है।

5. बिन्दौरी नृत्य

झालावाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय नृत्य है।

होली या विवाह के अवसर पर यह नृत्य पुरूषों द्वारा कियया जाता है।

यह गैर शैली का नृत्य है।

6. अग्नि नृत्य

इस नृत्य का मूल स्थान कतरियासर (बीकानेर) है।

यह नृत्य जसनाथी सम्प्रदाय के लोगों द्वारा रात्री जागरण के समय किया जाता है।

यह नृत्य फाल्गुन या चैत्र मास में व अंगारों पर किया जाता है।

यह पुरूष प्रधान नृत्य है।

7. गींदड नृत्य

यह नृत्य शेखावटी क्षेत्र में पुरूषों द्वारा होली के अवसर पर किया जाता है।

नृत्य के दौरान कुछ पुरूष स्त्रियों का स्वांग भरते है।

8. चंग नृत्य

यह शेखावटी क्षेत्र का पुरूष प्रधान नृत्य है।

नृत्य होली के अवसर पर किया जाते है।

चंग से अभिप्राय वाद्य यंत्र से है।

9. ढफ नृत्य

यह शेखावटी क्षेत्र का पुरूष प्रधान नृत्य है।

नृत्य बसंत पंचमी के अवसर पर किया जाता है।

पंचमी- माघ शुक्ल पंचमी।

जातिय नृत्य

(अ) भीलों के नृत्य – उदयपुर संभाग /भौमट क्षेत्र

1. गैर नृत्य

यह नृत्य होली के अवसर पर भील पुरूषों के द्वारा किया जाता है।

गैर नृत्य करने वाले पुरूष ‘गैरिये ‘कहलाते है।

छडियों को आपस में भिडाते हुए गोल घेरे में किया जाने वाला नृत्य है।

उपयोग में ली जाने वाली छड़ी को ‘ खाण्डा’ कहते है।

2. गवरी/राई नृत्य

यह नृत्य सावन-भादो में किया जाता हैै।

यह पुरूष प्रधान लोक नृत्य है।

यह धार्मिक लोकनृत्य भी है।

गवरी की घाई/ गम्मत गवरी नाट्य के दौरान विभिन्न प्रसंगों को आपस में जोडने के लिए जो सामुहिक नृत्य किया जाता है। उसे गवरी की घाई/ गम्मत कहते है।

3. द्विचकी नृत्य

यह नृत्य विवाह के अवसर पर भील महिला व पुरूष दोनो द्वारा गोल-वृताकार घेरे में किया जाता है। बाहर के घेरे में पुरूष व अन्दर के घेरे में महिलाऐं नृत्य करती है।

4. घुमरा नृत्य

भील महिलाओं द्वारा घुमर की तरह गोल घेरे में किया जाने वाला नृत्य है।

5. युद्ध नृत्य

नृत्य के दौरान पहाड़ी क्षेत्रों में भील जाति के लोग दो दल गठित करके आमने-सामने तीर, भालों इत्यादि हथियारों से युद्ध कला का प्रदर्शन करते है।

6. हाथीमना नृत्य

यह नृत्य पुरूष लोकनृत्य है।

इस नृत्य को भील पुरूषों द्वारा विवाह के अवसर पर किया जाता है।

(ब) गरासियों के नृत्य- पिंडवाडा व आबु क्षेत्र (सिरोही)

1. वालर नृत्य

यह नृत्य होली के अवसर पर किया जाता है।

वालर नृत्य बिना किसी वाद्य यंत्र के अत्यन्त धीमी गति से किया जाता है।

महिला तथा पुरूष दोनों द्वारा अर्द्धवृत में किया जाता है।

2. कूद नृत्य

बिना वाद्य यंत्र के महिला तथा पुरूष दोनों द्वारा सम्मिलित रूप से किया जाने वाला नृत्य है।

3. गौर नृत्य

गणगौर पर्व पर महिला व पुरूष दोनो द्वारा किया जाने वाला धार्मिक लोकनृत्य है।

4. जवारा नृत्य

होली के अवसर पर पुरूष तथा महिला दोनों के द्वारा युगल रूप में किया जाने वाला नृत्य है।

5. लूर नृत्य

गरासिया जनजाति में लूर गोत्र की महिलाऐं मांगलिक अवसरों पर यह नृत्य करती है।

6. मादल नृत्य

यह नृत्य महिलाओं द्वारा मादल वाद्ययंत्र के साथ मांगलिक अवसरो पर किया जाता है।

7. मोरिया नृत्य

यह पुरूष प्रधान नृत्य है।

विवाह के अवसर पर गणपति स्थापना के बाद रात्रि को किया जाता है।

(स) कथौड़ी जाति के नृत्य – उदयपुर (झाडोल कोटडा व सराड)

1. मावलिया नृत्य

नवरात्रों के दौरान केवल पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।

2. होली नृत्य

होली के अवसर पर केवल महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।

(द) मेव जाति के नृत्य

1. रणवाजा नृत्य

जाति के पुरूष व महिलाऐं सम्मिलित रूप से युद्ध कलाओं का प्रदर्शन करते हुए यह नृत्य करते है।

2. रतवई नृत्य

मेव जाति की महिलाऐं संतलालदास जी की स्मृति पर मांगलिक अवसरों पर यह नृत्य करती है।

(य) सहरियों के नृत्य -बारां (किशनगंज और शाहबाद)

1. शिकारी नृत्य

इस नृत्य के दौरान सहरिया जनजाति के लोग आखेट का प्रदर्शन करते है।

(र) गुर्जर जाति के नृत्य – किशनगढ़, अजमेर)

2. चरी नृत्य

गुर्जर जाति की महिलाओं द्वारा सिर पर मटकी रख कर उसमें काकडें के बीज (कपास के बीज) तथा तेल डलाकर आग की लपटों के साथ यह नृत्य किया जाता है।

प्रसिद्ध नृत्यांगना फलकू बाई है।

सामाजिक तथा धार्मिक लोकनृत्य

1. घुमर नृत्य

उपनाम – राजस्थान का प्रतीक, नृत्यों की आत्मा , नृत्यों का सिरमौर ,राजकीय नृत्य

महिलाओं द्वारा गणगौर पर्व पर किया जाता है।

यह नृत्य गोल घेरे में किया जाने वाला नृत्य है।

मीणा जाति की महिलाएं यह नृत्य करने में दक्ष होती है।

2. घुड़ला नृत्य

मारवाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय नृत्य है।

अविवाहित लड़कियां, छिद्रित घडे़/मटकें में जलते हुए दीपक के साथ यह नृत्य करती है।

यह नृत्य घुड़ला पर्व पर (चैत्र कृष्ण अष्टमी) किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि मारवाड़ क्षेत्र के पीपाड़ गांव की महिलाएं जब गौरी पूजन के लिए तालाब पर जा रही थी। उस समय अजमेर के सुबेदार मल्लु खां ने इन महिलाओं का अपहरण कर ले गया। तब राव सातलदेव ने युद्ध करके इन महिलाओं को मुक्त करवाया।

राव सातलदेव ने मल्लु खां के सेनापति घुडले खां के सिर को छिद्रित करके मारवाड़ लाए।

घुडला- छिद्रित मटका।

3. गरबा नृत्य

राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र (उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाडा) जो गुजरात की सीमा से सटे हुए है, वहां महिलाएं नवरात्रों के दौरान देवी शक्ति की अराधना में यह नृत्य करती है।

4. गोगा नृत्य

यह नृत्य गोगानवमी के दिन गोगा जी भक्तों द्वारा किया जाता है।

5. तेजा नृत्य

तेजा जी के भक्तों द्वारा परबतसर (नागौर) में तेजा दशमी के दिन किया जाता है।

व्यावसायिक नृत्य

1. भवाई नृत्य

मेवाड़ क्षेत्र में भवाई जाति द्वारा किया जाता है।

भवाई जाति का जनक नागाजी बाघाजी जाट को माना जाता है।

मूल स्थान केकडी (अजमेर) है।

भवाई नृत्य के प्रमुख आकर्षण

    शारीरिक संतुलन तथा कलात्मक चमत्कारिक प्रदर्शन

    नंगी तलवार पर नाचना

    थाली के किनारों पर नांचना

    गिलासों व कांच के टुकडो पर नाचना

    पर से मुंह द्वारा रूमाल उठाना

    एक साथ आठ मटके सिर पर रखकर संतुलन के नृत्य

प्रमुख- 1. रूप सिंह शेखावत 2. दयाराम 3 तारा शर्मा 4 अस्तिमा शर्मा (जयपुर – लिटल बन्डर)

2. तेरहवाली नृत्य

यह नृत्य कामड़ सम्प्रदायय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।

इस नृत्य का मूल स्थान पादरला गांव (पाली)है।

इस नृत्य के दौरान कुल 13 मंजीरे (09 दाहिने पैर पर दोनों हाथों की कोहनी से ऊपर तथा 2 मंजीरे हाथ में बांधकर) यह नृत्य बैठकर प्रस्तुत किया जाता है।

यह नृत्य मुख्यतः रामदेव मेले के दौरान किया जाता है।

प्रमुख – नृत्यांगनाऐं

1. मोहिनी देवी 2. नारायणी देवी 3. मांगी बाई है।

3. कच्छी घोडी नृत्य

यह शेखावटी क्षेत्र में लोकप्रिय है।

यह पुरूष प्रधान नृत्य है।

यह नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है।

इस नृत्य के दौरान 8-10 पुरूष दो पंक्तियों में आमने-सामने खडे़ होकर नृत्य करते हुए आगे तथा पीछे हटते है, जिससे फूल के खिलने तथा बंद होने की विधा का आभास होता है।

कुछ पुरूष बांस के बने हुए घोड़ीनुमा ढांचे को कमर पर बांधकर तथा हाथ में तलवार लेकर शौर्य गीत गाते हुए नृत्य करते है।

शेखावटी की सरगड़ा जाति कच्छी घोड़ी नृत्य करने में दक्ष मानी जाती है।

4. चकरी नृत्य

यह हाडौती क्षेत्र का लोकप्रिय नृत्य है।

कंजर जाति की महिलाओं द्वारा वृताकार घेरे में किया जाता है।

5. कठपुतली नृत्य

कठपुतली नृत्य नट जाति द्वारा किया जाता है।

कठपुतली नाट्य के प्रदर्शन के दौरान महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।

6. भौपों के नृत्य

लोक देवता की फड़ के वाचन के समय भौंपा या भौंपी द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।

7. कालबेलियों के नृत्य

(अ) पणिहारी नृत्य- महिला व पुरूष दोनों द्वारा युगल रूप में किया जाने वाला नृत्य

(ब) इण्डौली नृत्य – महिला व पुरूष दोनों द्वारा युगल रूप में किया जाने वाला नृत्य

(स) संकरिया नृत्य – प्रेम-प्रसंग पर आधारित युगल नृत्य है।

(द) बागडि़या नृत्य – केवल महिलाओं द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य भीख मांगते समय किया जाता है।

कालबेलिया जाति की प्रसिद्ध नृत्यांगना गुलाबोबाई है। गुलाबोंबाई (कोटड़ा अंचल- अजमेर)

अन्य नृत्य

1. नेजा नृत्य

यह खेल नृत्य कहलाता है।

आदिवासियों द्वारा विशेषकर भील तथा मीणा जाति के लोग होली के समय एक खुले मैदान में डंडा रोपकर यह नृत्य करते है। जिसके अन्तर्गत डण्डे के सिरे पर नारियल बांध दिया जाता है तथा महिलाएं हाथ में कौडे़ लेकर इसको चारों तरफ से घेर कर खड़ी हो जाती है। पुरूष बारी -बारी से घेरे में आकर नारियल उतारने का प्रयास करती है। महिलाएं उन्हें कोड़े से पीटती है।

2. नाहर नृत्य

यह मांडलगढ़ (भीलवाडा) का प्रसिद्ध नृत्य है।

इस नृत्य की शुरूआत मुगल सम्राट शाहजहां के काल में हुई।

इस नृत्य के अन्तर्गत पुरूष अपने शरीर पर रूई लगाकर तथा सींग धारण करके स्वांग रचते है।

इस नृत्य को “एक सींग वाले शेरों का नृत्य” कहते है।

यह नृत्य होली के तेरह दिन बाद आयोजित किया जाता है।

3. रायण नृत्य

यह गरासिया जनजाति का नृत्य है।

4. बालदिया नृत्य

यह भाटों का नृत्य है।

5. रसिया नृत्य

मीणा जनजाति का नृत्य है।

6. लहूर नृत्य

यह शेखावटी क्षेत्र का अश्लील लोकनृत्य है।

7. सुकर नृत्य

आदिवासिंयों द्वारा सुकर लोकदेवता की स्मृति में किया जाता है।

केवल राजस्थान में ही किया जाने वाला नृत्य है।

8. पेजण नृत्य

बांगड़ क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है।

9. चरकुला नृत्य

मूलतः उत्तर प्रदेश का लोकनृत्य है जो राजस्थान में भरतपुर जिले में प्रचलित है।

10. चरवा नृत्य

मारवाड़ क्षेत्र में माली समाज की महिलाओं द्वारा किया जाता है।

चरवा- कांसे का बरतन

11. कत्थक नृत्य

उत्तर भारत का प्रसिद्ध नृत्य है। शास्त्रीय नृत्य है।

जयपुर कत्थक का आदिम घराना है।

वर्तमान में “लखनऊ” कत्थक का प्रमुख घराना है।

“बिरजू महाराज” कत्थक नृत्य के अन्तर्राष्ट्रीय नृतक है।

कत्थक नृत्य के जनक ” भानू जी महाराज” है।

    भट्टनाट्य – तमिलनायडू

    कुचीपुडी – आन्ध्र-प्रदेश

    भिंहु- असम

    यक्षगान – कर्नाटक

    छऊ – बिहार

    कत्थकली- केरल

    भांगडा- पंजाब

    गरबा- गुजरात

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