कंजर जनजाति (Kanjar Janjati): कंजर जनजाति एक घुमक्कड़ कबीला है जो सम्पूर्ण उत्तर भारत की ग्राम्य और नागरकि जनसंख्या में छितराया हुआ है। ‘कंजर’ नाम संस्कृत शब्द “काननचार” से उत्पन्न हुआ है जिसका शब्दिक अर्थ है जंगल में विचरण करने वाला। संस्कृत गंर्थों में कंजर जनजाति को काननचार कहा गया है।
Kanjar Janjati Rajasthan
विस्तार – कोटा, बूँदी, बारां, झालावाड़, भीलवाड़ा, अलवर, उदयपुर आदि जिलें।
यह जनजाति राजस्थान में हाड़ौती क्षेत्र में सर्वाधिक क्षेत्र में निवास करती है। कंजर जनजाति का प्रमुख व्यवसाय चोरी करना तथा भिक्षा मांगना है। कंजर जनजाति के मकान के दरवाजे नहीं होते हैं। केवल घरों में पीछे की ओर खिड़की होती है जिसका प्रयोग भागने के लिए किया जाता है।
- आराध्य देव – हनुमानजी
- आराध्य देवी – चौथ माता
- कुलदेवी – जोगणिया माता (बेगूं , चित्तौड़गढ़)
सामाजिक जीवन
- कंजर जनजाति में परिवार का मुखिया पटेल कहलाता हैं। मृतक को गाड़ने की प्रथा हैं।
- कंजर जाति की सबसे बड़ी विशेषता इनकी सामाजिक एकता होती है।
- कंजर जाति मोर का माँस अत्यधिक पसंद करते हैं।
- यह जनजाति घुमंतू (खानाबदोश) जनजाति है। कंजर जनजाति अपराध प्रवृति के लिए कुख्यात है।
- कंजर जनजाति के लोग मृतक व्यक्ति के मुख में शराब की बूंदे डालते है।
- कंजर जनजाति के लोग हाकम राजा का प्याला पीकर एवं ऋषभदेवजी की कसम खाकर कभी झूठ नहीं बोलते।
- वर्तमान समय में कंजर जनजाति अन्य व्यवसायों में भी संलग्न हुई हैं।
खूसनी – कंजर जनजाति की महिलाओं द्वारा कमर में पहना जाने वाला वस्त्र।
पाती मांगना – कंजर जनजाति के लोग अपराध करने से पूर्व अपने अराध्य देव (हनुमानजी) का आशीर्वाद प्राप्त करते है, जिसे पाती मांगना कहते है।
कंजर जनजाति के प्रमुख मेलें
- चौथ माता का मेला – चौथ का बरवाड़ा (सवाईमाधोपुर यह मेला माघ कृष्ण चतुर्थी (तिल चौथ) को भरता है। यह मेला “कंजर जनजाति का कुम्भ” कहलाता है।
- रक्तदँजी का मंदिर – संतूर (बूँदी)।
प्रमुख वाद्य यंत्र
- ढोलक एवं मंजीरा
कंजर जनजाति के नृत्य :-
- चकरी नृत्य – यह व्यावसायिक नृत्य है जो हाड़ौती अंचल (कोटा, और बूंदी) छबड़ा (बारां) व किशनगंज (बारां) में कजंर जनजाति की महिलाओं द्वारा किया जाता है। मुख्य वाद्य ढ़ोल तथा चंग होते हैं।
- धाकड़ नृत्य – धाकड़ नृत्य राजस्थान में कंजर जनजाति द्वारा किया जाता है। शौर्य से परिपूर्ण इस नृत्य में झालापाव व बीरा के मध्य हुए युद्ध का वर्णन है। इस नृत्य में नृत्य कम तथा करतब अधिक होते हैं। प्रमुख वाद्य यंत्र डांग, ढाल, फरसा है।