जयपुर प्रजामण्डल : Jaipur Prajamandal

जयपुर प्रजामण्डल : नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान के जयपुर प्रजामण्डल (Jaipur Prajamandal) के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

जयपुर प्रजामण्डल का गठन

1931 ई॰ मे कपूरचन्द पाटनी ने जयपुर प्रजामण्डल का गठन किया था। यह राजस्थान का प्रथम प्रजामण्डल था।

लेकिन सरकार द्वारा इसके कार्यों में तरह-तरह की बाधाएं उत्पन्न करने और अपेक्षित जनसहयोग व उत्साहित कार्यकर्ताओं के अभावके कारण यह अगले 5 वर्षों तक राजनीतिक दृष्टि से प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाया इस कारण अगले 5 वर्षों तक यह प्रजामंडल निष्क्रिय बना रहा इस दौरान इसकी संपूर्ण गतिविधियां खादी उत्पादन और प्रचार जैसे रचनात्मक कार्यतक ही सीमित रही यह प्रजामंडल राजनीतिक दृष्टि से अधिक प्रभावशाली नहीं रहा

कांग्रेस के हरिपुरा प्रस्ताव के बाद जमनालाल बजाज लाल बजाज की प्रेरणा व हीरालाल शास्त्री के सक्रिय सहयोग से 1936-37 मे जयपुर राज्य प्रजामंडल का पुनर्गठन किया गया

इस प्रजामंडल का मूल उद्देश्य उत्तरदायित्व शासन की स्थापना करना था प्रारंभ में जयपुर के एडवोकेट श्री चिरंजीलाल मिश्रा को प्रजा मंडल का अध्यक्ष बनाया गया। श्री हीरालाल शास्त्री को महामंत्री व श्री कपूरचंद पाटनी को संयुक्त मंत्री बनाया गया।

प्रजामंडल के अन्य प्रमुख सदस्य बाबा हरिश्चंद्र, सर्व श्री हंस दी राय ,लादूराम जोशी, टीकाराम पालीवाल, पूर्णानंद जैन, हरिप्रसाद शर्मा ,रामकरण जोशी, सरदार मल गोलेछा ,रूप चंद सोगानी आदि थे

  • नवगठित प्रजामंडल ने 1937 से अपना  कार्य करना प्रारंभ कर दिया था 1938 में प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन जयपुर में करने और सेठ जमुनालाल बजाज को इस प्रजामंडल का अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया गया 1938में सेठ जमुनालाल बजाज को जयपुर प्रजामंडल का अध्यक्ष बनाया गया
  • जयपुर प्रजामंडल के प्रथम अधिवेशन में श्रीमती कस्तूरबा गांधी ने भी भाग लिया था
  • शेखावाटी किसान सभा जो कई वर्षों से शेखावाटी के किसानों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न कर ठिकानेदारों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष कर रही थी “1938 में श्री हीरालाल शास्त्री के प्रयासों से शेखावाटी किसान सभा का जयपुर प्रजामंडल में विलय कर लिया गया
  • 18 मार्च 1939 को जयपुर में श्रीमती दुर्गा देवी शर्मा के नेतृत्व में महिला सत्याग्रह के प्रथम जत्थे ने गिरफ्तारी दी
  • 1940 ई॰मे हीरालाल शास्त्री जयपुर प्रजामण्डल के अध्य्क्ष बने थे।

जेंटलमेन एग्रीमेंट

  • 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय श्री हीरालाल शास्त्री और जयपुर के प्रधानमंत्री की मिर्जा इस्माइल से एक समझौता हुआ था इस समझौते के तहत जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन नही चलाया गया था ।
  • इस समझौते से नाराज प्रजामंडल के कुछ कार्यकर्ताओं ने अलग से आजाद मोर्चा का गठन किया और जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया।
आजाद मोर्चा
  • जेंटलमेन एग्रीमेंट समझौते के तहत भारत छोड़ो आंदोलन में हीरालाल शास्त्री द्वारा निष्क्रिय बने रहने के कारण और महाराजा जयपुर के विरुद्ध आंदोलन करने का विचार त्याग देने के कारण एक अलग संगठन बनाकर जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन का शुभारंभ किया। इस संगठन का नाम आजाद मोर्चा रखा गया था यह आन्दोलन  बाबा हरिश्चंद्र के नेतृत्व में चलाया गया।
  • आजाद मोर्चा के अन्य कार्यकर्ता➖  गुलाबचंद कासलीवाल, चंद्रशेखर शर्मा, राधेश्याम शर्मा ,ओम दत्त शास्त्री, मदनलाल खेतान ,चिरंजीलाल, मिश्रीलाल, मुक्तिलाल मोदी, विजय चंद जैन ,अलाबक्ष चौहान, मास्टर आनंदीलाल नाई, भवरलाल सामोदिया आदि थे
  • आजाद मोर्चा ने अपना आंदोलन जारी रखा आंदोलन जारी रखने के कारण और जेंटलमेन एग्रीमेंट का उल्लंघन करने के कारण सरकार ने आजाद मोर्चा के नेताओं को गिरफ्तारकर लिया गया था आजाद मोर्चा के नेताओं ने हीरालाल शास्त्री पर विश्वासघात का आरोप लगाया था छात्राओं ने भी इस आंदोलन में अपना योगदान दिया था वनस्थली विद्या पीठकी कुछ छात्राओं ने धरने दिये थे
  • इनमें से एक छात्रा शांति देवी ने 5 अक्टूबर 1942 को एक सभा में जनता को संबोधित किया था
  • श्रीमती रतन शास्त्री ने बनस्थली विद्यापीठ के कार्यकर्ताओं और छात्रोंको आंदोलन में भाग लेने की खुली छूट दे दी थी इस कारण कार्यकर्ताओं ने बाहर जाकर काम किया बाहर भूमिगत रहते हुए आंदोलन का संचालन करने वालों में डॉक्टर बी केस्तकर मोहनलाल गौतम द्वारकानाथ कचरूआदि प्रमुख थे
  • ?आंदोलन में जयपुर के कॉलेज और स्कूल के विद्यार्थियों ने भी भाग लिया सर्वोदयी नेताजी सिद्धराज ढड्डाने भी इस आंदोलन के दौरान गिरफ्तारी दी थी
  • 1942 के आंदोलन का प्रभाव कम होने के साथ ही आजाद मोर्चा के कार्यकर्ताओं को रिहाकर दिया गया
  • 1945 में श्री जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से आजाद मोर्चा को बाबा हरिश्चंद्र ने पुनः प्रजामंडल में विलीन कर दिया

1944 ई॰ मे जानकी लाल बजाज ने जयपुर प्रजामण्डल की अध्य्क्षता की थी

15 मई, 1946 को प्रजामण्डल के प्रतिनिधि के रुप में देवी शंकर तिवारी को मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया गया। 27 मार्च, 1947 को नया मंत्रिमंडल बना, जिसमें 7 सदस्यों में से 4 सदस्य प्रजामण्डल के व 2  जागीरदार वर्ग के थे।
नवम्बर, 1948 में जयपुर महाराजा राजस्थान में मिलने को सहमत हो गये, जिसकी राजधानी जयपुर व महाराजा राज प्रमुख बने। श्री हीरालाल शास्री पुनर्गठित राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए।
अप्रैल, 1949 को जयपुर राजस्थान का एक अंग बन गया।  

ये भी जरूर पढ़ें

राजस्थान में 1857 की क्रान्ति

Leave a Comment