राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व: आज के आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं, RAJASTHAN GK का अति महत्वपूर्ण टॉपिक Rajasthan Ke Pramukh Vyaktitva दोस्तों Rajasthan Ke Pramukh Vyaktitva टॉपिक से हर RAJASTHAN KE एग्जाम में questions पूछे जाते है।
Rajasthan ke pramukh vyaktitv NOTES IN HINDI PDF
ऐसे ही कुछ व्यक्तियों का विवरण नीचे दिया जा रहा है जिन्होंने राजस्थान का नाम इस देश में ही नहीं बल्कि संसार में भी रोशन किया है।
राजस्थान के स्वतंत्रता सैनानी
अमरचन्द बांठिया
अमरचन्द बांठिया का जन्म 1793 में बीकानेर में हुआ था। वे अपने पिता श्री अबीर चन्द बाँठिया के साथ व्यापार के लिए ग्वालियर आकर बस गये थे । अमरचंद बाठिया ग्वालियर के राजा जयाजीराव सिंधिया का कोषाध्यक्ष थे।
इन्हें ग्वालियर नगर सेठ कहा जाता है। 1857 की क्रांति में इनहोंने लक्ष्मीबाई व तांत्याटोपे का सहयोग किया। इस कारण इन्हें भामाशाह द्वितीय या 1857 की क्रांति के भामाशाह का भामाशाह कहा जाता है।
अमरचंद बांठिया को 22 जून 1858 को ब्रिगेड़ियर नैपियर द्वारा सराफा बाजार ग्वालियर में नीम के पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी गई थी। ये 1857 की क्रांन्ति में राजस्थान से शहिद होने वाले प्रथम व्यक्ति थे इसलिए इन्हें राजस्थान का मंगल पांडे कहा जाता है।
विजय सिंह पथिक
विजय सिंह पथिक का जन्म 27 Feb,1882 ई. में गांव गुठावली, जिला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। विजयसिंह पथिक का मूल नाम भूपसिंह गुर्जर था।
- माता- कमल कुमारी
- पिता – हमीर सिंह
1915 के फ़िरोज़पुर षड्यन्त्र के बाद उन्होंने अपना असली नाम भूप सिंह से बदल कर विजयसिंह पथिक रख लिया था।
विजय सिंह पथिक भारत में किसान आन्दोलन के जनक माने जाते हैं। बिजौलिया आने से पूर्व वे एक क्रांतिकारी थे, वे रास बिहारी बोस के अनुयायी थे। रास बिहारी बोस ने देश व्यापी क्रान्ति के लिये उन्हें राजस्थान भेजा।
राजस्थान में किसान आन्दोलन के जनक साधु सीताराम दास माने जाते हैं। विजयसिंह पथिक को टॉडगढ़ जेल (अजमेर) में बन्दी बनाया गया, जहां से वे फरार हो गये। छूटने के बाद वे चितौड़ के ओछड़ी गाँव में बस गए।
1916 में विजय सिंह पथिक जी ने किसान पंच बोर्ड की स्थापना की जिसका अध्यक्ष साधु सीताराम दास को बनाया। 1917 में उपरमाल पंचबोर्ड की स्थापना की जिसका अध्यक्ष मन्ना पटेल को बनाया। 1918 में कानपुर में राजपुताना मध्य भारत सभा की स्थापना की। 1919 में वृर्धा (महाराष्ट्र) राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की जिसे 1920 में अजमेर में स्थानान्तरित कर दिया गया।
नवीन राजस्थान(अजमेर) पत्रिका निकाली जिसका बाद में नाम तरूण राजस्थान कर दिया। वर्धा से राजस्थान केसरी समाचार पत्र निकाला। पथिक जी ने अजयमेरू नाम से उपन्यास निकाला। पथिक जी ने What are The Indian States? नामक पुस्तक लिखी।
Note: गांधी जी ने कहा था ‘बाकी सब बाते करते हैं पथिक सिपाही की तरह काम करता है।’
अर्जुन लाल सेठी
अर्जुन लाल सेठी का जन्म 1880 ई. में जयपुर के जैन परिवार में हुआ। इन्होंने इलाहबाद कॉलेज से बी.ए. किया।
NOTE: इन्हें चौमू के जिलाधीश का पद मिला। ये पद इन्होंने ये कहते हुए ठुकरा दिया कि ‘अर्जुनलाल सेठी नौकरी करेगा तो अंग्रेजो को बाहर कौन निकालेगा।’
अर्जुन लाल सेठी को जयपुर में जनजागृति का जनक, राजस्थान का दधीची, राजस्थान का लोक मान्य तिलक(राम नारायण चौधरी ने कहा) कहा जाता है।
अर्जुन लाल सेठी चौमू में देवी सिंह के यहां शिक्षक भी रहे। 1905 में अर्जुन लाल सेठ ने जैन शिक्षा प्रचारक समिति की स्थापना की। बाद में इसे सोसायटी नाम से अजमेर में स्थानान्तरित किया। 1908 में वापस जैन वर्धन पाठ्यशाला के नाम से जयपुर में स्थानान्तरित किया इस संस्था का मुख्य उद्देश्य क्रान्तिकारी युवक तैयार करना था इसमें अध्यापक विष्णुदत्त थे।
1912 हार्डिंग बम काण्ड में अमीरचन्द नामक मुखबीर ने बताया कि यह अर्जुन लाल सेठी के दिमाग की उपज है। 1915 में सहशस्त्र क्रांति की राजस्थान में जिम्मेवारी अर्जुन लाल सेठी को सौंपी गयी। अर्जुन लाल सेठी ने मोतीचन्द व चार विद्यार्थियों को ‘आरा’ बिहार मुगलसराय जैन सन्त को लूटने के लिए भेजा। इसमें मोतीचन्द को फांसी, विष्णुदत्त को आजीवन कारावास, अर्जुन लाल को 5 साल की सजा हुयी व ‘वेल्लूर जेल’, तमिलनाडु भेजा गया।
वैल्लूर जेल में सेठी जी ने 70 दिन तक भूख हड़ताल भी की थी। वेल्लूर से वापस आते समय महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक ने इनका स्वागत किया। बारदौली(गुजरात) में सरदार वल्लभ भई पटेल के नेतृत्व में सेठी जी का स्वागत हुआ। सेठी जी की बग्गी में घोड़ों के स्थान पर छात्रों ने स्वयं बग्गी खींचकर पूरे शहर में घुमाया। इसके बाद सेठी जी अजमेर आ गए व अपना नाम करीम खान रख लिया। काकौरी ट्रेन डकैती (अगस्त 1925) से भागे आसफाक उल्ला व मेरठ षड़यन्त्र केस से भागे शौकत अली को सेठी जी ने शरण दी। 22 सितम्बर 1941 ई. को अजमेर में उनका देहान्त हो गया। सेठी जी हिन्दू मुस्लिम समन्वयकारी क्रान्तिकारी थे। अंतिम दिनों में अजमेर में ख्वाजा साहिब की दरगाह के पास मदरसे में मुस्लिम बच्चों को पढ़ाते थे। मृत्यु के बाद इन्हें मुस्लिम समझकर दफना दिया गया।
NOTE: इनकी पुस्तकें शुद्र मुक्ति, परामर्श यज्ञ, मदन पराजय है।
नोट – शुद्र मुक्ति नाटक महेन्द्र कुमार ने लिखा था।
बालमुकुन्द बिस्सा
बालमुकुन्द बिस्सा का जन्म नागौर की डीडवान तहसील के पीलवा गांव में हुआ। इन्होंने नागौर में 1924 में चरखा एजेन्सी व खादी भण्डार की स्थापना की।
1942 में श्री जयनारायण व्यास के नेतृत्व में शुरू हुए जनान्दोलन के दौरान श्री बिस्सा को 9 जून, 1942 को भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया। जोधपुर जेल में भूख हड़ताल के कारण स्वास्थ्य खराब हुआ और बिन्दल अस्पताल में 19 जून 1942 को बिस्सा की मृत्यु हो गयी।
NOTE: बिस्सा को ‘राजस्थान का जतिनदास‘ भी कहते हैं, क्योंकि बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी जतिनदास की मृत्यु भी लाहौर जेल में सन 1929 में 63 दिन लंबी भूख हड़ताल के बाद ऐसे ही हुई थी।
सागरमल गोपा
सागरमल गोपा का जन्म 1900 ई. में जैसलमेर में हुआ। एक समृद्ध और प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार से संबंधित होने के नाते उनके पूर्वज जैसमलेर साम्राज्य के राजगुरू थे। उनके पिता श्री आख्या राज, जैसलमेर के राज्य में सेवारत थे।
माहेश्वरी नवयुवक मण्डल एवं सर्वहितकारिणी वाचनालय नामक संस्था के संस्थापक सागरमल गोपा ने जैसलमेर की
इन्होंने जैसलमेर में गुण्डाराज, आजादी के दीवानें, रघुनाथ सिंह का मुकदमा पुस्तकें लिखी। जिसमें इन्होंने जैसलमेर राजशाही के काले कारनामों की आलोचना की। जिसके चलते इन्हें राजद्रोह के आरोप में 24 मई, 1941 को जेल में डाल दिया गया।
इनके समय में जैसलमेर का शासक जवाहर सिंह था व जेलर गुमान सिंह था। 4 अप्रैल 1946 के दिन थानेदार गुमानसिंह ने मिट्टी का तेल डालकर इन्हें जिंदा जला दिया गया।
इसकी जांच के लिए गोपाल स्वरूप पाठक समिति का गठन किया गया। समिति ने इसे आत्महत्या करार दिया। इनकी मृत्यु के बाद खून का बदला खून नारा दिया गया।
इस महान शहीद को भारत सरकार और डाक विभाग द्वारा ‘स्वतंत्रता के लिए भारत का संघर्ष’ शीर्षक श्रृंखला के लिए 29 दिसंबर 1986 को एक स्मारक टिकट जारी करके श्रद्धांजलि दी गई। NOTE: इंदिरा गांधी नहर की एक शाखा भी उनके नाम पर है।
सेठ दामोदर दास राठी
सेठ दामोदर दास राठी का जन्म 1884 ई. में जैसलमेर के पोकरण में हुआ। इनके पिता खींवराजजी राठी व्यापार करने के लिये पोकरण से ब्यावर आ गये। यहां इन्होंने 1889 में राजस्थान की प्रथम सूती वस्त्र मिल ‘द कृष्णा मिल’ की स्थापना की। उन्होंने श्यामजी कृष्ण वर्मा को श्रीकृष्णा मिल का मैनेजर नियुक्त किया। 1915 में इन्होंने सहस्त्र क्रान्ति में गोपालसिंह खरवा की मदद की। इस कारण इन्हें सहस्त्र क्रान्ति का भामाशाह कहा जाता है।
राठी जी ने 1916 में ब्यावर में होमरूल लीग की स्थापना की। ब्यावर में ही सनातन धर्म व नवभारत विधालय की स्थापना की।
सेठ दामोदर दास राठी का स्वर्गवास 2 जनवरी सन् 1918 में 34 साल की अल्प आयु में ही हो गया।
हीरालाल शास्त्री
हीरालाल शास्त्री का जन्म 24 नवम्बर 1899 में जोबनेर, जयपुर में हुआ। इन्होंने 1935 ई. में ‘शान्ता बाई जीवन कूटीर संस्थान (निवाई, टोंक)’ की स्थापना की जिसे वर्तमान में वनस्थली विद्यापीठ कहा जाता है।
1938 में जमनालाल बजाज के साथ जयपुर प्रजामण्डल का पुनर्गठन किया।
1942 ई. में भारत छोड़ो आंदोलन के समय जयपुर सरकार के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल व शास्त्री जी के मध्य ‘जेन्टलमेन एग्रीमेन्ट’ हुआ। इस समझौते के अनुसार, जयपुर प्रजामण्डल भारत छोड़ों आन्दोलन में भाग नहीं लेगा। शास्त्री जी वे राजस्थान के प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री (30 मार्च 1948 से 5 जनवरी 1951 तक) बने। इनको शपथ राजप्रमुख मानसिंह द्वितीय ने दिलायी थी।
शास्त्री जी ने ‘प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र’ के नाम से आत्मकथा लिखी व ‘प्रलय प्रतिक्षा नमोः नमः’ नामक गीत लिखा।
हीरालाल शास्त्री का देहावसान 28 दिसम्बर, 1974 को हुआ।
जमनालाल बजाज
जमनालाल बजाज का जन्म 1889 को काशी का बास, सीकर में हुआ।
अभिभावक :पिता– कनीराम, माता– बिरदीबाई
जमनालाल बजाज का विवाह 13 वर्ष की उम्र में ही नौ वर्ष की जानकी से कर दिया गया। इनको राजस्थान के भामाशाह के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें 1920 के नागपुर अधिवेशन में गांधी जी के 5वें पुत्र की उपाधि मिली।
बजाज जी अपने आप को गुलाम न. 4 (पहला गुलाम भारत, दूसरा – देवी राजा, तीसरा सीकर) कहते थे। बजाज जी ने 1921 में वर्धा में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। 1925 में चरखा संघ की स्थापना की। बजाज जी ने सर्वप्रथम उतरदायी शासक की स्थापना की मांग की थी।
जमनालाल बजाज देश के प्रथम नेता थे, जिन्होंने वर्धा में अपने पूर्वजों के ‘लक्ष्मीनारायण मंदिर‘ के द्वार 1928 में ही अछूतों के लिए खोल दिये थे।
मृत्यु- 11 फ़रवरी, 1942, वर्धा
जयनारायण व्यास
जयनारायण व्यास का जन्म 1899 ई. में जोधपुर में हुआ। इनको ‘लक्कड़ का फ्क्कड़, धून के धनी, लोकनायक, शेर ए राजस्थान, मास्साब’ आदि नामों से जाना जाता है।
मृत्यु 14 मार्च, 1963 (दिल्ली)
जोधपुर स्थित जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय उनके नाम पर रखा गया है।
1924 ई. में इन्होंने मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना की। 1927 में तरूण राजस्थान पत्रिका के प्रधान सम्पादक बने। विजयसिंह पथिक भी इसके सम्पादक थे।
व्यास जी ने 1936 में मुम्बई से अखण्ड भारत पत्रिका निकाली। इन्होंने राजस्थानी भाषा का प्रथम समाचार-पत्र आगीबाण प्रकाशित किया और पोपाबाई री पोल व मारवाड़ की अवस्था नामक पुस्तिकाएं प्रकाशित की।
Note: जयनारायण व्यास राजस्थान के एकमात्र मनोनित व निर्वाचित मुख्यमंत्री है। |
गोपाल सिंह खरवा
- जन्म: 1872, राजस्थान
- मृत्यु: 1939
- घराना: खरवा
- पिता: राव माधोसिंह
गोपाल सिंह खरवा का जन्म खरवा ठिकाना अजमेर में हुआ। इन्हें ‘सहशस्त्र क्रान्ति’ का जनक कहा जाता है। इन्होंने 1910 ई. में केसरीसिंह बारहठ के साथ मिलकर वीर भारत सभा की स्थापना की। वह एक लोकप्रिय और ब्रिटिश विरोधी शासक थे, जिसके कारण गोपाल सिंह को चार साल तक टॉडगढ़ किले की जेल में रखा गया था। कुछ दिनों बाद वह टॉडगढ़ से फरार हो गये। लेकिन सलेमाबाद में पकड़े गए और तिहाड़ जेल में बंद कर दिए गए।
NOTE: वीर भारत समाज की स्थापना विजय सिंह पथिक ने की थी।
वे वर्ष 1924 के लिए अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष थे।
1989 में, भारत के डाक विभाग ने उनके सम्मान में उनकी तस्वीर को दर्शाते हुए एक डाक टिकट जारी किया।
Q. राजस्थान के किस क्रांतिकारी को तिहाड़ जेल में रखा गया था?
A. अर्जुनलाल सेठी
B. गोपाल सिंह खरवा
C. केसरी सिंह बारहठ
D. प्रतापसिंह बारहठ
Answer: B
केसरीसिंह बारहठ
- जन्म: 21 नवम्बर, 1872 जन्म भूमि देवपुरा, शाहपुरा, राजस्थान
- मृत्यु: 14 अगस्त, 1941
- अभिभावक: कृष्ण सिंह बारहट, माता– बख्तावर कँवर
- संतान: प्रताप सिंह बारहट
केसरीसिंह बारहठ का जन्म 1872 ई. को भीलवाड़ा की शाहपुरा रियासत के देवखेड़ा गांव में एक चारण समाज के परिवार में हुआ। ठाकुर केसरी सिंह बारहठ एक भारतीय क्रांतिकारी नेता, स्वतंत्रता सेनानी और राजस्थान, भारत के शिक्षाविद् थे।
1903 ई. में वायसराय लार्ड कर्जन ने दिल्ली में दरबार लगाया। महाराजा फतेहसिंह को भी दरबार में बुलाया। फतेहसिंह जब दरबार में जा रहे थे उस समय केसरीसिंह बारहठ ने डिंगल भाषा में ‘चेतावनी चुंगठिया’ नामक 13 सोरठे गोपाल सिंह खर्वा के हाथों भिजवाए जिन्हें पढ़कर महाराजा का स्वाभिमान जागा और उन्होंने दरबार में भाग नहीं लिया।
केसरीसिंह बारहठ ने 1910 ई. में वीर भारत सभा की स्थापना की। गोपाल सिंह खर्वा के साथ मिलकर की थी।
NOTE: वीर भारत समाज की स्थापना विजय सिंह पथिक ने की थी।
शाहपुरा के राजा नाहर सिंह के सहयोग से जोधपुर के महन्त प्यारेलाल की हत्या के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 20 वर्ष की सजा के तौर पर हजारीबाग केन्द्रीय जेल, झारखंड में भेजा गया। इन्हें पुत्र प्रतापसिंह की शहादत का पता जेल में चला था तब इन्होंने कहा था कि भारत माता का पुत्र भारत माता के लिए शहीद हो गया। केसरीसिंह बारहठ को योगीपुरूष व राजस्थान केसरी भी कहा जाता है।(मेवाड केसरी – महाराणा प्रताप)
सन 1920-21 में वर्धा में केसरी जी के नाम से ‘राजस्थान केसरी‘ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया गया था, जिसके संपादक विजय सिंह पथिक थे। वर्धा में ही उनका महात्मा गाँधी से घनिष्ठ संपर्क हुआ।
वर्तमान में बारहठ जी का परिवार माणकमहल कोटा में रहता है।
केसरीसिंह बारहठ की पुस्तक – प्रताप चरित्र, राजसिंह चरित्र, दुर्गादास चरित्र, रूठी रानी।
NOTE: रास बिहारी बोस ने कहा था – ‘एकमात्र बारहठ परिवार है जिसने भारत मां को आजाद कराने के लिए पूरे परिवार को झोंक दिया। |
जोरावरसिंह बारहठ
जोरावरसिंह बारहठ का जन्म 1883 ई. में उदयपुर में हुआ। इनका पैतृक गांव भीलवाड़ा की शाहपुरा तहसील का देवखेड़ा है। एक भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। उनके भाई केसरी सिंह बारहठ और उनके पुत्र प्रताप सिंह बारहठ भी महान क्रांतिकारी थे।
जोरावरसिंह का विवाह कोटा रियासत के ठिकाने अतरालिया के चारण ठाकुर तख्तसिंह की बेटी अनोप कंवर से हुआ।
जोरावर सिंह देश की आजादी के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से आरा (बिहार) के निमाज के महंत की हत्या और लूट में भी शामिल थे।
23 दिसंबर 1912 में दिल्ली के चांदनी चौक में पीएनबी बैंक के उपर से हार्डिग पर बम फेंका। लेकिन लक्ष्य से चूक गये जब वह पास में खड़ी एक महिला के हाथ में लग गया और हार्डिंग बच गए। स्वतंत्रता आंदोलन की इस महत्वपूर्ण घटना ने ब्रिटिश साम्राज्य के दिल को झकझोर कर रख दिया था। जोरावर सिंह प्रताप सिंह वहां से सकुशल निकल आए और कोटा-बूंदी के उबड़-खाबड़ जंगलों में आ गए।
इसके बाद जोरावरसिंह मध्य प्रदेश के करंडिया एकलगढ़ (मन्दसौर) में साधु अमरदास बैरागी के नाम से भूमिगत रहे थे। इनकी मृत्यु निमोनिया के कारण कोटा के अंतलिया हवेली में हुई थी।
17 अक्टूबर, 1939 में उनका देहावसान हुआ। एकल-गढ़ (मप्र) में उनका स्मारक है।
NOTE: जोरावर सिंह बारहठ को राजस्थान का चन्द्रशेखर कहा जाता है। |
प्रतापसिंह बारहठ
1893 ई. में शाहपुरा में जन्मे कुंवर प्रताप सिंह को देशभक्ति विरासत में मिली थी। इनके पिता केसरी सिंह बारहठ व चाचा जोरावर सिंह बारहठ प्रसिद्द क्रांतिकारी थे।
क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद से प्रेरणा लेकर देश को स्वतंत्र करवाने में जुट गए थे।
प्रतापसिंह बारहठ (केसरीसिंह बारहठ के पुत्र) ने अपने चाचा जोरावरसिंह बारहठ के साथ मिलकर हार्डिंग की हत्या की योजना बनाई थी। हार्डिंग के जुलुस पर बम जोरावरसिंह ने फेंका था। प्रताप यहां से सिन्ध चले गए। 1914-15 ई. में बनारस षड़यंत्र का आरोप तय किये जाने पर बरेली जेल में डाल दिए गए।
NOTE: बरेली में ही क्लीवलैंड ने प्रताप सिंह को राज उगलवाने के लिए कहा कि :- “तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए बहुत रोती है”। तब प्रताप ने जवाब दिया की ‘मेरी मां रोती है तो रोने दो, “लेकिन मै सैकड़ो माताओं के रोने का कारण नहीं बन सकता हूँ”, |
अमानुषिक यातनाओं के कारण 1918 ई. में मात्र 22 वर्ष की आयु में प्रताप सिंह शहीद हो गए थे. हार कर क्लीवलैंड को यह कहना पड़ा की “मैंने आज तक कुंवर प्रताप जैसा युवक नहीं देखा”
तेज कवि
तेज कवि जैसलमेरी का जन्म वर्ष 1938 में हुआ था, उन्होंने, श्री कृष्णा कंपनी के नाम से राममत का अखाड़ा शुरू किया था। इन्होंने 1943 में स्वतन्त्र बावनी ग्रन्थ लिखा था। जिसे इन्होंने गांधी जी को भेंट किया था।
तेज कवि ने कमिश्नर के घर के आगे जाकर कहा था ‘कमिश्नर खोल दरवाजा हमें भी जेल जाना है, हिन्द तेरा है न तेरे बाप का, लगाया कैसा बंदीयाना है।’
Notes: तेज कवि की प्रमुख रचना आई नाथ अड़तालीसी, स्वतन्त्र बावनी, ‘काँग्रेस की लावणी’, ‘नेताओँ की लावणी’ और राजा जोग भर्तृहरि का खेल है| जैसलमेर के कवि जिन्होँने कविताओँ के
गोविन्द गिरी
गोविन्द गिरी का जन्म 1858 ई. में डुंगरपुर जिले के बांसिया गांव के बणजारा परिवार में हुआ। गोविन्द गिरि भारत के एक सामाजिक और धार्मिक सुधारक थे जिन्होने वर्तमान राजस्थान और गुजरात के आदिवासी बहुल सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘भगत आन्दोलन‘ चलाया। महर्षि दयानन्द सरस्वती की प्रेरणा से उन्होंने अपना जीवन देश, धर्म और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया।
इन्होंने 1883 ई. में सिरोही में सम्पसभा की स्थापना की, और मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा) को अपना कार्यस्थल बनाया। पहला सम्पसभा अधिवेशन 1903 में मानगढ़ बांसवाड़ा में हुआ। डूंगरपुर व बांसवाड़ा में भील जनजाति में सामाजिक जागृति उत्पन्न करने के लिए भगत आंदोलन चलाय। यह आंदोलन मुख्यतः भील जनजाति के किसानों द्वारा शुरू किया गया था। सरजी भगत व गोविन्द गुरु ने मिलकर इसकी शुरुआत की।
17 नवंबर, 1913 में गोविन्द गिरी की अध्यक्षता में मानगढ़ सम्मेलन हुआ जिस पर गोलिया चलायी गयी। लगभग 1500 भील मारे गए।
30 अक्तूबर, 1931 को ग्राम कम्बोई (गुजरात) में उनका देहान्त हुआ।
NOTE: मेवाड़ भील कोर का गठन खैरवाड़ा में 1841AD में किया गया था।
मोतिलाल तेजावत
मोतीलाल तेजावत का जन्म कोल्यार गांव उदयपुर के ओसवाल परिवार में हुआ। मोतीलाल तेजावत ने भीलों को अन्याय, अत्याचार व शोषण से मुक्त करने के लिए 1921 ई. में मातृकुण्डिया से ‘एकी’ आंदोलन चलाया।
‘वनवासी संघ‘ की स्थापना मोतीलाल तेजावत ने की थी।
नीमड़ा गांव में 7 मार्च, 1922 को मोतीलाल तेजावत द्वारा आयोजित सम्मेलन में अंधाधुंध फायरिंग में 1200 भील मारे गए। नीमड़ा हत्याकांड दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है। श्री तेजावत के पैर में भी गोली लगी; पर उनके साथी उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर ले गये। अगले आठ वर्ष वे भूमिगत रहकर काम करते रहे। 1929 में गांधी जी के कहने पर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। 1929 से 1936 तथा 1944 से 1946 तक वे कारावास में रहे।
1947 के बाद भी वे वनवासियों में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन के काम में ही लगे रहे। पांच दिसम्बर, 1963 को उनका निधन हुआ।
मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में आदिवासियों ने 21 सूत्री मांगों को लेकर उदयपुर में धरना दिया । अन्तः महाराणा ने इनकी 18 मांगे मान ली, मगर तीन प्रमुख मांगे जंगल से लकड़ी काटने, बीड में से घास काटने तथा सूअर मारने से सम्बन्धित थी, नहीं मानी।
मोतीलाल तेजावत ने नारा दिया था ‘ना हाकिम ना हुकुम’।
Note: मोतीलाल तेजावत को आदिवासियों का मसीहा या बावजी कहा जाता है। |
गोकुल भाई भट्ट
गोकुल भाई भट्ट का जन्म 1898 हाथल गांव सिरोही में हुआ। उनका पूरा नाम गोकुल भाई दौलतराम भट्ट था। गोकुल भाई भट्ट गांधी जी के रचनात्मक कार्यों के प्रमुख सहयोगी रहे।
उन्होंने जल संरक्षण पर काफ़ी बल दिया और लोगों को इसके प्रति जागरुक भी किया।
पुरस्कार-उपाधि – ‘पद्मभूषण’ (1971)
इन्होंने 1939 ई. में सिरोही प्रजामण्डल की स्थापना की। उन्होंने लोगों को राजा के द्वारा किए जा रहे शोषण के विरुद्ध संगठित किया। इस लिए उन्हें 1939 में गिरफ़्तार भी कर लिया गया था। जब राजा ने झण्डे पर रोक लगाई तो गोकुलभाई की प्रेरणा से लोग झण्डे वाली टोपियां पहनने लगे।
1947 में जब सिरोही रियासत की प्रथम लोकप्रिय सरकार बनी तो उसके प्रधानमंत्री गोकुलभाई भट्ट ही बने। 1948 की जयपुर कांग्रेस की स्वागत समिति के अध्यक्ष भी वही थे।
गोकुलभाई भट्ट की मृत्यु 6 अक्टूबर, 1986 को हुई थी ।
NOTE: इन्हें राजस्थान के गांधी के नाम से भी जाना जाता है। |
श्याम जी कृष्ण वर्मा
- जन्म: 04 अक्टूबर 1857, मांडवी, कच्छ जिला, गुजरात
- मृत्यु: 30 मार्च 1930, जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड
वे पहले भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम॰ए॰ और बार-ऐट-ला की उपाधियाँ मिलीं थीं। राजस्थान में सभी क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्त्रोत एवं मार्गदर्शक थे। इन्हें ‘राजस्थान में क्रान्तिकारियों का पितामह’ भी कहा जाता है। 1885 से 1897 तक रतलाम, उदयपुर व जूनागढ़ रियासतों में दीवान पद पर रहे। ये स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की प्रेरणा से स्वदेशी विचारधारा के प्रबल समर्थक हो गए।
इन्होंने 1904 में लंदन में इण्डिया हाउस की स्थापना की।
स्वामी गोपालदास
स्वामी गोपाल दास (1822-1939) चूरु जिले के भैंरुसर गाँव में चौधरी बींजाराम कसवां के घर पैदा हुये।
1907 में बालिका शिक्षा के लिए चूरू मे पुत्री पाठशला बनवाई। इसी समय हरजिन शिक्षा के लिए कन्हैया लाल ढूढ़ के साथ मिलकर ‘कबीर पाठशाला’ की स्थापना की। जनता को अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए सर्वहित कारिनी सभा बनाई।
26 जनवरी 1930 को स्वामी गोपालदास व चन्दनमल बहड़ ने चूरू धर्मस्तूप पर तिरंगा लहराया।
1932 के “बीकानेर षंडयंत्र केस” मे ईन्हे पकड़ कर जेल मे डाल दिया था! बीकानेर प्रजामंडल मे जनजागृति का श्रैय स्वामी जी को जाता है, ये एक महान नेतृत्व कर्ता थे।
स्वामी केशवानंद
शिक्षा संत के रूप में प्रसिद्ध स्वामी केशवानंद का जन्म सीकर जिले के मंगलूणा गाँव में 1883 ई में चौधरी ठाकरसी के घर हुआ। स्वामी केशवानंद के बचपन का नाम बीरमा था। 1904 में फाजिल्का में उदासी साधु कुशलदास के सम्पर्क में आये, यहाँ इन्होने संस्कृत सीखी । प्रयाग में कुम्भ मेला देखने के दौरान इनके संस्कृत के शुद्ध वाचन से प्रभावित होकर अवधूत हीरानन्द ने इनका नाम केशवानंद रख दिया ।
इन्होंने हनुमानगढ़ जिले की संगरिया तहसील में ग्रामोत्थान विद्यापीठ की स्थापना की और राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया।
गांधीजी से प्रभावित होकर केशवानंद ने 1921 से 1931 ई तक स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लिया और जेल गये । इसी दौरान इन्होने 1925 ई में अबोहर में साहित्य सदन की स्थापना की. और यहीं से हिंदी मासिक पत्रिका दीपक का प्रकाशन किया।
इन्होने राष्ट्र सेवा, दलितोंउद्धार एवं शिक्षा प्रसार में अपना जीवन लगा दिया, उन्हें 1952 से 1964 ई तक राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया । 13 सितम्बर 1972 को दिल्ली में इनकी मृत्यु हुई ।
मोहनलाल सुखाड़िया
मोहन लाल सुखाड़िया का जन्म 31 जुलाई 1916 को झालावाड़, राजस्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम पुरुषोत्तम लाल सुखाड़िया था जो मुंबई और सौराष्ट्र के अच्छे क्रिकेटरों में से गिने जाते थे। वे एक जैन परिवार से संबंध रखते थे।
‘आधुनिक राजस्थान के निर्माता’ मोहनलाल सुखाड़िया ने 17वर्ष तक मुख्यमंत्री रहकर ‘राजस्थान में सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री’ रहने का गौरव प्राप्त किया। इसके बाद में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के राज्यपाल भी रह चुके थे।
मोहनलाल सुखाड़िया की मृत्यु 2 फरवरी 1982 को बीकानेर में हुई।
डूंगजी-जवाहरजी
डूंगजी व उनके भतीजे जवाहर सिंह बठोठ पाटोदा सीकर के ठाकुर थे। 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में सीकर क्षेत्र के काका-भतीजा डूंगजी-जवाहरजी प्रसिद्ध देशभक्त हुए। डूंगजी शेखावटी ब्रिगेड में रिसालेदार थे। बाद में नौकरी छोड़कर धनी लोगों से देश की आजादी के लिए धन मांगने लगे और धन न मिलने पर यहां डाका डालने लगे। इस धन से वे निर्धन व्यक्तियों की भी सहायता करते।
डूंगजी के साले भैरूसिंह ने उन्हें धोखे से पकड़वा दिया। अंग्रेजों ने उन्हें आगरा के दुर्ग में बंद कर दिया। जवाहरजी ने उन्हें लोटिया जाट (लोठूजी निठारवाल, सीकर) और करणा मीणा की सहायता से छुड़वाया।
भोगी लाल पंड्या
भोगीलाल पंड्या का जन्म 13 नवम्बर, 1904 को डूंगरपुर जिले के सीमलवाड़ा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पीताम्बर पंड्या और उनकी माता का नाम श्रीमती नाथीबाई था। 1920 में उनका विवाह मणिबेन के साथ हुआ था। डूंगरपुर राज्य में आदिवासियों के कल्याणार्थ कार्य किया।
- इन्होंने 1919 ई. को वागड़ सेवा मंदिर एवं विद्यलाय की स्थापना की
- मार्च 1938 को डूंगरपुर मे वनवासी सेवा संघ की स्थापना की
- 1969 में उन्हें राज्य के राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का अध्यक्ष भी बनाया गया।
- 1944 ई. में डूंगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना की।
- 1952 और 1957 के विधानसभा चुनाव में सागवाडा से चुने गए थे
- आदिवासियों, पीड़ितों एवं वंचितों के लिए आजीवन कार्य करने वाले भोगीलाल जी को 1976 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से नवाजा गया।
- 31 मार्च 1981 को भोगीलाल पंड्या की मृत्यु हो गई थी ।
उपनाम: ‘वागड के गाँधी‘ |
हरिभाऊ उपाध्याय
हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन 1892 ई० में हुआ। हरिभाऊ उपाध्याय ने हटूण्डी (अजमेर) में गांधी आश्रम व महिला शिक्षा सदन की स्थापना की। अजमेर राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने।
रचनाएँ
- स्वतंत्रता की ओर, बापू के आश्रम में, साधना के पथ पर, दूर्वादल, सर्वोदय की बुनियाद, आचार्य द्विवेदीजी, मेरी जीवनी, युगधर्म, त्यागभूमि सरस्वती, हिन्दी नव जीवन।
बलवन्त सिंह मेहता
बलवन्त सिंह मेहता का जन्म 8 फरवरी, 1900 को उदयपुर में हुआ। भारतीय राजनीतिज्ञ और गुजरात के दूसरे मुख्यमंत्री थे। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया था।
उन्होंने 1915 ई. में ‘प्रताप सभा’ की स्थापना की। 1938 में इन्हीं के नेतृत्व में मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की गई।
1943 ई. में उदयपुर में ‘वनवासी छात्रावास’ की स्थापना की।
टीकाराम पालीवाल
टीकाराम पालीवाल का जन्म 24 अप्रैल 1909 को सवाईमाधोपुर जिले के मंडावर गांव में हुआ था। टीकाराम पालीवाल ने 1929 ई. में दिल्ली में ‘विद्यार्थी यूथ लीग’ की स्थापना की। 1938 ई. में सवाईमाधोपुर में राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ गए।
पालीवाल दौसा जिले की महुआ विधानसभा से साल 1952 में विधायक निर्वाचित होकर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। 3 मार्च, 1952 को राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने।
वैद्य मंगाराम
बीकानेर रियासत में आजादी के आंदोलन का जनक कहा जाता है 1936 में इन्होंने बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना की 1946 में यह बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष बने और दूधवाखारा किसान आंदोलन में भाग लिया।
सरदार हरलालसिंह
सरदार हरलालसिंह का जन्म झुंझुनूं जिले के हनुमानपुरा गांव में 1901 ई. में हुआ था। सरदार हरलालसिंह अशिक्षित थे। हरलालसिंह ने रियासती एवं जागीरदारी जुल्मों का डटकर विरोध किया।
किसान एवं प्रजामण्डल आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। ‘विद्यार्थी भवन झुंझुनूं’ की स्थापना कर उसे राजनीतिक एवं सामाजिक गतिविधियों का केन्द्र बनाया। कुशल नेतृत्व के कारण उनके सहयोगियों ने उन्हें ‘सरदार’ उपाधि दी।
कप्तान दुर्गाप्रसाद
कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी का जन्म 1906 ई. में नीम का थाना में अग्रवाल परिवार में हुआ। दुर्गा प्रसाद चौधरी स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार एवं समाजसेवी थे। उनके चार भाई और तीन बहिनें थीं। बड़े भाई रामनारायण चौधरी प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अर्जुनलाल सेठी की ‘वर्धमान पाठशाला’ में तथा उसके उपरान्त सांभर तथा कानपुर में हुई। चौधरी ने ‘राजस्थान सेवा संघ’ के अन्तर्गत बिजौलिया में कार्य किया और 1903 ई. में स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गए।
दुर्गा प्रसाद चौधरी ने एक पत्रकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। इन्होंने अजमेर और जयपुर से प्रकाशित ‘दैनिक नवज्योति’ का लंबे समय तक सम्पादन किया।
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राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व MCQ
Q. भारतीय राज्यों के साथ ब्रिटिश सरकार के संबंधों के अध्यय पर प्रकाश डालने वाली ‘लॉर्ड हेस्टिंग्स एंड द इंडियन स्टेट्स’ पुस्तक को किसने लिखा है?
A. मोहन सिंह मेहता
B. सीताराम लालस
C. श्यामलदास दधवाढ़िया
D. विजयदान देथा
Answer: A
Q. क्रांतिकारी, जिसे महन्त प्यारेलाल हत्याकांड में सजा मिली थी?
A. जोरावरसिंह
B. श्यामजी कृष्ण वर्मा
C. केसरीसिंह बारहठ
D. विजयसिंह पथिक
Answer: C