राजस्थानी पारिभाषिक शब्दावली (Rajasthani Shabdawali): आज के आर्टिकल में हम राजस्थान की राजस्थानी पारिभाषिक शब्दावली (Rajasthani Shabdawali) के बारे में जानेंगे। आज का हमारा यह आर्टिकल RPSC,RAS, RSMSSB, REET, SI, Rajasthan Police, एवं अन्य परीक्षाओं की दृष्टि से अतिमहत्वपुर्ण है। भारत की मुख्य भाषा हिंदी हे | परन्तु सभी राज्यों की भाषा में अलग रूप है। उसी प्रकार राजस्थान की भाषा में भी कुछ अलग प्रकार की भाषा का प्रयोग होता है। राजस्थानी पारिभाषिक शब्दावली से सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी यहाँ दी गई है।
राजस्थानी शब्दकोश
- ना सावण सुरंगों,ना भादवो हरयो – सदैव एक समान
- ओरणी – खेत में बीज को डालने के लिए हल के साथ लगाई जाती है इसको “नायलो” भी कहते ह
- हवन करते हाथ जलणा – भला करने पर भी बुराई मिलना।
- रावलौ तेल पल्लै में ई खतै – राजा का आदेश सर्वोपरि होता है।
- सीरावने से तात्पर्य – कृषकों का सुबह का भोजन
- मुगधणा” क्या है – भोजन पकाने के लिए लकड़ियां जो विनायक स्थापना के बाद लाई जाती है।
- जांनोटण क्या है – वर पक्ष की ओर से दिया जाने वाला भोज जांनोटण कहलाता है।
- औलंदी क्या है – नववधू के साथ जाने वाली लड़की औलंदी नाम से जानी जाती हैं।
- बालद क्या है – सार्थवाह
- ढी़गला, भीडरिया, नाथद्वारिया क्या है – मेवाड़ की ओढ़नियों के नाम।
- दामणी क्या है – मारवाड़ की ओढ़नियों के नाम।
- तकावी – कृषि कार्यों के लिए कृषक को राज्य द्वारा अग्रिम धनराशि देना क्या कहलाता है
- मतीरा रो भारो बांधणौ – मूर्ख समूह को संगठित करने का असफल प्रयास।
- चेजारा कौन होता है – चुनाई का कार्य करने वाले को चेजारा कहा जाता है।
- बजेडा़ – पान का खेत
- धावड़िया – जो कारवां व काफिले को लूटते थे।
- चावर क्या है– खेतों में जुताई के बाद भूमि को समतल करने के लिए फेरा जाने वाला मोटा पाट
- सूड– खेत जोतने से पहले खेत के झाड़ झांखड़ साफ करना
- अगेती शब्द का अर्थ – फसल की जल्दी बुवाई
- पछेती शब्द का अर्थ – फसल की लेट बुवाई
- मिसल – राज दरबार में पंक्ति बद्ध बैठने की परंपरा
- ब्रिचेस – पुरुषों का कमर से नीचे का वस्त्र
- नाक रे चूनो लगाणौ – किसी की इज्जत के बट्टा लगाना
- महकमा बकायत – अच्छी फसल के समय शेष राजस्व वसूलता था
- पगतिया उतारणौ – आश्वासन देते रहना
- बटवेडा – उपले या कंडे संग्रह हेतु
- उदेई क्या है – दीमक
- टांऊ या बिजुका – खेती की सुरक्षा हेतु बनाया गया आदमी का पुतला
- भभूल्या – रेगिस्तान में उत्पन्न वायु भंवर
- बिनोटा – विवाह में दूल्हा-दुल्हन की जूतियां
- तांती – जो व्यक्ति बीमार हो जाता है उसके सूत या मोली का धागा बाँधा जाता है यह देवता की जोत के ऊपर घुमाकर बांधा जाता है
- बीड – जिस भूमि का कोई उपयोग में नहीं लिया जाता है जिसमें सिर्फ घास उगती हो
- सड़ो, हडो, बाड़ – पशुओं के खेतों में घुसने से रोकने के लिए खेत चारो तरफ बनाई गयी मेड
- गुलेल – पक्षी को मारने या उड़ाने के लिए दो – शाखी लकड़ी पर रबड़ की पट्टी बांधी जाती जसमे में बीच में पत्थर रखकर फेंका जाता है
- किराड़िया – राजस्थान में किसानों द्वारा खेतों में बनाए जाने वाले परम्परागत झोंपड़ीनुमा अवशीतल भंडार गृह।
- आथ – सुथार, कुम्हार, नाई आदि जातियों को वर्षभर के कार्य के बदले किसानों द्वारा दिया जाने वाला अनाज।
बढ़ार | विवाह के अवसर पर दिया जाने वाला सामूहिक प्रतिभोज। |
तावडौ | सूर्य की धूप |
रखत | कुछ समय के लिये बिना बुवाई छोड़ी गई भूमि |
अंढ़ौ | दिन का तीसरा पहर |
चरवौ (चरौ) | ताँबे या पीतल का एक बड़ा जलपात्र। |
दावणा / नूंजणों | पशु को चरते समय छोड़ने के लिए पैरों में बांधी जाने वाली रस्सी |
टोळडो | ऊँट का बच्चा |
उन्दरो | चूहा |
पिडो | बैठने की रस्सी/ऊन की चौकी |
चोबारा | ऊपर का कमरा |
खूंटी | वस्तु/वस्त्र लटकाने का स्थान |
हटडी | मिर्च मसाले रखने का यंत्र |
कुटी | बाजरे की फसल का चारा |
बिलौवनी | दही को बिलौने के लिए मिट्टी का मटका |
थेपड़ी | गोबर को हाथ से थेपकर सूखाना। |
गोफण | पक्षियों को भगाने के लिए पत्थर फेंकने का उपकरण। |
मोरीहालो | नहर से सिंचाई योग्य भूमि। |
पछोर | तालाब के पीछे की भूमि |
बखारी | कमरे में बनाया गया अनाज रखने का पात्र। |
ठाठिया / ठमोल्या | कागज से तैयार किए गए बर्तन। |
पालणा | छोटे बच्चों का टोकरीनुमा झुला। |
रेवड़ | भेड़-बकरियों का झुंड। |
गवालियों | रेवड़ रखने वाला व्यक्ति। |
पराणी, पुराणी | बैलो या भैसों को हाकने की लकड़ी |
कुदाली, कुश | मिट्टी को खोदने का यंत्र |
ढींकळी | कुएँ के ऊपर लगाया गया यंत्र जो लकड़ी का बना होता है |
चडस | यह लोहे के पिंजरे पर खाल को मडकर बनाया जाता है जो कुओं से पानी निकालने के काम आता है |
चू, चऊ | हल के निचे लगा शंक्वाकार लोहे का यंत्र |
पावड़ा | खुदाई के लिए बनाया गया उपकरण |
बेवणी | चूल्हे के सामने राख (बानी) के लिए बनाया गया चौकोर स्थान |
जावणी | दूध गर्म करने और दही जमाने की मटकी |
जैली | लकड़ी का सींगदार उपकरण |
तोड्यों | ऊँटनी का नवजात बच्चा। |
बटकड़ौ | चूना या सीमेन्ट जमाने का काष्ठ उपकरण। |
मेर | खेत में हँके हुए भाग के चरों तरफ छोड़ी गयी भूमि |
छाणों / उपले | सुखा हुआ गोबर जो जलाने के काम आता है |
बांदरवाल | मांगलिक कार्यों पे घर के दरवाजे पर पत्तों से बनी लम्बी झालर |
नेडी | छाछ बिलौने के लिए लगाया गया खूंटा या लकड़ी का स्तम्भ |
पाखर | युद्ध के समय हाथी या घोड़े पर डाली जाने वाली झूल। |
पांभरी | दुल्हन को विवाह मण्डप में ओढ़ाने का वस्त्र। |
झेरना | छाछ बिलोने के लिए लकड़ी का उपकरण इसको “रई” भी कहते है |
नेतरा, नेता | झरने को घुमाने की रस्सी |
छाजलो | अनाज को साफ करने का उपकरण |
अखड, पड़त, पडेत्या | जो खेत बिना जुता हुआ पड़ा रहता है |
पाणत | फसल को पानी देने की प्रक्रिया |
बावणी | खेत में बीज बोने को कहा जाता है |
ढूँगरा, ढूँगरी | जब फसल पक जाने के बाद काट ली जाती उसको एक जगह ढेर कर दिया जाता है |
परछन | तोरण पर आए दूल्हे का स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला स्वागत। |
सीरणी / सीणी | किसी को गुरु या इष्ट मानकर चढ़ाया जाने वाला प्रसाद। |
आंबौ | पुत्री की विदाई पर गाया जाने वाला लोकगीत। |
अक्षपटलिक | राज्य में आय-व्यय का ब्यौरा रखने वाला अधिकारी। |
अड़सट्टा | एक राजा का दूसरे राजा के साथ व्यवहार। |
गोफन | पत्थर फेकने का चमड़े और डोरियों से बना यंत्र |
तंगड-पट्टियाँ | ऊंट को हल जोतते समय कसने की साज |
जावण | दही जमाने के लिए छाछ या खटाई की अन्य सामग्री |
चरणोत | पशुओं के चरने की भूमि |
गूणी | लाव को खींचने हेतु बैलो के चलने का ढालनुमा स्थान |
नाँगला | नेडी और झेरने में डालने की रस्सी |
सींकळौ | दही को मथने की मथनी के साथ लगा लोहे का कुंदा |
नीरनी | मोट और मूँग का चारा |
लाव | कुएँ में जाने तथा कुएँ से पानी को बाहर निकालने के लिए डोरी को लाव कहा जाता है |
दंताली | खेत की जमीन को साफ करना तथा क्यारी या धोरा बनाने के लिए काम में ली जाती है |
थली | घर के दरवाजे का स्थान |
खेली | पशुओं के पानी पिने के लिय बनाया गया छोड़ा कुंड |
ठाण | पशुओं को बांधने का स्थान |
लूण्यो मक्खन | इसको “घीलडी” नामक उपकरण में रखा जाता है |
ओबरी | अनाज व उपयोगी सामान को रखने के लिय बनाया गया मिट्टी का उपकरण (कोटला) |
नातणौ पानी | दूध, छाछ को छानने के काम आने वाला वस्त्र |
लावणी | किसान द्वारा फसल को काटने के लिए प्रयुक्त किया गया शब्द |
रहँट | सिंचाई के लिए कुओं से पानी निकालने का यंत्र |
खाखला | गेंहू या जौ का चारा |
निंनाण | खेत से खरपतवार हटाना |
खलों | अनाज निकालने का स्थान |
चौसींगी | चार सींग का उपकरण जिसे अनाज निकालने में प्रयोग किया जाता है |
दांती | फसल काटने का उपकरण |
कुदाली, कस्सी, पावड़ा | खुदाई के उपकरण |
गैंती | कठोर जमीन की खुदाई के उपकरण |
उनालू/रबी/हाड़ी | सर्दियों में बोई जाने वाली फसल, जैसे – गेहूं, चना |
स्यालू/खरीफ/सावणी | गर्मियों में बाई जाने वाली फसल, जैसे – ज्वार, बाजरा, मूंग, कपास |
हींसू | पत्थर खोदने का मजबूत लोहे का उपकरण |
बाड़ | पशुओं को खेत में नुकसान करने से रोकने के लिये लकड़ियों से बनाई गई दीवार |
खूंटा | पशुओं को बांधने के लिये जमीन में गाढ़ी गई लकड़ी |
मेख | जमीन या दीवार में लगाई गई कील |
रोड़ी/कुरड़ी | गोबर-कचरे का ढेर |
बान | बुवाई से पूर्व भूमि को पोला करना |
जुड़ा | हल खिंचने के लिये बैलों के कंधों पर लगा डंगा |
समेल | जुड़े के दोनों ओर सुराख निकालकर डाली गई लकड़ी |
अडाण | सिंचाई योग्य भूमि |
हड़ावो | बिना बुवाई की गई भूमि |
उगाळौ | पशुओं द्वारा चरने के पश्चात छोड़ा हुआ चारे का अवशिष्ट भाग। |
कसार | घी में सिके आटे में गुड़ / चीनी मिलाकर बनाया हुआ खाद्य पदार्थ |
गोरमा | गाँव के बाहर सटा हुआ क्षेत्र। |
राजस्थानी पारिभाषिक शब्दावली
- अंगीलौ :- रस्सी बनाने में काम आने वाली खूंटी।
- सेवज :- वर्षा का पानी इकट्ठा करके उसमें गेहूँ, चने, सरसों आदि फसलों को बोना।
- अचरियौ-बचरियौ :- सूर्य पूजा के दिन प्रसूता के लिए बनाया जाने वाला विभिन्न सब्जियों का मिश्रण।
- इंडाणी / चूमळी :- सिर पर जलपात्र के नीचे रखने की कपड़े या रस्सी की गोल चकरी।
- गाडूलौ :- तीन पहियों का बच्चों का खिलौना जिससे वह चलना सीखता है।
- पाखी :- कुएँ की सिंचाई में एक ही नाली से भरी जाने वाली क्यारियाँ।
- वाटवागौ :- विवाह मण्डप में अग्नि परिक्रमा के पश्चात कन्या को पहनाई जाने वाली पोशाक।
- पाळसियौ :- वृक्ष आदि में पक्षियों के पानी पीने के लिए टांगा जाने वाला पात्र।
- ओरण :- किसी देवस्थान या देवालय के आस-पास की गोचर भूमि, जहाँ लकड़ी काटना वर्जित होता है।
- कोराई :- चित्रकारी या नक्काशी का कार्य।
- आगड़ / रावौ :- चूल्हे के आगे का वह भाग जहाँ राख एकत्रित होती हैं।
- कठावणी :- दूध गर्म करने की हंडिया।
- बेळचौ :- ऊँट की नकेल में दोनों ओर बाँधी जाने वाली वाली रस्सी।
- कुड्डौं :- साफ किए गए अन्न की खलिहान में पड़ी ढेरी।
- रायड़ौ :- गेहूँ की फसल के साथ होने वाली राई जैसी बीजों की एक घास।
- रियाण :- पश्चिमी राजस्थान में खुशी अथवा गम के अवसरों पर निकटस्थ संबंधियों एवं मित्रों के मेल-मिलाप हेतु किया जाने वाला आयोजन।
- नरजू :- खपरैल की छाजन को थामे रखने वाली लकड़ी।
- नवतर :- जोतने में छोड़ा जाने वाला खेत का कुछ भाग।
- नांख :- उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए पड़त छोड़ी गई कृषि भूमि।
- गौसवारो :- किसी मद के आय-व्यय का संक्षिप्त लेखा।
- घरूवौं :- विवाह में दीवार पर लिखे जाने वाले गीत।
- गोहिर :- गाँव या मुहल्ले के बीच का खुला स्थान।
- टीप :- दीवार आदि में पत्थरों को जोड़ने के लिए लगाया जाने वाला चूने, सीमेन्ट का मसाला।
- माळवळौ :- मकान के छाजन के बीच में लगने वाली लम्बी-मोटी लकड़ी।
- ओझणौ :- कन्या की विदाई के समय दिया जाने वाला सामान।
- डांणणौ :- ऊँट की पीठ पर गद्दी कसना।
- पटरंगणा :- विवाहोपरांत वर-वधू को खिलाया जाने वाला खेल।
- पडु :- खलिहान में अनाज के ढ़ेर में खड़ा किया जाने वाला लकड़ी का लट्ठा।
- तिंवारी, त्युंहारी :- त्यौहार का भोजन या अन्न, जो मेहतर आदि को दिया जाता है।
- सगातेड़ौ :- मृतक के पीछे किया जाने वाला भोज।
- विकिर :- पूजा के समय विघ्न निवारणार्थ चारों ओर फेंके जाने वाले अभिमंत्रित चावल।
- खीस (गूंत) :- गाय / भैंस के प्रसव के पश्चात पहली बार निकाला जाने वाला दूध।
- कोरणियौ :- वधू के मामा की ओर से दी जाने वाली पोशाक।
- बनारणौ :- विवाह या यज्ञोपवीत संस्कार के समय लड़के-लड़की के ननिहाल से आने वाला उपहार।
- बागर :- घास या चारे का चुना हुआ गोल ढेर।
- गोयलौ :- गेहूँ के पौधों के साथ उत्पन्न होने वाली एक प्रकार की घास।
- साढ़ी :- दूध के ऊपर जमने वाली मलाई।
- साता :- विवाह में शगुन के रूप में दी जाने वाली सात सुपारी या सिंघाड़ा।
- साद :- मृतक के पीछे चिल्लाकर किया जाने वाला रुदन।
- साळ :- मकान के अंदर का कक्ष।
- सारवट :- लोहे की जाली का दस्ताना।
- सादियांण :- माँगलिक अवसरों पर बजने वाला वाद्य।
- हुंडी :- सेठ साहूकार या व्यापारियों द्वारा लिखा जाने वाला भुगतान पत्र (रक्का)।
- नवलौ (रास) :- खलिहान में पड़ा अनाज का लम्बा ढेर।
- चंवरीदापौ :- पाणिग्रहण संस्कार के बाद कुलगुरु को दिया जाने वाला द्रव्य।
- मोडकौ :- कुएँ के ऊपर अंदर की ओर बना एक भाग।
- मोहताद (अमदाद) :- आश्रितों को दी जाने वाली विशेष सहायता।
- कौरमौ :- खलिहान में अनाज साफ करने पर अवशिष्ट रहा अनाज या भूसा।
- पैड़ौ :- मकान की पट्टियाँ चढ़ाने के लिए बल्ली-फंटों से (अडाण) बनाया गया रास्ता / मचान।
- चांक :- खलिहान में अन्न की राशि पर पर चिह्न लगाने की क्रिया।
- वींदड़ी :- विवाहादि माँगलिक कार्यों का निमंत्रण पत्र, कुमकुम पत्रिका।
- सड़ियौ :- घास-फूस से बनी रस्सी। ऊँट के अगले पैर बाँधने का चमड़े का बंधन।
- उखड़ :- पशु समूह की तेज ताल की ध्वनि।
- ऊनवौ :- वह स्थल, जहाँ आसपास की पानी बहकर भर जाता है तथा सूखने पर उसमें गेहूँ, चने आदि की फसल होती है।
- कुरब :- राजा के दरबार में आने पर राजा द्वारा हाथ उठाकर सम्मान देने की क्रिया या संकेत।
- अणदी :- कुएँ की मोट के रस्से से जुड़ा लकड़ी का एक उपकरण।
- सूटौं :- वर्षा के साथ चलने वाली तेज हवा।
- कळाव :- हाथी की गर्दन पर बाँधने का रस्सा।
- छनीछरियौ :- शनिवार के दिन दान लेने वाला एक ब्राह्मण जाति का व्यक्ति।
- ओजू/वुजू :- नमाज पढ़ने से पूर्व शुद्धि के लिए हाथ-पाँव धोने की क्रिया।
- खूंपु :- पुष्पों का सेहरा, जो दुल्हन या दुल्हे को धारण कराया जाता है।
- अणाणौ, आगड़ौ, अरट, उबड़ियौ आदि कुएं के रहट या लाव चड़स से सिंचाई से संबंधित शब्द है।
- चकडोळ :- गाजे-बाजे के साथ शव की क्रिया व उपकरण।
- खेळी :- कुएँ के पास बना मवेशियों के पानी पीने का एक छोटा कुण्ड।
- चौसाळा :- जिस मकान के चारों ओर खुले बरामदे हों।
- धोवण :- मृतक की भस्म नदी या तीर्थ स्थान में डालकर संबंधियों को दिया जाने वाला भोजन।
- छलड़ौ :- चरखे का एक उपकरण।
- छलीमरदौ :- ऊँट के पलाण का एक उपकरण।
- साई :- खरीदी जाने वाली जमीन, वस्तु आदि की कीमत का वह अंश जो सौदा तय हो जाने पर अग्रिम दिया जाता है।
- पिंडारा (बटेवड़ा) :- उपलों (गोबर के कण्डों) को व्यवस्थित जमाकर रखा हुआ ढेर।
- खळाक :- वर्षभर की बेगार के बदले फसल पर दिया जाने वाला अनाज।
- धूळियाभात :- पाणिग्रहण के पूर्व बारात को दिया जाने वाला भोज।
- मगजी (मुगजी) :- रजाई आदि में सिलाई के साथ निकाली गई अन्य कपड़े की किनारी।
- पेटियौ :- मृत्यु या सूर्य-चन्द्रग्रहण के समय दिया जाने वाला आटा-दान।
- पौळपात :- युद्ध के समय किले का मुख्य द्वार खोलकर सर्वप्रथम युद्ध करने वाला चारण वीर।
- लसण :- शरीर की चमड़ी में होने वाला बड़ा काला दाग।
- लसड़कौ :- सिल पर कोई चीज पीसने की क्रिया।
- ढूंढी :- मरे हुए पशु का अस्थि पंजर।
- ढेकली :- कम गहरे कुएँ से पानी सिंचने का उपकरण।
- घियोड़ी :- लकड़ी का वह उपकरण, जिस पर हल रखकर खींचा जाता है।
- मावळी :- मिट्टी के बर्तन में शुद्धि के लिए लगाई जाने वाली मिट्टी।
- माफिजखानौ :- कचहरी में वह स्थान, जहाँ मुकदमों की पुरानी फाइलें रहती हैं।
- बेजड़ :- गेहूँ – जौ – चने का मिश्रण।
- मईयौ :- ऊंटनियों के झुण्ड में रखा जाने वाला झुण्ड।
- भौंडेरू :- विवाह आदि माँगलिक अवसरों पर नेग लेने वाली जातियों का समूह।
- मुखतारनामौ :- वह पत्र जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को अदालती कार्यवाही करने का अधिकार मिला हो।
- मुगदर :- व्यायाम के लिए एक हाथ से उठाया जाने वाला बेलनाकार पत्थर / लकड़ी का लट्ठा।
- रोड :- बुवाई के पश्चात शीघ्र वर्षा होने से बनने वाली फसल की पोची (कमजोर) स्थिति।
- ल्हास :- गोष्ठी की तरह किया जाने वाला फसल की कटाई का कार्य।
- गोहरी :- गाँव की गायें जंगल में ले जाकर चराने वाला ग्वाला।
- नफरी :- मजदूर के एक दिन का श्रम।
- साकरियौ :- घोड़ों का एक रोग। एक प्रकार का सूत का धागा।
- सूम :- कंजूस।
- चांदोड़ी :- मेवाड़ रियासत में प्रचलित एक सिक्का।
- चापड़ौ :- आटे को छानने पर निकलने वाला भूसा (छिलके)।
- संदळौ :- छत पर चूना मसाला आदि जमाकर की जाने वाली घिसाई।
- वोहरौ / बोहरा :- ब्याज पर कर्ज देने का काम करने वाला व्यक्ति।
- ल्होड़ी :- द्वितीय पत्नी।
- आंखड़ौ :- कोल्हू के बैल की आँखों पर बाँधा जाने वाला ढक्कन।
- हुड़बौ :- घाणी (कोल्हू) की लाठ को रोक रखने के लिए लगाई जाने वाली लकड़ी।
- नंगळियौ :- शवयात्रा के साथ ले जाने का मिट्टी का जलपात्र।
- सिकळी :- धारदार हथियारों को मांजने और उन पर शान चढ़ाने की क्रिया।
- सुआवड़ :- प्रसव के बाद खाया जाने वाला पौष्टिक पदार्थ। प्रसव के बाद स्नान शुद्धि तक का समय।
- हौद :- पानी संग्रह करने का बड़ा कुण्ड।
- पावणा :- मेहमान (अतिथि)।
- पातरौ :- जैन साधुओं का काष्ठ पात्र।
- पराळू :- बुवाई के बाद, वर्षा होने से पहले उग जाने वाली खरीफ की फसल।
- पासणी :- बच्चे को प्रथम बार अन्न चटाने की प्रक्रिया।
- हवालौ :- भूमि का लगान वसूलने वाला विभाग।
- अकीकौ :- मुस्लिम बच्चों के मुण्डन व नामकरण का संस्कार।
- बथूळ :- चक्कर खाती हुई तेज चलने वाली हवा।
- बफारौ :- गर्म पानी में दवाई डालकर उसकी भाप से किया जाने वाला सेक।
- पगल्या :- किसी देवता या पीर के सोने-चाँदी के या पत्थर आदि पर खुदे पद-चिह्न।
- आक, आकड़ :- बैलगाड़ी के थाटे के नीचे लगाये जाने वाला अवयव।
- बैराणौ :- जैन साधुओं को भिक्षा या भोजन देना।
- इजारौ :- उधार या किराए पर देने का अधिकार।
- सीळूंड़ौ / बासेड़ौ :- शीतला का त्यौहार और उस दिन खाया जाने वाला ठंडा भोजन।
- टांडौ :- मरे हुए पशुओं का चमड़ा उतारने का स्थान।
- चहलम :- मुस्लिमों में मृतक का 40वाँ दिन।
- चाडौ :- दही मथने का पात्र।
- अजीठौ :- स्वर्णकारों का एक औजार।
- बुगची :- वह गठरी जिसमें वस्त्र या फुटकर सामग्री बाँधी जाती है।
- चांपौ :- चरने जाने वाली गायों का समूह।
- असळ-सळ :- घोड़ों की चाल से उत्पन्न ध्वनि।
- बोलवां / बोलाण :- वांछित फल प्राप्ति की कामना से देवी-देवता को नैवेद्य चढ़ाने का किया गया संकल्प।
- टटपूंजियों :- जिसके पास बहुत कम पूँजी हो।
- टंकाणी :- बैलगाड़ी का उपकरण।
- थावरियौ :- शनिदेव की पूजा करने वाला ब्राह्मण।
- हांथर :- हर महीने की अमावस्या को मृतक को दिया जाने वाला भोग।
- स्त्रुवों :- यज्ञाग्नि में घी इत्यादि की आहूति देने हेतु प्रयुक्त लकड़ी का चम्मच।
- बंगड़ीदार :- वह चूड़ी जिस पर सोने या चाँदी के पत्तर का बंद लगा हो।
- चांचड़ :- परिपक्वास्था में बाजरी का सिट्टा।
- चांगल्यौ :- मिट्टी के बर्तन में तैयार की हुई अवैध शराब।
- इसूपळ :- किले के द्वार पर रहने वाली एक तोप विशेष।
- भूरसी :- यज्ञ, विवाहादि की समाप्ति पर ब्राह्मणों को दी जाने वाली दक्षिणा।
- बड़ावण :- खाट के पैताने को खींचकर लगाई जाने वाली मूंज या सूत की रस्सी।
- कणसारौ :- गोबर या बाँस की खपच्चियों का बना अनाज भरने का कोठा।
- चापरी :- टिड्डी दल से आच्छादित भूमि।
- बोहरगत :- ब्याज पर रुपया उधार देने का धंधा।
- ऊसारी :- कुएँ में लटकायी जाने वाली रस्सी।
- तकावी :- सरकारी की ओर से किसानों को दिया जाने वाला ऋण।
- इक्की :- कटार रखने की चमड़े की पेटी।
- उरसौ :- रियासतों के समय पटेलों को दी जाने वाली मिठाई।
- कपाणियौ :- दीपक की लौ से काजल बनाने का मिट्टी का बना उपकरण।
- सवेरी :- विवाहित पति को छोड़कर दूसरे की पत्नी बनने वाली स्त्री।
- भातड़ियौ :- गाँव-गाँव फिरकर काम करने वाला स्वर्णकार।
- रिखिया :- रामदेवजी पीर की भक्त मेघवाल जाति।
- बाळदियौ :- बैलों पर माल ढोकर देशान्तर में व्यापार करने वाला बन्जारा।
- मारोठ :- विवाह के समय दुल्हे या दुल्हन के मुख पर की जाने वाली सुनहरी चित्रकारी।
- मुचळकौ :- न्यायालय द्वारा अभियुक्त से लिखवाया गया प्रतिज्ञा पत्र।
- हरावल :- सेना का अग्र भाग।
- तालीमखानौ :- शिक्षण संस्था और पाठशालाओं की देखभाल करने वाला विभाग।
- गरदी :- पूरे आकाश में छाई हुई धूल।
- ओतर :- बारात को दी जाने वाली विदाई।
- बणाक :- बारात प्रस्थान से पूर्व की जाने वाली गणेश पूजा।
- पाणंगौ :- गाँव में पानी पीने का कुआँ।
- अथऊ / ब्यालू :- सूर्यास्त से पूर्व का भोजन।
- फेदड़ :- आकाश में छितराए हुए बादल।
- सोवणौ :- अनाज को छाज में डालकर साफ करने की क्रिया।
- हेडाऊ :- घोड़ों का व्यापारी।
- आरण :- लुहार की भट्टी।
- हम्माल :- बाजार या मंडी में अनाज आदि का बोझ उठाने वाला मजदूर।
- आखा :- माँगलिक अवसर पर प्रयुक्त चावल या गेहूँ के दाने।
- अड़वौ :- खेत में फसल की रक्षार्थ एवं पशु-पक्षियों को डराने के लिए खड़ा किया जाने वाला मानवाकृति पुतला।
- उचाला :- जागीरदारी जुल्मों से बचने हेतु वहाँ की रियाया द्वारा गाँव से पलायन कर जाना।
- आँजणी :- आँख की पलकों पर होने वाली फंुसी।
- डहर :- नीची जमीन वाला खेत, जिसमें वर्षा का पानी एकत्रित होता है।
- अफणणौ / फटकणौ :- अनाज को हवा में उछालकर साफ करने की प्रक्रिया।
- रमल :- पासे फेंककर भविष्य बताने की विद्या।
- छाजियौ :- मृतक के पीछे गाया जाने वाला गीत।
- तिपांटौ :- वह स्थान, जहाँ तीन गाँवों की सीमा लगती है।
- छावळी :- किसी वीर की कीर्ति को चिरस्थाई रखने का लोकगीत।
- संथारा :- जैन समुदाय के शरीर त्याग हेतु स्वैच्छा से किया जाने वाला अन्न-जल का त्याग।
- सेवंज :- वह जमीन जिसमें बिना सिंचाई किए वर्षा की फसल होती है।
- सीराव विद्या :- भू गर्भ में पानी का पता लगाने की विद्या।
- फूमड़ी :- वर पक्ष की ओर से माँगलिक अवसरों पर सगाई की हुई लड़की को दिये जाने वाले वस्त्राभूषण।
- पसायत :- सेवा या नौकरी के बदले दी जाने वाली भूमि या जागीर।
- हटड़ी :- काष्ठ या धातु निर्मित पात्र, जिसमें मिर्च-मसाले रखने के खाने बने होते हैं।
- मांवणी :- पाठशाला के छात्रों द्वारा बोली जाने वाली गिनती।
- हाकांणौ :- दुर्भिक्ष के समय मवेशी को पानी व घास वाले प्रदेश में ले जाने की क्रिया।
- गरणी :- अफीम को गलाकर छानने का उपकरण।
- नैमितिक :- राजकीय ज्योतिष।
- चारजामौ :- घोड़े या ऊँट की पीठ पर कसा जाने वाला आसन।
- पाणंत :- फसल की सिंचाई करने की क्रिया।
- विणज :- पकाए हुए मीठे चावल।
- विगत :- राजस्थानी गद्य साहित्य की एक विद्या।
- मावठ :- सर्दियों में होने वाली वर्षा।
- लू :- गर्मियों में चलने वाली हवा।
- पुरवाई :- पूर्व दिशा से चलने वाली हवाएँ।
- सतू :- दानी के आटे में चीनी मिलाकर तैयार किया गया पेय पदार्थ।
- चिलड़ा :- बेसन में नमक, मिर्च डालकर रोटीनुमा बनाया गया व्यंजन।
- बिणियां :- कपास की फसल।
- लापसी :- गेहूँ को मोटा पीसकर गुड़ डालकर बनाया गया पकवान।
- कांकड़ा :- कपास के बीज।
- डेगची :- सब्जी बनाने का पात्र।
- लुबकौ, लुवारौ :- गाय का नवजात बच्चा।
- ठवणी :- पुस्तक रखने का काष्ठ उपकरण।