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दादू सम्प्रदाय: संत दादूदयाल

दादू सम्प्रदाय, संत दादूदयाल: नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान के प्रमुख संत दादूदयाल और दादू सम्प्रदाय के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।

राजस्थान के संत दादूदयाल

लोक मान्यता के अनुसार

दादूदयाल साबरमती नदी (अहमदाबाद-गुजरात) में बहते हुए लोदीरामजी (सारस्वत ब्राह्मण) को संदूक में मिले।

दादूजी ने कबीरदास के शिष्य श्री वृंदावन जी (बुड्ढनजी) से 11 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेकर घर को त्यागा और मात्र 19 वर्ष की आयु में राजस्थान में प्रवेश कर सिरोही, कल्याणपुर, साँभर, अजमेर होते हुए अंततः दूदू के पास ‘नारायणा‘ में अपना स्थान अंतिम समय व्यतीत किया ।

व्यक्तित्व परिचय

  • दादूदयाल जी जन्म 1544 ईस्वी (वि.सं. 1601 में) में अहमदाबाद में हुआ। ये 1568 ई. में सांभर आ गए। 1568 ई. में सांभर में आकर प्रथम उपदेश दिया ।
  • सन् 1602 में नरैना (फुलेरा) आ गये और वही ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी 1605 ईं. में महाप्रयाण किया ।

दादू सम्प्रदाय संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य

  • दादू सम्प्रदाय की स्थापना दादू दयाल जी ने 1574 ई. में की थी। इस सम्प्रदाय की प्रमुख गद्दी नरैना (नरायणा, जयपुर) में है। भैराणा की पहाडियां (जयपुर) में तपस्या की थी। इनके गुरु वृद्धानंद (कबीर वास जी के शिष्य) थे।
  • वे भक्तिकालीन ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख संत कवि थे। निर्गुण भक्ति परंपरा में उनका महत्वपूर्ण स्थान है।
  • इस सम्प्रदाय का उपनाम कबीरपंथी सम्प्रदाय है।
  • निर्गुण पंथियों के समान दादूपंथी लोग भी अपने को निरंजन, निराकार उपासक मानते हैं।
  • 1585 ई. में फतेहपुर सीकरी की यात्रा के दौरान दादू की भेंट मुगल सम्राट अकबर से भेंट कर उसे अपने विचारों से प्रभावित किया। ये आमेर के राजा मानसिंह और मुगल बादशाह अकबर के समकालीन थे।
  • इनके शिष्यों में बखनाजी, रज्जबजी, सुन्दरदास जगन्नाथ व माधोदास आदि अनेक प्रसिद्ध सत हुए

दादू दयाल जी ने ‘हिन्दी मिश्रित सधुकडी‘ भाषा में दादूजी री वाणी, दादूजी रा दूहा तथा कायाबेली रचनाएं लिखीं।

NOTE: दादूजी को ‘ राजस्थान का कबीर ‘ कहा जाता है।

52 स्तम्भ

  • दादू दयल के 152 शिष्य थे जिनमें 100 ग्रहस्थ थे एवं 52 साधु थे। जो दादू पंथ के 52 स्तम्भ कहलाए।
  • इनके प्रमुख शिष्यों में उनके दोनों पुत्र गरीबदासमिस्किनदास थे।
  • संत दादूदयाल ने सुन्दरदासजी सहित श्रीलाखाजी और नव्हरिजी को दौसा के पास स्थित गेटोलाव में अपना शिष्य बनाकर दादूपंथ की दीक्षा दी थी।
  • अन्य शिष्यों में बखना, रज्जबजी, संतदास, जगन्नाथ दास एवं माधोदास थे।
NOTE: दादू पंथी सम्प्रदाय के सतसंग स्थल अलख-दरीबा कहलाते है। इनका निवास स्थल ‘रज्जब द्वार’ कहलाता है।  इनके शिष्यों को ‘रज्जवात‘ अथवा ‘ रज्जब पंथी ‘ कहा है।

दादू पंथ की शाखाएं

दादूजी की मृत्यु के बाद दादू पंथ कई शाखाओं में बंट गया था, जो निम्न हैं:

  • खालसा– यह दादू सम्प्रदाय की प्रधान पीठ नरैना से सम्बद्ध है। इस शाखा के मुखिया इनके पुत्र गरीबदास जी थे।
  • विरक्त– ये रमते-फिरते दादू पंथी साधु थे जो गृहस्थियों को आदेश देते थे।
  • खाकी– ये शरीर पर भस्म लगाते थे तथा खाकी वस्त्र पहनते थे।
  • उत्तरादे व स्थानधारी – जो राजस्थान छोड़कर उत्तरी भारत की ओर चले गए थे।
  • नागा- दादू सम्प्रदाय में नागापंथ की स्थापना संत सुन्दरदास जी ने की। नागा साधु अपने साथ हथियार रखते थे तथा जयपुर राज्य में दाखिली सैनिक के रूप में कार्य करते थे। जब इनके आतंक से जनता परेशान हो गई तो सवाई जयसिंह ने एक नियम बनाकर इनके शस्त्र रखने पर पाबंदी लगा दी। इसी नागा संप्रदाय के संतों ने जयपुर राज्य के सवाई जयसिंह व जोधपुर के राजा मानसिंह की सहायता की थी । इस सम्प्रदाय में मृतक व्यक्ति का अन्तिम संस्कार विशेष प्रकार से किया जाता है। जिसके अन्तर्गत उसे न तो जलाया जाता है और नाही दफनाया जाता है। बल्कि उसे जंगल में जानवरों के खाने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है।
  • निहंग– वे साधु जो घुमन्तु थे।

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