ताल छापर कृष्णमृग अभयारण्य चूरू

ताल छापर कृष्णमृग अभयारण्य चूरू: हाल ही में राजस्थान राज्य द्वारा प्रसिद्ध ताल छापर कृष्णमृग (ब्लैकबक) अभयारण्य, चूरू के इको सेंसिटिव ज़ोन के आकार को कम करने के प्रस्ताव के विरुद्ध उक्त अभ्यारण्य को संरक्षण प्राप्त हुआ है। कोर्ट ने उन खबरों का संज्ञान लिया जिसमें कहा गया था कि खदान मालिकों और स्टोन क्रेशर संचालकों के दबाव में इसअभयारण्य का क्षेत्रफल घटाकर तीन वर्ग किलोमीटर किया जा रहा है।

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ताल छापर कृष्णमृग अभयारण्य के बारे में

  • ताल छापर अभयारण्य राजस्थान में चूरू जिले की सुजानगढ़ तहसील में छापर नामक गाँव में स्थित है। ताल छापर कृष्णमृग अभ्यारण्य 7.19 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • ताल छापर भारत में देखे जाने वाले सबसे सुंदर एंटीलोप “द ब्लैकबक” का एक विशिष्ट आश्रय स्थल है।
  • इसे वर्ष 1966 में अभयारण्य का दर्जा दिया गया था।
  • ‘ताल’ शब्द राजस्थानी शब्द है जिसका अर्थ समतल भूमि होता है। ताल छापर अभयारण्य वन्य जीवों के लिए सुरक्षित भौगोलिक प्रवेश, सपाट भूभाग व मोथिया घास के कारण सबसे पसंदीदा स्थल है।
  • यह अभयारण्य लगभग 4,000 ब्लैकबक, रैप्टर्स की 40 से अधिक प्रजातियों और स्थानिक एवं प्रवासी पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियों का निवास स्थल है।
  • अभयारण्य में प्रवासी पक्षियों में हैरियर, ईस्टर्न इम्पीरियल ईगल, टॉनी ईगल, शॉर्ट-टोड ईगल, गौरैया और छोटे-हरे मधुमक्खी खाने वाले, ब्लैक आईबिस और डेमोइसेल क्रेन शामिल हैं। इसके अलावा, स्काईलार्क्स, क्रेस्टेड लार्क्स, रिंग डव्स और ब्राउन डव्स पूरे साल देखे जा सकते हैं।

ताल छापर अभयारण्य का इतिहास

  • ब्रिटिश काल में ताल छापर अभयारण्य बीकानेर के महाराजा का शिकारगाह था। बीकानेर महाराजाद्वारा इस अभयारण्य का रख-रखाव शिकारगाह के रूप में स्वयं के लिए तथा उनके मेहमानों के लिएकिया जाता था। आजादी के बाद राज्य सरकार ने 1962 में इसे वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र घोषित कर इसमें शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लागू कर दिया तथा तथा कालांतर में इसे अभयारण्य घोषित कर दिया गया।
  • आरक्षित क्षेत्र का क्षेत्रफल शुरू में 820 हेक्टेयर में था जिसका काफी हिस्सा नमक बनाने हेतु हस्तातरित करने के कारण अभयारण्य का क्षेत्रफल धीरे-धीरे सिकुड़ कर वर्तमान में 719 हेक्टेयर रह गया है।
  • वर्तमानमें अभयारण्य का प्रबंधन वन विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा एक स्वीकृत प्रबंध योजना के तहत कियाजा रहा है।

काले हिरण (Blackbuck) के बारे में

  • कृष्णमृग का वैज्ञानिक नाम ‘Antilope cervicapra’ है, जिसे ‘भारतीय मृग’ (Indian Antelope) के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत और नेपाल में मूल रूप से स्थानिक मृग की एक प्रजाति है।
  • ये राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों में (संपूर्ण प्रायद्वीपीय भारत में) व्यापक रूप से पाए जाते हैं।
  • ये घास के मैदानों में सर्वाधिक पाए जाते हैं अर्थात् इसे घास के मैदान का प्रतीक माना जाता है।
  • इसे चीते के बाद दुनिया का दूसरा सबसे तेज़ दौड़ने वाला जानवर माना जाता है।
  • कृष्णमृग एक दैनंदिनी मृग (Diurnal Antelope) है अर्थात् यह मुख्य रूप से दिन के समय ज़्यादातर सक्रिय रहता है।
  • यह आंध्र प्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: यह हिंदू धर्म के लिये पवित्रता का प्रतीक है क्योंकि इसकी त्वचा और सींग को पवित्र अंग माना जाता है। बौद्ध धर्म के लिये यह सौभाग्य (Good Luck) का प्रतीक है।

भारत में काला हिरण अभयारण्य

भारत में काला हिरण यानी blackbuck जहां अधिक संख्या में पाई जाती हैं, उनमें शामिल अभयारण्य –

  • वेलावदार ब्लैकबक नेशनल पार्क भावनगर, गुजरात (Velavadar Blackbuck National Park)
  • ताल छापर काला हिरण अभयारण्य (चूरू , राजस्थान)
  • तमिलनाडु में प्वाइंट कैलिमेरे अभयारण्य (Point Calimere Sanctuary)

इको सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के बारे में
ESZ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Climate Change- CC) द्वारा अधिसूचित क्षेत्र हैं।
मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने वाले संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
जून, 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि देश भर में प्रत्येक संरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभ्यारण्य में उनकी सीमांकित सीमाओं से शुरू करते हुए कम से कम एक किलोमीटर का अनिवार्य पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) होना चाहिये।  

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