राजस्थान की मिट्टियां | Soils of Rajasthan

राजस्थान की मिट्टियां | Soils of Rajasthan: भूमि की ऊपरी सतह जो चट्टानों के टूटने-फूटने एवं विघटन से उत्पन्न सामग्री तथा उस पर पड़े जलवायु, वनस्पति एवं जैविक प्रभावों से विकसित होती है और जो पेड़-पौधों के उगने के लिए आवश्यक खनिज आदि प्रदान करती है, मृदा या मिट्टी कहलाती है। इनकी भिन्नता का सम्बन्ध वहां की चट्टानों की सरंचना, धरातलीय स्वरूप, जलवायु, वनस्पति आदि से होता है।

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मिट्टी शब्द की उत्पति: मृदा शब्द की उत्पति लैटिन भाषा के सोलम (Solum) शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ – फर्श होता है 

NOTE: मिट्टी के अध्ययन के विज्ञान को मृदा विज्ञान यानी पेडोलोजी कहा जाता है।

विश्व मृदा दिवस (World Soil Day)

  • मिट्टी के स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता लाने के उद्देश्य से 5 दिसम्बर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। 5 दिसम्बर 2013 को UNO (सयुक्त राष्ट्र संघ) द्वारा मृदा दिवस मनाने की घोषणा की गयी।
  • प्रथम मृदा दिवस – 5 दिसम्बर 2014 को मनाया गया था।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष 2015 को घोषित किया गया।  

मृदा की प्रकृति

  • क्षारीय प्रकृति – वह मृदा जिसका PH मापक्रम 7 से अधिक है क्षारीय प्रकृति कहलाती है, मृदा में क्षारीयता की समस्या के समाधान के लिए जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।    
  • अम्लीय प्रकृति – वह मृदा जिसका PH मापक्रम 7 से कम है अम्लीय प्रकृति कहलाती है, मृदा में अम्लीयता की समस्या के समाधान के लिए रॉक फोस्फेट/जिंकचूर्ण/चुना पथर का प्रयोग किया जाता है।
  • उदासीन प्रकृति –  वह मृदा जिसका PH मापक्रम 7 होता है।

राजस्थान की मिट्टियों का का वर्गीकरण

  1. मिट्टी की पुरानी सामान्य प्रणाली
  2. राजस्थान की मिट्टियों का वैज्ञानिक वर्गीकरण
  3. कृषि विभाग के अनुसार वर्गीकरण

मिट्टी की पुरानी सामान्य प्रणाली

मिट्टी वर्गीकरण की पुरानी प्रणाली 1949 में अमेरिकी कृषि विभाग के वैज्ञानिकों (थोर्प और स्मिथ) द्वारा विकसित की गई थी। यह वर्गीकरण जलवायु और खनिज विज्ञान में अंतर पर आधारित है। इस प्रणाली के अनुसार, राजस्थान की मिट्टी/मृदाको 8 प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. लाल बलुई मिट्टी
  2. लवणीय मिट्टी
  3. लाल दोमट मिट्टी
  4. पर्वतीय मिट्टी
  5. भूरी मिट्टी
  6. जलोढ़ मिट्टी
  7. धूसर/सिरोजम मिट्टी
  8. बलुई/रेतीली/मरूस्थलीय मिट्टी

1. लाल बलुई मिट्टी

  • इस प्रकार की मृदा मुख्यतः चुरू, झुंझुनू, जोधपुर, नागौर, पाली, जालौर, बाड़मेर जैसे मरुस्थलीय भागों में पायी जाती है ।
  • इस प्रकार की मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बोनिक तत्वों की मात्रा कम होती है।
  • लाल बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में बरसाती घास व कुछ झाड़ियाँ पाई जाती है।
  • इस मृदा में खरीफ के मौसम में बारानी खेती की जाती है, जो पूर्णतः वर्षा पर निर्भर होती है। रासायनिक खाद डालने और सिंचाई करने पर ही रबी की फसलें गेंहूँ, जौ,चना आदि का उत्पादन होता है।

2. लवणीय/ क्षारीय मिट्टी

  • अन्य नाम – क्षारीय मिट्टी, ऊसर मिट्टी, रेह मिट्टी
  • लवणीय मिट्टी मुख्यतः नमकीन झीलों के किनारे पर बाड़मेर, जालौर, कच्छ की खाड़ी के पास के क्षेत्रों में साथ ही श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, भरतपुर व कोटा जैसे सिंचाई वाले भागों में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी में क्षारीय लवण तत्वों की मात्रा अधिक होती है। लवणों का जमाव अधिक सिंचाई से भी हो जाता है ।
  • लवणीय मृदा का pH मान 5 से काम होता है।
  • इस प्रकार की मिट्टी उनुपजाउ होती है। इसमें केवल झाड़ियाँ व बरसाती पौधे ही पनप सकते हैं।
  • इस मिट्टी को जिप्सम, हरी खाद तथा रॉक फॉस्फेट आदि के उपयोग से उपजाऊ बनाया जा सकता है। रॉक फॉस्फेट के उपयोग से मृदा की लवणीयता की समस्या दूर की जाती है तथा जिप्सम का प्रयोग मिट्टी की क्षारीयता दूर करने में किया जाता है।

3. लाल दोमट मिट्टी

  • लाल दोमट मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और कैल्सियम लवणों की कमी होती है।
  • लौह ऑक्साइड की अधिकता के कारण इस मिट्टी का रंग लाल होता है।
  • लाल दोमट मिट्टी राजस्थान के डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ जिलों के कुछ भागों में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी का रंग लाल होने के साथ ही इसके कण बहुत बारीक होते है। पानी ज्यादा समय तक रहने के कारण इस मिट्टी में नमी लम्बे समय तक बनी रहती है ।
  • रासायनिक खाद देने व पर्याप्त सिंचाई करने से इसमें कपास, गेंहूँ, जौ, चना आदि की फसलें अच्छी होती हैं।

4. पर्वतीय मिट्टी

  • इसका रंग लाल से लेकर पीले, भूरे रंग तक होता है।
  • इस प्रकार की मिट्टी मुख्यतः अरावली पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती है। अरावली पर्वत श्रेणी की तलहटी मे सिरोही, उदयपुर, पाली, अजमेर और अलवर क्षेत्र आते है।
  • पहाड़ी ढालों पर होने के कारण इस मिट्टी की गहराई कम होती है, कुछ गहराई के बाद चट्टानी सतह आ जाती है ।
  • पर्वतीय मिट्टी पर खेती नहीं की जा सकती । पर्वतीय मिट्टी सिरोही, उदयपुर, पाली, अजमेर और अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में पाई जाती है ।

5. भूरी मिट्टी

  • इस मिट्टी में फोस्फोरस और नाइट्रोजन लवणों का अभाव होता है।
  • यह कपास, मूंगफली तथा दालों के लिये उपयुक्त होती है।
  • भूरी मिट्टी अक्सर आस-पास की नदियों से बह कर आती है इसका जमाव मुख्यतः बनास व उसकी सहायक नदियों के प्रवाह क्षेत्र टोंक, सवाई माधोपुर, बूँदी, भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ में पाया जाता है।

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6. जलोढ़ मिट्टी

  • जलोढ़ अर्थात् जल द्वारा बहा कर लाई गई मिट्टी। नदी या नालो में बह कर आयी हुई यह जलोढ़ मृदा उत्पादकता की दृष्टि से उत्तम होती है। जलोढ़ मृदा को राजस्थान की सबसे उपजाऊ मृदा माना जाता है|
  • इस तरह की मिट्टी में पोटाश, फास्फोरस, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक तथा नाइट्रोजन, फास्फोरस के अंश कम मात्रा में मिलते हैं।
  • जलोढ़ मिट्टी का pH मान 7 से अधिक होता है।
  • बहुत ऊपजाऊ होने के कारण रबी और खरीफ दोनों ही प्रकार की फसले इस मिट्टी में अच्छी होती है।
  • जलोढ़ मृदाएँ मुख्य रूप से टोंक, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा, अजमेर, पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में पाई जाती हैं।

जलोढ़ मिट्टी 2 प्रकार की होती है-

  • बांगर – पुरानी जलोढ़ मृदा को बांगर कहा जाता है।
  • खादर – नयी जलोढ़ मृदा को खादर कहा जाता है।

7. धूसर / सीरोजम मिट्टी

  • इसकी उर्वरा शक्ति कम होती है। इसमें बारानी खेती की जाती है ।
  • धूसर / सीरोजम मिट्टी रंग में पिले और भूरे रंग की होती है यह अरावली के पश्चिम में छोटे टीलों वाले क्षेत्रों जैसे पाली, नागौर, अजमेर, जयपुर व दौसा में पायी जाती है।
  • सीरोजम मिट्टी के कण मध्यम मोटाई के होते हैं तथा इसमें नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है।
  • रबी की फसलों के उत्पादन हेतु निरन्तर सिंचाई तथा अधिक मात्रा में रासायनिक खाद की आवश्यकता होती है।

8. बलुई/रेतीली/मरूस्थलीय मिट्टी

  • यह मृदा कण मोटे होने के कारण जलधारण क्षमता कम होती है।
  • इसमें मोठ, मूंग और बाजरा जैसी खरीफ फसले अच्छी होती है।
  • इस तरह की मिट्टी पश्चिमी राजस्थान के मरूस्थली प्रदेश में विस्तृत है। मुख्यत: जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर, नागौर व चूरू में इसकी उपलब्धता है।
  • इसमें नाइट्रोजन व कार्बनिक लवणों व जैविक पदार्थों का अभाव होता है परन्तु कैल्शियम व फॉस्फेट की मात्रा पर्याप्त होती है यह मृदा पानी उपलब्ध होने पर अच्छी फसल देती है।
  • बलुई मिट्टी के ऊँचे टीलों के निचले भाग में बारीक कणों वाली मुल्तानी मिट्टी पाई जाती है यह खडीन कृषि पद्धति के लिए उपयुक्त होती

मिट्टियों का वैज्ञानिक वर्गीकरण

मृदा के अध्ययन तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे तुलनात्मक बनाने के प्रयासों के अंतर्गत I CAR ने भारतीय मृदाओं को उनकी प्रकृति और उन के गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया है। यह वर्गीकरण संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (यू.एस.डी.ए.) मृदा वर्गीकरण पद्धति पर आधारित है।

1976 में मृदा सर्वेक्षण कर्मचारियों द्वारा मृदा वर्गीकरण की नई व्यापक प्रणाली विकसित की गई। इस नई प्रणाली में मृदा को 11 भागों में बांटा गया जिसमे से राजस्थान में 5 प्रकार की मृदा पाई जाती है।जो निम्न प्रकार है:

  1. एरिडीसोल (Aridisol)
  2. अल्फ़ीसोल्स (Alfisols)
  3. एंटीसोल(Entisol)
  4. इन्सेप्टीसोल (Inceptisol)
  5. वर्टिसोल (Vertisols)

1. एरिडीसोल (Aridisol)

  • एरिडीसोल एक खनिज मृदा है जो मुख्यतः शुष्क जलवायु में पायी जाती हैं।
  • यह चुरू, सीकर, झुंझुनू, नागौर, जोधपुर, पाली और जालौर जिलों में मिलती है।

2. अल्फ़ीसोल्स(Alfisols)

  • इस प्रकार की मृदा में मटियारी मिट्टी की प्रतिशत मात्रा अधिक होती है।
  • यह जलोढ़ मृदा ही है।
  • जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, करौली, टोंक, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, राजसमन्द, उदयपुर, डूंगरपुर, बूंदी, कोटा, बारां, झालावाड़ आदि जिलों में इस प्रकार की मिटटी पाई जाती है।

3. एन्टीसोल (Entisol)

  • रंग – हल्का पीला, भूरा
  • एन्टीसोल एक ऐसा मृदा वर्ग है जिसके अंतर्गत भिन्न प्रकार की जलवायु में स्थित मृदाओं का समावेश होता है। भिन्न – भिन्न जलवायु दशाओं के कारण इस मृदा का निर्माण हुआ है
  • इस प्रकार की मृदा पश्चिमी राजस्थान के लगभग सभी जिलों में पाई जाती है।

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4. इनसेप्टीसोल (Inceptisol)

  • अरावली के ढालों में इस मृदा का विस्तार है।
  • इस प्रकार की मृदा अर्द्धशुष्क से उप आर्द्र जलवायु क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • सिरोही, पाली, राजसमन्द, उदयपुर, भीलवाडा और चितौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है।

5. वर्टीसोल्स (Vertisols)

  • इस प्रकार की मृदा झालावाड़, बारां, कोटा, बूँदी क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी में अत्यधिक क्ले उपस्थित होने के कारण इसका रंग काला होता है। इसमें मटियारी मिट्टी की सभी विशेषताएँ उपस्थित होती है।

Additional information

  • राजस्थान में सर्वाधिक विस्तार वाली मृदा –  एरिडीसोल-एंटीसोल
  • राजस्थान में सर्वाधिक मृदा का विस्तार –   एंटीसोल
  • राजस्थान में न्यूनतम मृदा का विस्तार –   वर्टीसोल
  • राजस्थान में सर्वाधिक उपजाऊ मृदा  –  एल्फिसोल
  • राजस्थान में सर्वाधिक कार्बनिक तत्व वाली मृदा –  इन्सेपटीसोल

राजस्थान की मिट्टियों का वैज्ञानिक वर्गीकरण सारणी

मृदा का नामक्षेत्र
एन्टी सोल्स (रेगिस्तानी)पश्चिमी राजस्थान
एरिडोसोल्स (बालु मिट्टी)चूरू, सीकर, झुंझूनू, नागौर, जोधपुर, पाली, जालौर
वर्टीसोल्स (काली मिट्टी)झालावाड़, बारां, कोटा, बूँदी
इनसेप्टी सोल्स (पथरीली मिट्टी)सिरोही, पाली, राजसमन्द, उदयपुर, भीलवाड़ा, झालावाड़
अल्फी सोल्सजलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र

कृषि विभाग के अनुसार राजस्थान में 14 प्रकार की मृदा पाई जाती है

  1. रेवेरिना  : (गंगानगर)
  2. साइरोजेक्स : (गंगानगर)
  3. जिप्सीफेरस : (बीकानेर)
  4. नवीन भूरी मृदा : (भीलवाड़ा- अजमेर)
  5. पर्वतीय मृदा : (उदयपुर- कोटा)
  6. लाल लोम मृदा : (डूंगरपुर- बासवाड़ा)
  7. केल्सी-ब्राउन मृदा : (बीकानेर- जैसलमेर)
  8. धूसर-भूरी जलोढ़
  9. नॉन केल्सी ब्राउन
  10. पिली भूरी मृदा
  11. काली गहरी मध्यम मृदा
  12. नवीन जलोढ़ मृदा
  13. मरुस्थलीय मृदा
  14. बालूका स्तूप

राज्य में मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएं

मिट्टी की गुणवत्ता और पोषक तत्वों आदि के परीक्षण के लिए मृदा जांच करवाई जाती हैं. राजस्थान में मुख्य रूप से तीन बड़ी प्रयोगशालाएँ है जिनमें मिट्टी का परीक्षण किया जाता हैं.

सामान्य मिट्टी प्रयोगशालाजयपुर
समस्याग्रस्त मिट्टी प्रयोगशालाजोधपुर
केन्दीय भू-संरक्षण बोर्ड कार्यालयकोटा, जोधपुर

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना

भारत सरकार ने राजस्थान के किसानों को नजदीकी कृषि विज्ञान सेंटर से मृदा की जाँच करवाने के लिए सॉयल हेल्थ कार्ड जारी कर मुफ्त में मिट्टी जांच की स्कीम शुरू की हैं।

  • 19 फरवरी, 2015 को राजस्थान के श्रीगंगानगर ज़िले के सूरतगढ़ में राष्ट्रव्यापी ‘राष्ट्रीय मृदा सेहत कार्ड’ योजना का शुभारंभ किया गया।
  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश भर के किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किये जाने में राज्यों का सहयोग करना है।
  • इस योजना की थीम है: स्वस्थ धरा, खेत हरा
  • इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण युवा एवं किसान जिनकी आयु 40 वर्ष तक है, मृदा परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना एवं नमूना परीक्षण कर सकते हैं।

राजस्थान की मृदा से जुड़े कुछ मुख्य तथ्य

  • राज्य में वायु से मृदा अपरदन का क्षेत्रफल सबसे अधिक, उसके बाद जल से मृदा अपरदन।
  • मिट्टी का अवनालिका अपरदन सर्वाधिक चम्बल नदी से।
  • देश की व्यर्थ भूमि का 20% भाग राजस्थान में पाया जाता है, क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक व्यर्थ भूमि जैसलमेर (37.30%) में है।
  • पणों – तालाब का जल सूखने पर जमीन की उपजाऊ मिट्टी की परत को स्थानीय भाषा मे पणों कहते है।
  • धमासा (ट्रफोसिया परपूरिया) -पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में पायी जाने वाली खरपतवार है।
  • वालरा (वल्लर) – ढलुआ क्षेत्रों में, जहाँ हल नहीं चल सकते, जमीन को खोदकर खेती की जाती है। इस प्रणाली को स्थानीय भाषा में वालरा (वल्लर) कहते हैं।
  • बाँझड़ – वर्षा में ना जोति गई अनुपजाऊ भूमि को बाँझड या पड़त भूमि कहा जाता है।
  • राजस्थान में प्रथम मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला जोधपुर में 1958 में स्थापित की गई थी|
  • वर्ष 1952 में जोधपुर में मरुस्थल वृक्षारोपण एवं अनुसंधान केंद्र स्थापित किया गया था।

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