राजस्थान के प्रमुख ताम्र-पत्र (MAJOR COPPER PLATES OF RAJASTHAN)

राजस्थान के प्रमुख ताम्र-पत्र (MAJOR COPPER PLATES OF RAJASTHAN): आज के आर्टिकल में हम राजस्थान के प्रमुख ताम्र-पत्र के बारे में जानेंगे। आज का हमारा यह आर्टिकल RPSC,RAS, RSMSSB, REET, SI, Rajasthan Police, एवं अन्य परीक्षाओं की दृष्टि से अतिमहत्वपुर्ण है। राजस्थान के प्रमुख ताम्र-पत्र से सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी यहाँ दी गई है।

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ताम्र-पत्र (Copper Plates)

सामान्य परिचय : ताम्र पत्र भूमि दान से जुड़े हैं। जब किसी शासक द्वारा अपने सामंती/अधिकारी/भिक्षु आदि को भूमि दी जाती थी, तो इसका उल्लेख ताम्र-पत्र में सनद के रूप में किया जाता था। इसमें अनुदानकर्ता का नाम, अनुदान देने का कारण, भूमि का विवरण, भूमि का विवरण, समय, दानकर्ता का नाम, आर्थिक, राजा की वंशावली, राजनीतिक, धार्मिक मान्यताओं, भूमि माप इकाइयों के बारे में जानकारी शामिल है। भारत में सबसे पहले सातवाहन शासकों ने बौद्ध भिक्षुओं को भूमि देने की प्रथा शुरू की।

राजस्थान (Rajasthan) के प्रमुख ताम्र पत्र –

पुर का ताम्र-पत्र (1535 ई.) :

  • यह ताम्र पत्र महाराणा श्री विक्रमादित्य के समय का है। इसमें जौहर में प्रवेश करते समय हाड़ी रानी कर्मवती द्वारा दिए गए भूमि अनुदान के बारे में जानकारी दी गई है। यह ताम्रपात्र जौहर की प्रथा पर प्रकाश डालता है और चित्तौड़ के दूसरे साके का सटीक समय निर्धारित होता है।

धुलेव के दान पत्र (679 ईस्वी) :

  • यह उल्लेख है कि किष्किंधा (कल्याणपुर) के महाराज भेटी ने अपने महामात्र आदि अधिकारियों को आज्ञा दी और उन्हें सूचित किया कि उन्होंने भट्टीनाग नामक एक गाँव को महाराजा बप्पदत्ती और धर्मार्थ उबारक नाम के ब्राह्मण को दान में दिया था।

ब्रोच गुर्जर ताम्रपात्र (978 ईस्वी) : इसमें सप्तसैंधव भारत से लेकर गंगा कावेरी तक के गुर्जर वंश के अभियान का वर्णन है। इस ताम्रपत्र के आधार पर कनिंघम ने राजपूतों को कुषाणों की यू-ए-ची जाति माना।

चीकली ताम्र-पत्र (1483 ई.) : यह किसानों से एकत्र किए जाने वाले ‘विविध लाग-बागों’ को दर्शाता है। इसमें पटेल, सुथार और ब्राह्मणों द्वारा खेती का वर्णन है।

कोघाखेड़ी (मेवाड़) का ताम्रपत्र : यह ताम्रपत्र कोघाखेड़ी गाँव की है जिसे महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने दिनकर भट्ट को हिरण्याशवदान में दिया था।

गांव पीपली (मेवाड़) का ताम्रपात्र (1576 ई.) : यह ताम्रपत्र महाराणा प्रतापसिंह के समय का है। इससे स्पष्ट है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद, महाराणा ने मध्य मेवाड़ के क्षेत्र में लोगों को बसाने का काम शुरू किया। युद्ध के समय में जिन लोगों को नुकसान उठाना पड़ता था, उन्हें कभी-कभार मदद दी जाती थी।

कीटखेड़ी (प्रतापगढ़) का ताम्रपत्र (1650 ई.) : यह कीटखेड़ी गाँव के भट्ट विश्वनाथ को दान देने के संबंध में है। यह राजमाता चौहान द्वारा निर्मित गोवर्धननाथजी के मंदिर की प्रतिष्ठा के समय दिया गया था।

कुल-पुरोहित का दानपत्र : इसमें कुल पुरोहित के सम्मान को बनाए रखने और शुभ अवसर के ‘नेगो’ का उल्लेख है।

बेडवास का ताम्र पत्र : यह ताम्रपत्र उदयपुर बसाने के संवत 1616 की पुष्टि पर प्रकाश डालता है।

लावा गांव की ताम्रपत्र : यह उल्लेख है कि महाराणा उदय सिंह ने ब्राह्मण भोला को आदेश दिया कि वह अब भविष्य की लड़कियों के अवसर पर ‘मापा’ कर नहीं लेंगे, बल्कि उस क्षेत्र की लड़कियों का विवाह कराने का उसका अधिकार पूर्ववत रहेगा। यह माना जाता है कि जब अमर सिंह के जन्म की बाधा के लिए एकलिंगजी को देखने के लिए महाराणा उदय सिंह यहां आए थे, तो लौटते समय आहड़ क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया और मोतीमगरी के पास उदयपुर शहर और राजप्रासाद बनाने की योजना बनाई गई।

मथनदेव का ताम्र-पत्र (959 ईस्वी) : यह ताम्र-पत्र मथनदेव का है। इसमें मंदिर के लिए भूमि दान की व्यवस्था सभी राजपुरुष और ग्राम के गणमान्य लोगों के सामने लिखी गई है।

वीरपुर का दान पत्र (1185 ई.) : इस दान पत्र से यह पता चलता है कि गुजरात के लोगों ने सामंत सिंह से वागड़ का राज्य छीन लिया और इसे गुहिलवंशी विजयपाल या उसके पुत्र अमृतपाल को दे दिया।

आहड़ ताम्र-पत्र (1206 ईस्वी) : यह ताम्र पत्र गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव (द्वितीय) का वि.सं. 1263 श्रवण शुक्ला का है। यह गुजरात के मूलराज से भीमदेव द्वितीय तक सोलंकी राजाओं की वंशावली अवगत करवाता है।

पारसोली का ताम्र-पत्र (1473 ई.) : यह ताम्र-पत्र महाराणा रायमल के समय का है। इसमें भूमि की किस्मों को उजागर किया गया है, जिसे पीवाल, गोर्मो, माल, मगरा आदि नामों से जाना जाता था। इस भूमि को उन सभी लागतों से भी मुक्त किया गया था जो उस समय प्रचलित थीं।

खेरादा ताम्र-पत्र (1437 ई.) : यह ताम्र-पत्र महाराणा कुंभा के समय का है। इसमें शंभू को 400 टके (मुद्रा) के दान का भी उल्लेख है। इसमें एकलिंगजी में राणा कुंभा द्वारा किए गए प्रायश्चित, उस समय का दान, धार्मिक स्थिति की जानकारी मिलती है।

ढोल की ताम्र-पत्र (1574 ई.) : यह ताम्रपत्र महाराणा प्रताप के समय की है, जब उन्होंने ढोल नामक एक गाँव की सैन्य चौकी का प्रबंधन किया और अपने प्रबंधक जोशी पुणो को ढोल में भूमि अनुदान दिया।

ठीकरा गाँव की ताम्र-पत्र : गाँव के लिए यहाँ ‘मौंजा’ शब्द का प्रयोग किया है।

डीगरोल गाँव की ताम्र-पत्र : यह ताम्रपत्र महाराणा जगतसिंह के काल की है।

रंगीली ग्राम (मेवाड़) की ताम्रपत्र (1656 ई.) : यह ताम्रपत्र महाराणा राजसिंह के समय से चली आ रही है, जबकि उन्होंने गंधर्व मोहन को रंगीला नामक गाँव उदक किया। इसके साथ गाँव में खड़, लाकड और टका की लागत को भी बाहर रखा गया।

बेडवास गाँव का दान पत्र : यह दानपत्र समरसिंह (बांसवाड़ा) के काल का है। इसमें एक हल भूमि दान का उल्लेख है।

राजसिंह का ताम्रपत्र : यह ताम्रपत्र महाराणा राज सिंह के समय का है, जिसमें वेना नागदा को तुलादान के सम्मान में रानी बदी पवार के राजसमुद्र पर दो गाँवों में तीन हल की भूमि दी गई है।

पारणपुर दान पत्र (1676 ई.) : यह ताम्रपत्र “महाराजा श्री रावत प्रतापसिंह” के काल का है। इसमें उस समय के पढ़ने की कक्षा और शासक वर्ग के नाम और धार्मिक शिक्षण की परंपरा की भावना है। इसमें टकी, लाग और रखवाली आदि का उल्लेख किया गया है।

पाटन्या ग्राम का दान पत्र : इस दान पत्र में पाटन्या गाँव महारावत प्रतापसिंह (प्रतापगढ़) में महता जयदेव को दान देने का उल्लेख है। इसकी आरंभिक पंक्तियों में गुहिल से लेकर भर्तृभट्ट तक के गुहिल राजाओं के नाम दिए गए हैं।

सखेडी की ताम्रपात्र : यह ताम्रपत्र महारावत गोपाल सिंह के काल का है। इसमें लागत-विलगत के साथ कथकावल नामक कर का उल्लेख किया गया है।

बेंगू का ताम्रपत्र : यह ताम्रपात्र महाराणा संग्राम सिंह के समय की है।

वर्खेडी का ताम्रपत्र : यह ताम्रपत्र महारावत गोपाल सिंह के समय से चली आ रही है जिसमें कान्हा के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने लाख पसाव में वरखेदी गाँव और लखना की लागत दी थी। इसमें दिए गए ‘लाख पसाव’ और लखना की लागत बहुत मायने रखती है।

प्रतापगढ़ की ताम्रपात्र : यह ताम्रपात्र महारावत सामंत सिंह के समय की है। जिसमें राज्य में लगे ब्राह्मणों पर ‘टंकी’ को हटाने का उल्लेख है।

ग्राम गड़बोड़ का ताम्रपात्र : यह ताम्रपत्र महाराणा श्री संग्राम सिंह के समय का है। यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि मंदिरों के साथ सदाव्रत की व्यवस्था और डोली की खरीद नहीं की जाती है।

बाँसवाड़ा के दो दान पत्र : ये दोनों दान पत्र महारावल पृथ्वी सिंह के समय के हैं। उज्जैन में क्षिप्रा के तट पर जानी वसीहा को 1 रहँट दान करने का उल्लेख है। ये दोनों दान ऐतिहासिक महत्व के हैं। जब जयवंसराय पंवार की सेना आई और बांसवाड़ा को घेर लिया, तो महारावल सितारा जाकर राजा शाहू से मुलाकात की और हर साल नियमित खिराज देने के लिए सहमत हुए।

कोडमदेसर की कीर्तिस्तंभ : यह कीर्तिस्तंभ जोधाजी द्वारा बनवाया गया था और जिन्होंने अपनी माँ द्वारा निर्मित तालाब की प्रतिष्ठा की और यहाँ एक कीर्तिस्तंभ की स्थापना की।

अम्बलेश्वर स्तंभ लेख (प्रतापगढ़) : इस लेख की भाषा संस्कृतकृत प्राकृत है और इसके किनारे पर अशोकीय ब्राह्मी लिपि है।

महत्वपूर्ण प्रश्न    

  • ताम्र पत्र किस दान से जुड़े है? – भूमिदान
  • भारत में सर्वप्रथम किन शासकों नें ब्राह्मणों / बौध्द भिक्षुओं को भूमिदान देने की प्रथा प्रारम्भ की थी? – सातवाहक शासक
  • किस ताम्र पत्र के आधार पर कनिंघम ने राजपूतों को कुषाणों को यू -ए – ची जाती का माना है? – ब्रोच गुर्जर ताम्रपत्र
  • ताम्रपत्र में सर्वप्रथम किस भाषा का प्रयोग हुआ था? – संस्कृत
  • सभी प्रकार के करों से मुक्त भूमि कौनसी होती है? – ताम्र पत्र जारी की हुई भूमि
  • ताम्र पत्र प्राय किस लम्बाई चौड़ाई के होते थे? –  8″ * 6″ या 12″ * 8″
  • भूमि की छोटी नाप को क्या कहा जाता था?  – बीघा
  • भूमि की बड़ी नाप को क्या कहा जाता था? –  हल
  • रबी की फसलों को पहले क्या कहा जाता था? –  सीयालू
  • खरीफ की फसलों को पहले क्या कहा जाता था? – ऊनालू
  • महाराज भेटी ने भट्टिनाग ब्राह्मण को भूमिदान दिया ये बात कौनसे ताम्र पत्र में उल्लेख है? – धूलेव का दान पत्र ( 679 ई.)
  • ‘अश्वाभुज संवत्सर ‘ का उल्लेख कौनसे ताम्रपत्र में है? –  धूलेव का दान पत्र
  • मंथनदेव का ताम्र पत्र कौनसे ईस्वी का है? –  959 ई.   
  • गुर्जर कबीला का सप्तसैंधव भारत से गंगा कावेरी तक के अभियान का वर्णन किस ताम्रपत्र में है? –  ब्रोच गुर्जर ताम्रपत्र
  • गुजरात वासियों नें सामन्त सिंह से वागड़ राज्य छीनकर गुहिलवंशीय विजयपाल या उसके पुत्र अमृतपाल को दिया ये बात कौनसे ताम्र पत्र में बताई गई है?  – वीरपुर का दानपत्र (1185 ई.)
  • आहड़ ताम्रपत्र ( 1206 ई. ) किस गुजरात के सोलंकी राजा से सम्बंंधित है? –  भीमदेव ( द्वितीय , भोलाभीम। 
  • खेरादा ताम्र पत्र ( 1436 ई. ) किस राजा से सम्बंधित है? –  महाराणा कुम्भा। 
  • शंभू को 400 टका दान महाराणा कुम्भा द्वारा दिया गया ये बात कौनसे ताम्र पत्र में उल्लेख है? – खेरादा ताम्र पत्र
  • पारसोली का ताम्र पत्र किस राजा से सम्बंधित है? –  महाराणा रायमल 
  • पीवल , गोरमो , माल , मगरा किस से संबंधित है ?  – भूमि
  • विविध लाग – बागों का उल्लेख कौनसे ताम्र पत्र में किया गया है? –  चीकली ताम्र पत्र
  • पुर ताम्र पत्र किस राजा से संबंधित से है?  – महाराणा श्री विक्रमादित्य
  • हाड़ी रानी कमेती (कर्मावती ) द्वारा जौहर के समय दिये गये भूमिदान का उल्लेख कौनसे ताम्र पत्र में है? –  पुर ताम्र पत्र। 
  • जौहर प्रथा का पता कौनसे ताम्र पत्र से चलता है?  – पुर ताम्र पत्र
  • चित्तोड़ के द्वितीय शाके के ठीक समय का पता कौनसे ताम्र पत्र से पता चलता है?  – पुर ताम्र पत्र
  • ढोल ताम्र पत्र किस शासक के समय का है? – महाराणा प्रताप। 
  • हल्दी घाटी युध्द के समय जोशी पुनो को कौनसा गांव दान में दिया जो युध्द के समय महत्वपूर्ण साबित हुआ? -ढोल गांव
  • पीपली (मेवाड़ ) गांव का ताम्र पत्र किस शासक से संबंधित है? – महाराणा प्रतापसिंह

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