राजस्थान का पहला स्वचालित रोप-वे: खोले के हनुमान जी- जयपुर शहर के खोले के हनुमान जी मंदिर परिसर में प्रदेश का पहला स्वचालित और जयपुर का सबसे बड़ा पेसेंजर रोप-वे का निर्माण कार्य शुरू हो गया है। रोप-वे के निर्माण में जयपुर की विरासत, शिल्पकला और वैभव की छटा देखने को मिलेगी।
जयपुर कलक्टर प्रकाश राजपुरोहित ने शुक्रवार को खोले के हनुमान मंदिर परिसर में रोप-वे निमार्ण का निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि इस रोप-वे का नाम अन्नपूर्णा माता रोप-वे होगा जो कि प्रदेश का पांचवां और जयपुर जिले का सामोद हनुमानजी रोप-वे के बाद दूसरा रोप-वे होगा।
अन्नपूर्णा माता मंदिर से खोले के हनुमान मंदिर की पहाड़ी पर स्थित वैष्णोमाता मंदिर तक 436 मीटर लंबा रोप-वे बनाया जा रहा है। जोकि जयपुर का सबसे बड़ा रोप वे होगा। रोप-वे निर्माण के लिए फर्म और जयपुर जिला प्रशासन के बीच करार हुआ है जिसके बाद फर्म को रोप-वे अधिनियम के तहत लाइसेंस जारी किया जाएगा।
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पांच टावरों पर संचालित किये जाने वाले रोप वे की उंचाई 85 मीटर होगी। 24 ट्रॉली वाले इस रोप वे की क्षमता 800 यात्री प्रति घंटा होगी।
कलक्टर ने कहा कि रोप-वे निर्माण करने वाली फर्म को 0 से 5 आयुवर्ग वाले बच्चों और 70 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्गों के साथ साथ दिव्यांगों को रोपवे के जरिये निःशुल्क सफर करवाने के लिए निर्देशित किया गया है। रोप-वे की एक तरफ का सफर करीब साढ़े 4 मिनट में पूरा होगा इस दौरान यात्रियों को जयपुर का विहंगम दृश्य दिखाने के लिए ट्रॉली को बीच सफर में दो बार रोका जाएगा।
अद्भुत है मंदिर का इतिहास
- 60 के दशक में शहर की पूर्वी पहाड़ियों की खोह में बहते बरसाती नाले और पहाड़ों के बीच निर्जन स्थान में जंगली जानवरों के डर से शहरवासी यहां का रूख भी नहीं कर पाते थे तब एक साहसी ब्राह्मण ने इस निर्जन स्थान का रूख किया और यहां पहाड़ पर लेटे हुए हनुमानजी की विशाल मूर्ति खोज निकाली।
- इस निर्जन जंगल में भगवान को देख ब्राह्मण ने यही पर मारूती नंदन श्री हनुमान जी की सेवा पूजा करनी शुरू कर दी और प्राणान्त होने तक उन्होंने वह जगह नहीं छोड़ी। खोले के हनुमानजी के वे परमभक्त ब्राह्मण थे पंडित राधेलाल चौबे जी। चौबे जी के जीवनभर की अथक मेहनत का ही नतीजा है कि यह निर्जन स्थान आज सुरम्य दर्शनीय स्थल बन गया ।
- 1961 में पंडित राधेलाल चौबे ने मंदिर के विकास के लिए नरवर आश्रम सेवा समिति की स्थापना की। जब यह स्थान निर्जन था तब पहाड़ों की खोह से यहां बरसात का पानी खोले के रूप बहता था। इसीलिए मंदिर का नाम खोले के हनुमानजी पड़ा।