गिरि सुमेल युद्ध का इतिहास

गिरि सुमेल युद्ध का इतिहास: गिरी-सुमेल का युद्ध राजस्थान के  ब्यावर जिले में जैतारण उप-मंडल के गिरी और सुमेल गांवों के पास मारवाड़ शासक मालदेव एवं अफगान शासक शेरशाह सूरी के मध्य 5 जनवरी 1544 ई. में लड़ा गया था। जिसमें शेरशाह सूरी की विजय हुई।

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मारवाड़ की संस्कृति और मातृभूमि की रक्षा के लिए कई युद्ध हुए, लेकिन उनमें गिरी सुमेल युद्ध आज भी शूरवीरों के अदम्य साहस के लिए जाना जाता है।

Battle of giri Sammel

मुहणोत नैणसी ने बताया है कि शेरशाह सूरी ने इस युद्ध को जीतने के लिए छल कपट का सहारा लिया था। इसके लिए शेरशाह सूरी ने वीरमदेव को माध्यम बनाया।

NOTE: फरीद, जिसे शेर शाह सूरी के नाम से भी जाना जाता है, एक शक्तिशाली अफगान सरदार था।

गिरी-सुमेल युद्ध के कारण

➤वीरमदेव मेड़ता के शासक थे तथा वीरमदेव पहले मालदेव राठौड़ के ही सामंत हुआ करते थे परंतु मालदेव राठौड़ और वीरमदेव के मध्य दरियाजोश नाम के हाथी को लेकर विवाद होने की वजह से मालदेव राठौड़ ने वीरमदेव से मेड़ता और अजमेर का क्षेत्र छीन लिया था।

➤मालदेव कि वीरमदेव के साथ अनबन का फायदा शेरशाह ने उठाया। इस वजह से वीरमदेव सहायता के लिए शेरशाह सूरी से मिल गए थे। इसके आगे मुहणोत नैणसी कहते हैं कि शेरशाह सूरी के कहने पर वीरमदेव ने जैता और कुंपा को दो अलग अलग पत्रो के साथ 20-20 हजार रुपए की रकम पहुंचवायी।

➤वीरमदेव ने जैता को 20 हजार की रकम देकर उनसे तलवारे मंगवाई और कुंपा को 20 हजार देकर उनसे कंबल मंगवाए। इसके बाद शेरशाह ने अपने कुछ गुप्तचरो और पत्रों के माध्यम से यह बात प्रसारित करवा दी कि जैता और कुंपा को शेरशाह ने अपनी ओर मिला लिया है।

➤शक होने पर मालदेव राठौड़ ने जब जैता और कुंपा के कैंप की छानबीन करवाई तो वहां उन्हें 20 हजार की रकम मिली। इसके बाद मालदेव राठौड़ के मन में यह आशंका आ गई कि मेरे सेनानायक शेरशाह सूरी से मिल गए हैं। इस शंका से मालदेव राठौड़ ने इस युद्ध को लड़ने का मन त्याग दिया और युद्ध से पहले ही आधी सेना लेकर युद्ध भूमि से पलायन कर गए। गिरी सुमेल से मालदेव राठौड़ जोधपुर पहुंचे और वहां की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने का काम शुरू कर दिया।

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➤गिरी-सुमेल युद्ध में शेरशाह के पास 80 हजार सैनिकों की सेना थी और 40 तोपे थी तो दूसरी तरफ गिरी में डेरा डाले बैठे मालदेव के पास महज 15 हजार ही सैनिक थे उसमें से भी मालदेव आधे सैनिक जैता और कुंपा पर संदेह होने के कारण अपने साथ जोधपुर वापस ले गए थे। इस प्रकार जैता और कुंपा के साथ मात्र 7 से 8 हजार ही राजपूत योद्धा थे।

➤4 जनवरी 1544 ई.  को मारवाड़ के शासक मालदेव ने युद्ध क्षेत्र छोड़ने का ऐलान कर दिया और सेना को वापस मारवाड़ लौटने का फरमान सुनाया गया। जब मालदेव ने जैता और कुंपा के कैंप की तलाशी ली थी उसके बाद जैता और कुंपा को यह पता चल गया था कि मालदेव राठौड़ को उन पर संदेह है।

➤इस बात से जैता और कुंपा को गहरा आघात पहुंचा अतः अपने स्वाभिमान, अपनी देशभक्ति, राज्य के प्रति अपने समर्पण और मातृभूमि की रक्षा के लिए जैता और कुंपा ने युद्ध क्षेत्र नहीं छोड़ने का ऐलान करते हुए युद्ध का शंखनाद कर दिया।

जैता व कुंपा काैन थे?

राव जैता और कुंपा मारवाड़ प्रांत में आसोप ठिकाने के सरदार थे। कुंपा रिश्ते में जैता का काका लगते थे। दोनों मालदेव की सेना में सेनापति थे। इन्होंने अजमेर के शासक विरमदेव को हराकर अजमेर, मेड़ता और डीडवाना के इलाके पर मारवाड़ का पंचरंगी झंडा लहराया था।

➤5 जनवरी 1544 की सुबह के समय सुमेर की धरती पर भीषण युद्ध हुआ शेरशाह सूरी को यकीन था कि उसका तोपखाना और 80 हजार सैनिक राजपूताना के 8 हजार सैनिकों को देखते ही देखते कुचल कर रख देंगे। युद्ध भूमि में अफगान तोपों का मुकाबला राजपूतों की तलवारों से था। राजपूताना के वीर तूफान बन कर शेरशाह की सेना को वैसे ही समाप्त कर रहे थे जैसे कोई जलजला बड़े जंगल को जलाकर राख कर देता है।

➤जैता और कुंपा की सेना ने शेरशाह की सेना में ऐसी तबाही मचाई कि एक वक्त ऐसा भी आया जब शेरशाह खुद अपने घोड़े की जीन कसकर युद्ध भूमि से भागने को तैयार हो गया था। इसी बीच शेरशाह सूरी का एक अन्य सेनापति जलाल खान अपनी सहायक सेना के साथ गिरी सुमेल युद्ध भूमि में पहुंच गया। इस प्रकार मुगलों की शक्ति और बढ़ गई।

➤इतनी अत्यधिक सेना होने के बाद भी शेरशाह को इस युद्ध में जीतने की बहुत कम आशा थी। इसी बीच उसके सेनापति खबास खान ने खबर दी कि जैता और कुंपा मारे गए हैं और उसकी सेना ने भयंकर नुकसान झेलकर आखिरकार जंग जीत ली है तब कहीं जाकर शेरशाह सूरी ने राहत की सांस ली।

गिरी सुमेल युद्ध समाप्ति पर शेर शाह ने कहा कि

➤गिरी सुमेल के युद्ध को जीतने में शेरशाह सुरी को पसीने आ गए थे। युद्ध समाप्ति पर शेर शाह ने कहा कि ”बोल्यो सूरी बैन यूं, गिरी घाट घमसाण, मुठी खातर बाजरी, खो देतो हिंदवाण। यानी आज ‘एक मुट्‌ठी भर बाजरे के लिए मैं पूरी हिन्दुस्तान की बादशाहत को खो देता’।

➤इतिहास के पन्नों में इसका तात्पर्य है कि मारवाड़ की भूमि पर बारिश में बाजरे की फसल ही पैदा होती है और इस भूमि की खातिर युद्ध में यदि सूरी हार जाता ताे वह दिल्ली की सल्तनत भी खाे बैठता।

युद्ध का परिणाम

➤अगर मालदेव राठौड़ ने अपने सेनानायको जैता और कुंपा पर जरा सा भी विश्वास किया होता तो शेरशाह सूरी को बहुत ही आसानी से हराया जा सकता था और भारत का प्रतिनिधित्व भी मालदेव राठौड़ के द्वारा किया जा सकता था परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका। शेरशाह सूरी के हाथो मालदेव राठौड़ की हार का सबसे बड़ा परिणाम यही साबित हुआ।

➤इस प्रकार वीर सेना नायक जैता और कुंपा ने अदभुत वीरता दिखाकर वीरगति को प्राप्त किया।

NOTE: गिरि सुमेल नामक स्थान वर्तमान में  ब्यावर जिले के जैतारण के निकट स्थित है।
NOTE: मालदेव युद्ध से पहले भाग कर सिवाना दुर्ग (बालोतरा) में आ गया था।

FAQs

गिरी सुमेल का युद्ध कब और किसके मध्य लड़ा गया?

गिरी-सुमेल का युद्ध मारवाड़ शासक मालदेव एवं अफगान शासक शेरशाह सूरी के मध्य 5 जनवरी 1544 ई. में लड़ा गया था।

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