मेवाड़ प्रजामंडल आंदोलन

मेवाड़ प्रजामंडल आंदोलन: नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान में प्रजामण्डल आन्दोलन से संबंधित मेवाड़ प्रजामंडल आंदोलन के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

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मेवाड़ प्रजामंडल आंदोलन

  • प्रजामण्डल का अर्थ है ‘जनता का समूह’।

राजस्थान में सर्वाधिक प्रतिष्ठित राज्य मेवाड़ का था यहां जन जागरण की पृष्ठभूमि किसान आंदोलन व जनजातिय आंदोलन से बनी थी। उदयपुर में प्रजामंडल आंदोलन की स्थापना का श्रेय माणिक्य लाल वर्मा को दिया जाता है। बिजोलिया किसान आंदोलन में भाग लेने के कारण माणिक्य लाल वर्मा को उदयपुर राज्य से निष्कासित कर दिया गया था।

माणिक्य लाल वर्मा ने अजमेर में रहते हुए मेवाड़ प्रजामंडल स्थापित करने की योजना बनाई। इन्होंने कुछ पर्चे, प्रजामंडल के गीत और मेवाड़ राज्य का शासन नाम से एक पुस्तिका छपवाई थी।

हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन की घोषणा के पश्चात श्री माणिक्य लाल वर्मा डूंगरपुर का कार्य श्री भोगीलाल पांडेय को सौंपकर मेवाड़ लौट आए थे।

स्थापना: कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के पश्चात माणिक्य लाल वर्मा ने बलवंत राय मेहता, भवानी शंकर वैद्य, जमुनालाल वैद्य, परसराम ,भूरेलाल बया और दयाशंकर क्षोत्रीय के साथ मिलकर 24 अप्रैल 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना गई। 

  • इस संस्था का प्रथम सभापति बलवंत सिंह मेहता और उपसभापति भूरेलाल बयां को बनाया गया। माणिक्य लाल वर्मा को इसका का महामंत्री नियुक्त किया गया।

आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य

  • जनता के अधिकारों को संवैधानिक सुधारों की मांग करना था।
  • प्रजा की आर्थिक कष्टों को दूरकरने का प्रयास करना था।
NOTE: माणिक्य लाल वर्मा ने अजमेर से मेवाड़ का वर्तमान शासन नामक एक छोटी सी पुस्तिका प्रकाशित की थी। इस पुस्तिका के प्रकाशन से राज्य सरकार अत्यंत क्रुद्ध हुई।

मेवाड़ राज्य के बाहर रहने वाले मेवाड़ीयों ने मेवाड़ प्रजामंडल की चार शाखाएं मुंबई नागपुर जलगांव और अकोला में स्थापित की थी।

  • मेवाड़ शासन के असहयोगी रवैये के कारण यह निर्णय लिया गया कि महात्मा गांधी के आशीर्वाद से 4 अक्टूबर 1938 को विजयदशमी के दिन सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया जाएगा। महात्मा गांधी जी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्री भूरेलाल बयां को भेजा गया था। भूरेलाल बयां को दिल्ली से लौटते समय उदयपुर स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया।
  • भूरेलाल बयां को सराड़ा के किले में नजर बंद कर दिया गया सराडा के किले को मेवाड़ का काला पानी कहा जाता है।
  • विजयादशमी के दिन 4 अक्टूबर 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ किया गया।  जिसके पहले सत्याग्रही श्री रमेश चंद्र व्यास थे।

इस सत्याग्रह में जो महिलाएं जेल गई थी उनमें प्रमुख महिलाएं श्री माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी श्रीमती नारायणी देवी वर्मा, उनकी पुत्री श्रीमती स्नेह लता वर्मा, श्रीमती भगवती देवी विश्नोई और श्रीमती रमा देवी ओझा थी।

माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी उदयपुर से निष्काषित होने के बाद अजमेर चली गई।

  • माणिक्य लाल वर्मा को 2 फरवरी 1939 को उदयपुर सीमा के पास देवली के निकट ऊँजा गांव से धोखे से घसीटकर गिरफ्तार कर लिया गया। और उनकी पिटाई की गई वर्मा जी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया।
  • जिसमें उंहें 2 वर्ष की सजा सुनाकर कुंभलगढ़ के किले में बंद कर दिया गया। इस आंदोलन का सर्वाधिक जोर नाथद्वारा में रहा। वहां पर नरेंद्र पाल सिंह और नारायण दास को गिरफ्तार कर लिया गया था।
  • इसी वर्ष मेवाड़ में भयंकर अकाल पड़ने के कारण प्रजामंडल ने गांधीजी के आदेश पर 3 मार्च 1939 को सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया। मेवाड़ में अकाल पड़ने के कारण प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं ने अकाल सेवा समिति की स्थापना की और अभूतपूर्व कार्य किए।
  • बेगार और बलेठा प्रथा: माणिक्य लाल वर्मा ने प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर बेगार और बलेठा प्रथा के विरुद्ध अभियान चलाया फलस्वरुप मेवाड़ सरकार को विवश होकर इन दोनों प्रथाओ पर रोक लगानी पड़ी।

मेवाड़ के नए प्रधानमंत्री श्री टी विजय राघवाचार्य के सहयोगी दृष्टिकोण के कारण महाराजा के जन्मदिन के अवसर पर 22 फरवरी 1941 को प्रजामंडल से प्रतिबंध हटा दिया गया। यह मेवाड़ प्रजामंडल की पहली जीत थी।

NOTE: 25-26 नवम्बर 1941 में मेवाड़ प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में उदयपुर में शाहपुरा हवेली में हुआ। इस अधिवेशन का उद्घाटन आचार्य जे बी कृपलानी ने किया और श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने इस अधिवेशन में भाग लिया।

इस अवसर पर खादी और ग्रामोद्योग प्रदर्शनी का उद्घाटन श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने किया था।

NOTE: इस अधिवेशन में हरिजनों की सेवा के लिए मेवाड़ हरिजन सेवक संघ की स्थापना की गई।

हरिजन सेवक संघ का कार्यभार फरवरी 1942 में ठक्कर बाबा ने मोहनलाल सुखाड़िया को सौंपा गया। भील मीणा व आदिवासी की सेवा का कार्य बलवंत सिंह मेहता को दिया गया।

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मेवाड़ राज्य प्रजामंडल ने भी कांग्रेस द्वारा 9 अगस्त 1942 को शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रुप से भाग लिया उदयपुर आते ही माणिक्य लाल वर्मा ने 20 अगस्त 1942 को महाराणा को ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेद करने के लिए पत्र भेजा महाराणा ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेद नहीं करता है तो आंदोलन प्रारंभ करनेकी धमकी दी गई 21अगस्त को वर्मा जी को गिरफ्तार कर लिया गया।

राजधानी में पूर्ण हड़ताल के साथ ही राज्य में आंदोलन प्रारंभ हो गया। इस आंदोलन के प्रमुख केंद्र उदयपुर नाथद्वारा चित्तौड़ और भीलवाड़ा थे।

मेवाड सरकार ने 23 अगस्त 1942 को प्रजामण्डल पर प्रतिबंध लगा दिया। 2 सितंबर 1942 को कानोड निवासी वीरभद्र जोशी और रोशन लाल ने उदयपुर उच्च न्यायालय की बालकोनी मे तिरंगा झंडा फहराया सरकारी दमन प्रारंभ हो गया बहुत बड़ी संख्या में सत्याग्रही गिरफ्तार कर लिए गए।

  • छात्र वर्ग भी अपना उत्तरदायित्व जानता था लगभग 600 छात्रों को आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया एक छात्र शिवचरण माथुर (जो बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे) ने उन दिनों अपने साथियों के साथ गुना कोटा के बीच एक रेलवे पुल उड़ा दिया था।
  • मेवाड़ प्रजामंडल को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया मोहनलाल सुखाड़िया माणिक्य लाल वर्मा की गिरफ्तारी के बाद नाथद्वारा में भी हड़ताल हुई मेवाड सरकार येन-केन-प्रकारेण आंदोलन को कुचल देना चाहती थी ग्वालियर महाराजा ने कुछ समय पहले ही उत्तरदायी शासन की स्थापना का आश्वासन देकर आंदोलन शांत कर दिया था।
  • 1943 में सर टी.विजय राघवाचार्य के निमंत्रण पर श्री राजगोपालाचारी उदयपुर आए इसके बाद ही वर्मा जी को जेल से रिहा किया गया राजगोपालाचारी ने वर्मा जी से उत्तरदायी शासन स्थापित करने के एवज में भारत छोड़ो आंदोलन को वापस लेने को कहा वर्मा जी ने इस शर्त को अस्वीकार कर दिया था।
  • 21 नवंबर 1943 को 3000 भीलो ने नांदेश्वर महादेव के मंदिर में एकत्र होकर जंगलात के नियमों के उल्लंघन की शपथ ली प्रजामंडल ने भील सेवा कार्य भील छात्रावास आदि कार्यों को पुन्: प्रारंभ किया।
  • 1945 में प्रजामंडल पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया। राजनीतिक चेतना को विकसित करने के लिए प्रभात फेरियां और राष्ट्रीय नेताओं की जयंती मनाई जाने लगी।
  • 31दिसंबर 1945 और 1 जनवरी 1946 को उदयपुर के सलोटिया मैदान में अखिल भारतीय देशी लोक सेवा परिषद का छठा अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में किया गया। इस अधिवेशन में शेर-ए-कश्मीर शेख अब्दुल्ला समेत अनेक रियासतों के नेता शामिल हुए।
NOTE: मेवाड़ सरकार के द्वारा 8 मई 1946 को ठाकुर गोपाल सिंह की अध्यक्षता में सविधान निर्मात्री समिति का गठन किया गया। जिसमें प्रजा मंडल के पांच सदस्य शामिल किए गए।
  • इसी बीच प्रधानमंत्री विजय राघवाचार्य राज दरबार के षडयंत्रों का शिकार हो गए और मार्च 1947 में इस्तीफा देकर यहां से चले गए । राघवाचार्य के स्थान पर बेदला ठाकुर राव मनोहर सिंह राज्य के नए प्रधानमंत्री बने। उनके परामर्श से महाराणा ने के.एम. मुंशी को उदयपुर राज्य का वैधानिक सलाहकार नियुक्त किया।
  • मुंशी ने सुधारों की एक नई योजना प्रस्तुत की जिसकी महाराणा ने 23 मई 1947 को जनता के समक्ष घोषणा की इस सुधार को प्रताप जयंती के अवसर पर राज्य में लागू किया गया इस योजना में 56 सदस्य विधान सभा के गठन का प्रावधान था। इसमे कुछ विषयों को छोड़कर शेष पर कानून बनानेका अधिकार था और राज्य में प्रथम विश्व विद्यालय की स्थापनाका प्रावधान था। महाराणा ने संविधान लागू करने के साथ ही विधान सभा के चुनाव तक प्रजामंडल के 2 प्रतिनिधियों को मंत्रिमंडल में लेने की घोषणा की थी।
  • इस कारण श्री मोहनलाल सुखाड़िया व श्री हीरालाल कोठारी को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी। मेवाड़ प्रजामंडल ने मुंशी योजना को जन विरोधी बताते हुए अस्वीकार कर दिया क्योंकि इसमें जागीरदारों और पूंजी पतियों को अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया इस योजना में संशोधन की मांग की गई।
  • मेवाड़ में नए दीवान एसपी राममूर्ति की नियुक्ति के बाद उनके परामर्श से महाराणा ने मोहन सिंह मेहता को मुंशी संविधान में संशोधन करने हेतु नियुक्त किया। 11 अक्टूबर 1947को संशोधन प्रस्तुत किए गए इसके पश्चात मेवाड़ प्रजामंडल के विधानसभा चुनाव में भाग लेने का निश्चय किया गया।
  • मई 1947 से फरवरी 1948 के मंत्रिमंडल में प्रजामंडल के केवल दो ही सदस्य रहे। फरवरी 1948 में विधानसभा के चुनावों की प्रक्रिया शुरु हुई जिसमें प्रजा मंडल के 8 उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुए। 

6 मई 1948 को महाराणा ने अंतिम सरकार बनाने और विधानसभा निर्वाचन के बाद उत्तरदायी सरकार का गठन करने की घोषणा की। इसी दौरान 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर राज्य का राजस्थान में विलय हो गया।

मेवाड़ प्रजामंडल से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • मेवाड़ प्रजामंडल द्वारा भील मजदूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए फरवरी 1945 में भीलवाड़ा जिले के गोपालगंज में विद्यालय प्रारंभ किया गया था इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री रमेश चंद्र व्यास को नियुक्त किया गया था।
  • 11 अक्टूबर 1938 को नाथद्वारा से सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया जिसे महात्मा गांधी के परामर्श से 3 मार्च 1939 को यह आन्दोलन स्थगित किया।
  • मेवाड़ में भीम सिंह के बाद जवान सिंह, सरदार सिंह ,स्वरूप सिंह ,शंभू सिंह, सज्जन सिंह, फतेह सिंह व भोपालसिह शासक बने थे।
  • इन सभी शासकों में सरदार सिह , स्वरूप सिंह ,सज्जन सिंह और शंभू सिंह को बागौर (भीलवाड़ा) से गोद लिया गया था।
  • शंभू सिंह ने इतिहास विभाग की स्थापना करी थी।
  • श्यामलदास को मेवाड़ का इतिहास लिखने का कार्य सौंपा गया था क्योंकि शम्भूसिह की मृत्युके कारण यह कार्य नहीं हो सका था।
  • सज्जन सिंह ने भी श्यामलदास को यह कार्य सौंपा था इस कारण उसने वीर विनोद ग्रंथ की रचना की थी। सज्जन सिंह ने श्यामलदास को कविराजा और मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट कर्नल इम्पी ने केसर हिंद की उपाधि दी थी।
  • मेवाड़ में मालगुजारी लाग बाघ और बेगार आदि समस्याओं को लेकर कहीं शक्तिशाली आंदोलन हो चुके थे।
  • इन आंदोलनों ने ब्रिटिश सरकार को ही नहीं बल्कि वहां पर संगठित राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत कर दी माणिक्य लाल वर्मा ने प्रजामंडल आंदोलन की जिम्मेदारी डोगरा शूटिंग अभी योग के ख्याति प्राप्त क्रांतिकारी आमली (भीलवाड़ा) निवासी श्री रमेश चंद्र व्यास को दी थी।
  • माणिक्य लाल वर्मा जी साइकिल की सहायता से सारे मेवाड़ में घूमें और राजनीतिक चेतना का बिगुल बजा कर राजनीति संगठन के लिए उचित वातावरण तैयार किया।
  • बलवंत सिह मेहता के निवास स्थान साहित्य कुठीर पर भूरेलाल बयां भवानीशंकर वेद दयाशंकर छत्रिय हीरालाल कोठारी रमेशचंद्र बिहार यमुना लाल वैद्यआदि को राजनीतिक संगठन के लिए बुलाया गया इस बैठक में प्रजामंडल की स्थापना का निर्णय लिया गया।

FAQs

मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना वर्ष 1938 में किसकी अध्यक्षता में की गई?

मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना 24 अप्रैल 1938 में श्री बलवन्तसिंह मेहता की अध्यक्षता में की गई।

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