[A] सीता
[B] दुर्गा
[C] ऊषा
[D] पार्वती
Answer: D
सांझी को माता पार्वती का रूप मान कर अच्छे वर, घर की कामना के लिए कन्याएं पूजन करती हैं।
राजस्थान की प्रमुख लोककलाएं
सांझी कला
** सांझी दशहरे से पूर्व श्राद्ध पक्ष में बनाई जाती है। कुंवारी कन्याएं सफेदी पुती दीवारों पर पन्द्रह दिन लगातार गोबर से आकार उकेरती हैं व उसका पूजन करती हैं।
** इसे सांझी, संझुली, सांझुली, सिझी, सांझ के हाँजी, हाँज्या आदि कई नामों से जाना जाता है। कन्याएं गोबर से रेखाओं को उकेरकर उनमें काँच के टुकड़े, मोती, चूड़ी, कौड़ी, पत्थर, पंख, कपड़ा, कागज, लाख, फूल-पत्तियाँ आदि के प्रयोग द्वारा एक दमकती हुई रंगीन चित्ताकर्षक आकृति बनाती हैं।
** पहले दिन से दसवें दिन तक एक या दो प्रतीक ही प्रतिदिन बनाए जाते हैं, किन्तु अंतिम पाँच दिन बड़े आकारों में सांझी की रचना की जाती है, जिसे संझ्या कोट कहते हैं। पहले दिन सूर्य, चन्द्रमा, तारे, दूसरे दिन पाँच फूल, तीसरे दिन पंखी, चौथे दिन हाथी सवार, पाँचवें दिन चौपड़, छठे दिन स्वास्तिक, सातवें दिन घेवर, आठवें दिन ढोलक या नगाड़े, नवें दिन बन्दनवार व दसवें दिन खजूर का पेड़ बनाया जाता है।
** आखिरी पाँच दिन संझ्याकोट में बीचों-बीच सबसे बड़े आकार में सांझी माता व मानव, पशु-पक्षी प्रकृति आदि का चित्रण किया जाता है।
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