राजस्थान में 1857 की क्रान्ति (Revolt of 1857 in Rajasthan): आज के आर्टिकल में हम 1857 की क्रांति (1857 ki Kranti) मैं राजस्थान के योगदान के बारे में जानेंगे। आज का हमारा यह आर्टिकल RPSC, RSMSSB, REET, SI, Rajasthan Police, एवं अन्य परीक्षाओं की दृष्टि से अतिमहत्वपुर्ण है। राजस्थान में 1857 की क्रांति के से सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी यहाँ दी गई है।
1857 के विद्रोह के कारण
1857 के विद्रोह को अक्सर भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में वर्णित किया जाता है।
- चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग को 1857 की क्रांति का तात्कालीक कारण माना जाता है।
- 1857 में ब्राउन बैस के स्थान पर ‘एनफील्ड रायफल’ का प्रयोग शुरू हुआ। इस रायफल के बारे में भारतीय सैनिकों में यह अफवाह फैली कि इनमें लगने वाले कारतूसों में गाय तथा सूअर की चर्बी लगी होती है।
- कारतूस का प्रयोग करने से पूर्व उसके खोल को मुंह से उतारना पड़ता था जिससे हिंदू तथा मुस्लिमों का धर्म भ्रष्ट होता है। परिणाम स्वरूप 1857 का विद्रोह प्रारंभ हुआ।
- 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी की 34वीं रेजीमेंट के सैनिक मंगल पाण्डे ने चर्बी लगे कारतूस का प्रयोग करने से मना कर दिया तथा उस पर दबाव डाले जाने के कारण उसने लेफ्टिनेट बाग तथा जनरल हयूसन की हत्या कर दी।
- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी से हुई। अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर को 1857 की क्रांति का नेता चुना गया।
- 1857 की क्रान्ति का प्रतिक चिन्ह – ‘कमल का फुल’ तथा ‘रोटी’ को चुना गया।
- 1857 की क्रांति के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग था।
राजस्थान में 1857 की क्रांति का योगदान
सम्पूर्ण भारत में 562 देशी रियासते थी तथा राजस्थान में 19 देशी रियासत थी।
अग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने वाली प्रथम रियासत – करौली (1817)
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति के समय ए.जी.जी. (एजेन्ट टू गवर्नर जनरल) – सर जार्ज पैट्रिक लारेन्स
- राजस्थान में ए. जी. जी. का मुख्यालय – अजमेर
- राजपुताना का पहला ए. जी. जी. – जनरल लाॅकेट
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति के समय छः ब्रिटिश सैनिक छावनियां थी।
- नसीराबाद – अजमेर
- ब्यावर – अजमेर
- देवली – टोंक
- खैरवाड़ा – उदयपुर
- एरिनपुरा – पाली
- नीमच – मध्यप्रदेश
NOTE: खैरवाड़ा (उदयपुर) व ब्यावर (अजमेर) सैनिक छावनीयों ने इस सैनिक विद्रोह में भाग नहीं लिया।
राजस्थान में 1857 के विद्रोह के दौरान राज्य के शासक तथा पोलिटिकल एजेन्ट
- जोधपुर – मैक मोसन – महाराजा तख्त सिंह
- भरतपुर – मॉरिसन – महाराजा जसवंत सिंह प्रथम
- जयपुर – विलियम ईडन – महाराजा राम सिंह II
- कोटा – मेजर बर्टन – महाराव राम सिंह II
- उदयपुर – कैप्टन शावर्स – महाराणा स्वरूप सिंह
राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरूआत
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति का प्रारम्भ नसीराबाद में 28 मई 1857 को सैनिक विद्रोह से होता है।
नसीराबाद में विद्रोह – 28 मई 1857
- 1857 की क्रान्ति के समय अजमेर में 15 वीं बंगाल नेटिव इंफेंट्री तैनात थी जो उस समय मेरठ से आई थी।
- पैट्रिक लॉरेंस ने इस इंफेंट्री को नसीराबाद भेज दिया तथा अजमेर की सुरक्षा के लिए दो मेर रेजीमेंट टुकड़ियों को बुला लिया गया।
- 15वीं बंगाल इंफेंट्री को अजमेर से हटाये जाने के कारण इनमें असंतोष बढ़ने लगा तथा 28 मई, 1857 को इस टूकड़ी के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
- इस सैनिक टूकड़ी का साथ 30वीं बंगाल नेटिव इंफेंट्री के सैनिकों ने भी दिया।
- इन सैनिकों ने मेजर स्पोटिस वुड तथा न्यूबरी नामक अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी तथा छावनी को लूटते हुए दिल्ली की ओर रवाना हुए।
नीमच में विद्रोह – (3 जुन 1857)
जब नसीराबाद विद्रोह की खबर नीमच के सैन्य अधिकारी कर्नल एबोट उपाध्याय तक पहुंची, तो उन्होंने 2 जून, 1857 को परेड ग्राउंड में सैनिकों को वफादारी की शपथ लेने के लिए मजबूर किया। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान ही, एक घुड़सवार सैनिक अली बेग ने गुस्से में कहा कि “क्या अंग्रेजों ने अपनी शपथ का पालन किया”, क्या आपने अवध को नहीं हड़प लिया? इसलिए भारतीय भी अपनी शपथ का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है।
- 3 जून, 1857 को नीमच के सैनिकों ने मोहम्मद अली बेग तथा हीरासिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। और छावनी को दफनाने के बाद वे चित्तौड़, हम्मीनगढ़, बानेडा और शाहपुरा होते हुए दिल्ली के लिए रवाना हुए और वहाँ के क्रांतिकारियों से जुड़ गए और ब्रिटिश सेना पर जमकर हमला बोला।
- मेजर शावर्स अपनी सेना सहित विद्रोहियों का पीछा करते हुए शाहपुरा पहुँचा था लेकिन यहाँ के शासक ने अंग्रेजों के लिए दुर्ग का दरवाजा नहीं खोला।
डूंगला गाँव क्रांतिकारियों ने नीमच से बचकर भागे 40 अंग्रेज अधिकारियों तथा उनके परिवारजनों को डूंगला गाँव (चित्तौड़गढ़) में रूगाराम किसान के घर में बंधक बना लिया था। मेजर शावर्स ने इन अंग्रेजों को यहाँ से मुक्त करवाया तथा उदयपुर पहुँचाया जहाँ महाराणा स्वरूपसिंह ने इन्हें पिछोला झील के जगमंदिर में शरण दी। इनकी देखभाल की जिम्मेदारी गोकुल चंद मेहता नामक व्यक्ति को दी गई। |
देवली में विद्रोह – (4 जुन 1857)
- देवली और नीमच के सैनिक टोंक पहुंचते है और टोंक की सेना ने विद्रोह किया इससे राजकीय सेना का सैनिक मीर आलम खां के नेतृत्व में टोंक के नवाब वजीर अली के खिलाफ विद्रोह किया। और टोंक, देवली व नीमच के तीनों की संयुक्त सेना दिल्ली चली गई।
एरिनपुरा में विद्रोह – (21 अगस्त 1857)
अंग्रेजों द्वारा 1835 में गठित ‘जोधपुर लीजन’ टूकड़ी को एरिनपुरा छावनी में रखा गया।
इस जोधपुर लीजन की पूर्बिया सैनिकों की टूकड़ी आबू में थी जिसे नसीराबाद तथा नीमच में विद्रोह की सूचना मिलने पर इनमें विद्रोह की भावना जाग्रत हुई।
जोधपुर लीजन टुकड़ी ने एरिनपुरा में विद्रोह किया और इसका नेतृत्व – मोती खां, तिलकराम, सूबेदार शीतल प्रसाद ने किया।
- आहुवा के सैनिक छावनी से आसोपा के ठाकुर शिवनाथ सिंह दिल्ली की ओर ‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी‘ का नारा देते हुए रवाना हो गए। रास्ते में 16 नवंबर 1857 को नारनौल हरियाणा में शिवनाथ सिंह अंग्रेज गराड से हार गया। यहां पर शिवनाथ सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया।
आउवा (पाली) – जोधपुर रियासत का एक ठिकाना था।
आउवा ठिकानेदार ठाकुर कुशाल सिंह ने भी विद्रोह किया। गुलर, आसोप, आलनियावास (आस-पास की जागीर) इनके जागीरदार भी इस विद्रोह में शामिल होते है।
जब यह सूचना ए.जी.जी. लॉरेंस को मिली तो उसने मारवाड़ शासक तख्तसिंह को क्रांतिकारियों को कूचलने के लिए सेना भेजने को कहा।
बिथौड़ा का युद्ध – 8 सितम्बर 1857(पाली)
क्रान्तिकारीयों की सेना का सेनापति ठाकुर कुशाल सिंह और अंग्रेजों की तरफ से मारवाड़ के महाराजा तख्तसिंह के सेनापति ओनाड़सिंह व अंग्रेज अधिकारी कैप्टन हीथकोट के मध्य युद्ध हुआ।
- इस युद्ध में ओनाड़सिंह तथा हीथकोट मारे गये और इसमें क्रांतिकारीयों की विजय होती है।
चेलावास का युद्ध – 18 सितम्बर 1857(पाली)
उपनाम – गौरों व कालों का युद्ध
- राजस्थान ए.जी.जी. पैट्रिक लॉरेंस तथा मारवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट मैकमोसन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने क्रांतिकारियों पर आक्रमण किया जिसमें कुशालसिंह चम्पावत के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की जीत हुई।
- जोधपुर के पालिटिकल एजेट मेंक मेसन का सिर काटकर आउवा के किले के मुख्य दरवाजे पर लटका दिया। 20 जनवरी 1858 को बिग्रेडयर होम्स के नेतृत्व में अंग्रेज सेना आउवा पर आक्रमण कर देती है। ठाकुर कुशालसिंह किले का भार छोटे भाई पृथ्वीसिंह को सौपंकर मेवाड़ चले गये।
- कुशाल सिंह कोठरिया (सलुम्बर) मेवाड़ में शरण लेता है। इस समय मेवाड़ का ठाकुर जोधसिंह था। इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय होती है।
- अगस्त 1860 में कुशाल सिंह आत्मसमर्पण कर दिया। कुशाल सिंह के विद्रोह की जांच के लिए मेजर टेलर आयोग का गठन किया।
- साक्ष्यों के अभाव में कुशाल सिंह को रिहा कर दिया जाता है।
NOTE: 1857 की क्रांति के दो विजय स्तम्भ पाली में स्थित है?
सुगाली माता (10 सिर व 54 हाथ)
- ठाकुर कुशाल सिंह की कुलदेवी
- बिग्रेडियर होम्स सुगाली माता की मुर्ति को उठाकर अजमेर ले जाता है वर्तमान में यह अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित है।
- सुगाली माता को 1857 की क्रांति की देवी भी कहा जाता है।
कोटा में विद्रोह – 15 अक्टुबर 1857
- 1857 की क्रांती के समय कोटा के महाराजा रामसिंह द्वितीय थे।
- कोटा में अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह कोटा की राजकीय सेना तथा आम जनता ने किया।
- 15 अक्टूबर, 1857 को जयदयाल (वकील) तथा मेहराब खान (रिसलदार) के नेतृत्व में कोटा में विद्रोह प्रारंभ हुआ।
- इस समय कोटा का पोलिटिकल एजेन्ट मेजर बर्टन था।
- क्रांतिकारीयों ने मेजर बर्टन, उसके दो पुत्रों तथा डॉक्टर सैडलर की हत्या कर दी। तथा मेजर बर्टन का सिर काटकर सारे शहर में घुमाया गया।
- क्रांतिकारीयों ने कोटा महाराव रामसिंह द्वितीय को महल में नजरबंद कर दिया तथा राज्य के तोपखाने पर अधिकार कर लिया।
- 1857 की क्रांति में कोटा रियासत सबसे अधिक प्रभावित हुई।
- मेजर जनरल रार्बट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना कोटा पर आक्रमण करती है। अधिकांश क्रांतिकारी मारे गये। 30 मार्च, 1858 को कोटा पर अधिकार कर लिया।
- लाला जयदयाल व मेहराब खां को फांसी दि गई।
NOTE: कोटा को क्रांतिकारियों से मुक्त करवाने हेतु करौली शासक मदनपाल ने भी अंग्रेजों की सहायता के लिए सेना भेजी थी। जिसके बदले में उन्हें उपहार स्वरूप सर्वाधिक 17 तोपों की सलामी ओर सन 1866 में जी॰सी॰एस॰ आई॰ की पदवी दी गई।
टोंक में विद्रोह
- 1857 के विद्रोह के समय टोंक का नवाब वजीरूदौला था जिसने अंग्रेजों का साथ दिया। यहाँ हुए विद्रोह में मीर आलम खाँ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- तात्या टोपे के टोंक आने पर क्रांतिकारी उनके साथ हो गये तथा अमीरगढ़ के किले के निकट नवाब की सेना को पराजित कर क्रांतिकारियों ने तोपखाने पर अधिकार कर लिया।
- जयपुर के पॉलिटिकल एजेंट ईडन ने टोंक को क्रांतिकारियों से मुक्त करवाया।
धौलपुर में विद्रोह
- अक्टूबर 1857 में ग्वालियर और इंदौर के विद्रोही सैनिक धौलपुर आए।
- राव रामचंद्र तथा हीरालाल के नेतृत्व में ग्वालियर व इन्दौर के क्रांतिकारी सैनिकों ने स्थानीय सैनिकों के साथ मिलकर विद्रोह किया तथा धौलपुर रियासत पर अधिकार कर लिया।
- दिसम्बर, 1857 तक धौलपुर पर क्रांतिकारियों का अधिकार रहा। अंत में पटियाला के शासक ने अपनी सेना भेजकर धौलपुर को क्रांतिकारियों से मुक्त करवाया।
जयपुर
- 1857 की क्रांती के समय जयपुर का महाराजा सवाई रामसिंह -2 था। विद्रोह की योजना बनाने वाले बजारत खां व शादुल्ला खां ने जयपुर में षड़यंत्र रचा लेकिन समय से पूर्व पता चलने पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
- रामसिंह -2 को सितार-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की। और कोटपुतली के परगना की उपाधि से पुरस्कृत किया गया।
डूंगर सिंह (डूंगजी) -जवाहर जी (सीकर)
- डूंगर सिंह पाटोदा के ठाकुर उदय सिंह व जवाहर सिंह बठोट के ठाकुर दलेल सिंह के पुत्र थे ठाकुर डूंगर सिंह शेखावाटी ब्रिगेड में रिसालदार थे
- 1857 के संग्राम के समय सीकर क्षेत्र में काका-भतीजा डूंगजी-जवाहरजी प्रसिद्ध देशभक्त हुए।
- इन्होंने छापामार लड़ाइयों से अंग्रेजों को परेशान किया तथा ये धनी लोगों से धन लूटकर गरीबों में बाटंते थे। इन्होंने कई बार अंग्रेज छावनियों को भी लूटा।
- नसीराबाद छावनी को भी लूटा।
- अंग्रेजों द्वारा डूंगजी को आगरा के किले में कैद कर लिया गया था जिन्हें जवाहर जी ने लोटिया जाट तथा करणिया मीणा की सहायता से छुड़वाया।
- बीकानेर में अंग्रेजी सेना ने डूंगजी-जवाहरजी को घेर लिया जिसके पश्चात डूंगजी जैसलमेर तथा जवाहरजी भागकर बीकानेर चले गये।
तात्या टोपे का राजस्थान आगमन तात्या टोपे का मूल नाम रामचंद्र पांडुरंग था जो 1857 की क्रांति में ग्वालियर का विद्रोही नेता था। तात्या टोपे सर्वप्रथम 8 अगस्त, 1857 को भीलवाड़ा आया।9 अगस्त, 1857 को कुआड़ा नामक स्थान पर जनरल रॉबर्टस की सेना ने तात्या टोपे को पराजित किया।कोठारिया के ठाकुर जोधसिंह ने तात्या टोपे को रसद सामग्री उपलब्ध करवाई।तात्या टोपे सेना सहित झालावाड़ पहुँचा जहाँ के शासक पृथ्वीसिंह ने उनके विरूद्ध सेना भेजी जो क्रांतिकारियों से पराजित हुई। क्रांतिकारियों ने झालावाड़ पर अधिकार कर लिया। तात्या टोपे वापस ग्वालियर चले गये। तात्या टोपे पुन: मेवाड़ आये तथा 11 दिसम्बर, 1857 को बांसवाड़ा पर अधिकार कर लिया।यहाँ से तात्या टोपे प्रतापगढ़ पहुँचे जहाँ मेजर रॉक की सेना ने उन्हें पराजित किया।नरवर के जागीरदार मानसिंह नरूका की सहायता से अंग्रेजों ने नरवर के जंगलों में तात्या टोपे को पकड़ लिया तथा 18 अप्रैल, 1859 को तात्या टोपे को सिप्री (शिवपुरी) मध्य प्रदेश में फांसी दे दी गई। |
याद रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
- महाराजा सरदार सिंह (बीकानेर) एकमात्र शासक थे जो राजस्थान से बाहर पंजाब के बदलू में अपनी सेना के साथ विद्रोह को दबाने के लिए गए थे।
- 857 की क्रांति में बीकानेर के अमरसिंह बांठिया, प्रथम राजस्थानी व्यक्ति थे जिन्हें फांसी दी गई।
- राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम का भामाशाह दामोदर दास राठी को कहा जाता है। भचूंडला (प्रतापगढ़) नामक स्थान पर ‘वीरों का स्मारक स्तंभ’ बना हुआ है।
- ‘द म्यूटिनी इन राजस्थान’ नामक पुस्तक प्रीचार्ड द्वारा लिखी गई। अंग्रेजों ने निम्बाहेड़ा पर अधिकार कर टोंक निवासी ताराचंद जो निम्बाहेड़ा का मुख्य पटेल था, को ताेप से उड़ा दिया था।
- धौलपुर में विद्रोह राज्य से बाहर के सैनिकों ने किया था तथा उसे दबाने भी बाहर के सैनिक आये थे। रेबारी समुदाय के लोग मैकमोसन की कब्र पर पूजा अर्चना करते है।
- जयपुर के महाराजा रामसिंह द्वितीय द्वारा की गई सहायता से प्रसन्न होकर अंग्रेजों ने इन्हें स्थायी रूप से कोटपुतली का परगना प्रदान किया।
राजस्थान में 1857 के विद्रोह की विफलता के मुख्य कारण थे:
- देशी शासक अदूरदर्शी थे, वे अंग्रेजों के भक्त थे, इसलिए उन्होंने विद्रोहियों का समर्थन नहीं किया।
- राजा-महाराजाओं द्वारा अंग्रेजों का सहयोग देना राजस्थान की लगभग सभी रियासतों के राजाओं द्वारा अंग्रेजों का भरपूर सहयोग किया गया।
- अलवर के महाराजा विनयसिंह ने आगरा के किले में घिरे अंग्रेज परिवारों की सहायता हेतु सेना भेजी।
- विद्रोहियों का कोई निश्चित नेता नहीं था; इसके अलावा उनमें एकता और संगठन का अभाव था।
- सभी प्रमुख केन्द्रों पर क्रांति का एक समय पर प्रारंभ न होना।
- नसीराबाद के क्रांतिकारियों का दिल्ली चले जाना, जबकि उन्हें अजमेर जाकर वहाँ के शस्त्रागार पर अधिकार करना चाहिए था।
राजस्थान में 1857 के विद्रोह के परिणाम
- 1857 के विद्रोह के परिणाम स्वरूप बीकानेर के अमरचंद बांठिया को फांसी दे दी गई।
- अमरचंद बांठिया को राजस्थान का मंगल पांडे कहा जाता है।
- चूंकि विद्रोह के कई नेता सामंत थे, इसलिए अंग्रेजों ने युद्ध के विघटन के बाद विभिन्न तरीकों से सामंती व्यवस्था की शक्ति को नष्ट करने का फैसला किया।
- विद्रोह के दौरान देशी शासकों ने अंग्रेजों की मदद की, इसलिए विद्रोह के दमन के बाद अंग्रेजों ने उन्हें उपाधियाँ और पुरस्कार दिए। जयपुर के महाराजा राम सिंह प्रथम ने अपने संसाधनों से अंग्रेजों की मदद की और उन्हें “सितार-ए-हिंद” और कोटपुतली के परगना की उपाधि से पुरस्कृत किया गया।
- विद्रोह काल में अंग्रेजों को अपनी सेना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में भारी असुविधा का सामना करना पड़ा था। इस प्रकार 1865 ई. में विघटन के बाद जयपुर और अजमेर की ओर जाने वाली सड़क तथा नसीराबाद से चित्तौड़गढ़ होते हुए नीमच जाने वाली सड़क का निर्माण किया गया।
- तख्तापलट के बाद राजस्थान के पारंपरिक सामाजिक ढांचे में भी बदलाव आया। विद्रोह के दमन के बाद आधुनिक शिक्षा का प्रसार हुआ और सभी राज्यों में अंग्रेजी नियमों को लागू किया गया। इससे ब्राह्मणों का महत्व कम हो गया।
- इस विद्रोह ने जनता में एक नई चेतना और जागृति पैदा की। श्री नाथूराम खड़गावत के अनुसार, “इस शत्रुता में आम जनता ने भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लिया।”
NOTE: सितम्बर, 1857 को मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को कैद कर अंग्रेजों ने दिल्ली के लाल किले पर अधिकार कर लिया गया जिससे यह क्रांति नेतृत्वहीन हो गई। भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया जाता है और भारत का शासन ब्रिटिश ताज या ब्रिटीश सरकार के अधिन चला जाता है। |
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