राजस्थान के लोकदेवता तेजाजी Tejaji Maharaj: नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान के लोक देवता तेजाजी के इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।
लोक देवता तेजाजी का इतिहास
गोगाजी की ही तरह इन्हे भी नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि यदि सर्प-दंशित व्यक्ति के दायें पैर में तेजाजी की तांत (डोरी) बांध दी जाये तो उसे विष नहीं चढ़ता। इन्हे काला-बाला का देवता तथा कृषि कार्यों के उपासक देवता के रूप में भी पूजा जाता है।
तेजाजी का जीवन परिचय
- तेजाजी का जन्म नागौर जिले के खड़नाल ग्राम में माघ शुक्ल चतुदर्शी को 1073 ई. में नागवंशीय जाट कुल हुआ था।
- तेजाजी की माता का नाम राजकुंवरी व पिता का नाम ताहड़जी था।
- तेजाजी का जन्म ‘धौल्या’ गोत्र मे हुआ था जोकि जाटों का गोत्र है इसलिये जाट इनको अपना कुलदेवता मानते हैं।
- इनका विवाह पनेर /पनेहर गाँव (अजमेर जिले मे) रामचन्द्र जाट की पुत्री पेमल के साथ हुआ था।
- इनके मुख्य थान सुरसरा, अजमेर, सैंदरिया व भाँवता(अजमेर) में है।
तेजाजी की घोडी का नाम लीलण (सिणगारी) था। |
तेजाजी पशु मेला
- तेजाजी की याद में तेजा दशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) के अवसर पर पंचमी से पूर्णिमा तक परबतसर (नागौर) में विशाल पशु-मेला लगता है।
- तेजाजी की प्रतिमा को महाराजा अभयसिंह के समय मारवाड़ के हाकिम द्वारा सुरसुरा (अजमेर) से परबतसर (नागौर) लाया गया था तभी से तेजाजी का मेला परबतसर नागौर में भाद्रप शुक्ल दशमी को लगता है।
- अजमेर जिले के हर गाँव में तेजाजी का थान बना हुआ है। गाँव का चबूतरा ‘ तेजाजी का थान ‘ कहलाता है ।
- तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहा जाता है ।
- पुरानी मान्यता के अनुसार भोपे में तेजाजी की आत्मा आ जाती हैं और वह जहर चूसकर सर्प दंश से पीडित व्यक्ति को ठीक कर देता है, इसलिए भोपे को तेजाजी का घोड़ला भी कहा जाता है ।
तेजाजी की वीरता गाथा
- राजस्थान लोकगीतों के अनुसार एक बार जब तेजाजी अपनी पत्नी पेमल को लेने अपने ससुराल पनेर गए, उसी दिन मेर लोग लाछा गुजरी (पेमल की सहेली) की गायें चुरा कर ले गये। लाछा गूजरी की प्रार्थना पर वे गायों को मुक्त कराने जा ही रहे थे की रास्ते में इन्हें सुरसुरा नामक स्थान पर इन्हें एक सर्प मिला। तेजाजी ने सर्प को डसने से रोकते हुए वचन दिया कि वे गायों को मुक्त कराने के बाद स्वयं यहाँ आयेंगे।
- भीषण संघर्ष के बाद उन्होंने गायें मुक्त कराने में सफलता प्राप्त की। परन्तु अत्यधिक घायल होने पर भी वे अपने वचन के अनुसार वापस सर्प के पास आये। पूरे शरीर पर घाव होने के कारण इन्होंने सर्प के डसने के लिए जिह्वा आगे कर दी।
- सर्प-दंश के कारण सुरसुरा (किशनगढ़) में भाद्रपद शुक्ल दशमी को इनकी मृत्यु हो गई। इनकी पत्नी पेमल भी इनके साथ सती हो गई। तेजाजी के इस शौर्यपूर्ण कृत्य, वचन पालन और गौरक्षा ने उन्हें देवत्व प्रदान किया।
तेजाजी के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- वीर तेजाजी को ‘ काला और बाला ‘ का देवता / साँपों का देवता / धोलियावीर / गायों का मुक्तिदाता तथा कृषि कार्यों का उपकारक देवता कहा जाता है
- तेजाजी को तलवार धारी अश्वारोही योद्धा के रूप में चित्रित किया जाता है,
- तेजाजी अजमेर जिले के सर्वप्रमुख इष्ट देवता है तो उनकी कर्मस्थली दुगारी गांव (बूंदी) है ।
- इनकी जीह्वा को सर्प द्वारा डसते हुए प्रदर्शित किया जाता है।
- तेजाजी को लेकर रचे गये लोक साहित्य को तेजा टेर/तेजा गीत‘ कहा जाता है।
- तेजाजी पर पांच रूपये की डाक-टिकट जारी की गई।
- तेजाजी के कार्यों से प्रभावित होकर रामराज नाहटा ने एक राजस्थानी फिल्म ‘वीर तेजाजी’ बनाई थी।
- तेजाजी को भाद्रपद शुक्ल दशमी को कच्चे दुध का भोग लगाया जाता है इस दिन लोग विलोबणा नहीं बिलौते हैं और न ही दूध में जावण लगाया जाता है।
तेजाजी के सम्बन्ध में अन्य कुछ तथ्य
जन्म | माघ शुक्ला चतुदर्शी को 1073 ई. |
जन्म स्थान | खड़नाल ग्राम (नागौर) |
पिता | ताहड़जी |
माता | रामकुंवरी |
पत्नी | पैमल-दे (पनेर के रामचंद्र जी झांझर की पुत्री) |
अन्य नाम | काला-बाला का देवता, साँपों का देवता, गायों का मुक्तिदाता |
घोड़ी | लीलण (सिंणगारी) |
पूजा स्थल(थान) | तेजाजी के चबूतरे को थान व पुजारी को घोड़ला कहा जाता है। |
पूजा प्रतीक | तलवारधारी, अश्वरोही योद्धा के रूप में, जिनकी जिह्वा को सर्प डस रहा है |
तेजाजी की तांत (डोरी) | मान्यता है कि यदि सर्प-दंशित व्यक्ति के दायें पैर में तेजाजी की तांत (डोरी) बांध दी जाये तो उसे विष नहीं चढ़ता। |
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