राजस्थान की जनजातियां (Tribes of Rajasthan): आज के आर्टिकल में हम राजस्थान की जनजातियों से सम्बन्धी अत्यंत महत्त्वपूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे। आज का हमारा यह आर्टिकल RPSC, RSMSSB, SI, Rajasthan Police, एवं अन्य परीक्षाओं की दृष्टि से अतिमहत्वपुर्ण है।
राजस्थान की प्रमुख आदिवासी जनजातियां
आदिवासी शब्द दो शब्दों ‘आदि’ और ‘वासी’ से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। राजस्थान की अधिकांश आदिवासी जनजातियां अरावली के दक्षिणी भाग में घने जंगलो अथवा ऊँची पर्वतश्रृंखलाओं पर निवास करती है। 2001 की जनगणना के अनुसार राजस्थान की कुल जनसँख्या का 12.60 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है। तथा भारत के कुल आदिवासी का 7.87 प्रतिशत राजस्थान में निवास करती है। समय-समय पर अनुसूचित जनजातियों को विभिन्न विद्वान् विभिन्न नामों से सम्बोधित करते रहे हैं।
- क्रोबर – आदिम जाती
- ए. बेन्स – पर्वतीय कबीला
- जे. एच. हटन – पिछड़े कबीले
- एच. एच. रिस्ले, एन. जी. लेसी, वारियर एलविन तथा ठक्कर बापा – आदिवासी
विश्व आदिवासी दिवस : 9 अगस्त
1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने आदिवासियों की भलाई के लिए एक कार्यदल गठित किया था, जिसकी बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी। उसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा अपने सदस्य देशों में प्रतिवर्ष 9 अगस्त को ‘विश्व आदिवासी दिवस’ मनाने की घोषणा की गई।
इन समुदायों की मुख्य विशेषताएं :
- आदिम लक्षण
- भौगोलिक अलगाव
- विशिष्ट संस्कृति
- आर्थिक रूप से पिछडापन
- बाहरी समुदाय के साथ संपर्क करने में संकोच
राजस्थान की अनुसूचित जनजातियां
- “अनुसूचित जनजातियाँ’ शब्द की परिभाषा संविधान के अनुच्छेद 366 (25) में इस प्रकार की गई है, “ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के अंतर्गत भागों या समूहों, जिन्हे संविधान के प्रयोजन के लिये अनुच्छेद 342 के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियाँ होना समझा जाता है।”
- राजस्थान अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (संशोधन) अधिनियम 1976 के अनुसार राजस्थान में अनुसूचित जनजातियों की सूची इस प्रकार है :-
प्रमुख आदिवासी जनजातियां :
जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग
स्थापना: भारतीय संविधान की अनुसूची 5 में अनुसूचित जनजातियों एवं अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण हेतु राज्य की कार्यपालिका की शक्तियों का विस्तार किया गया है, इन्ही शक्तियों के आधार पर राजस्थान में जनजाति समुदाय के समग्र विकास हेतु राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1975 में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की स्थापना की गयी। जिससे एक समन्वित और सुनियोजित तरीके से अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिये कार्यक्रमों के विकास के लिये कार्यक्रमों की समग्र नीति, योजना और समन्वय किया जा सकें।
उद्देश्य: विभाग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों के समेकित सामाजिक आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना एवं अनुसूचित क्षेत्र का सर्वांगीण विकास हेतु विभिन्न योजनाओं का निर्माण, समन्वय, नियंत्रण एवं निर्देशन कर जनजातियों का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं बौद्धिक विकास करना तथा जनजाति वर्ग के जीवन स्तर का उन्नयन करना है।
- माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान – जनजाति विकास के लिए सन् 1964 में स्थापित इस संस्थान का उद्देश्य जनजातियों के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं जीवन स्तर में सुधार करना हैं।
- वनवासी कल्याण परिषद् – उदयपुर में स्थित इस संस्थान द्वारा संचालित ‘वनवासी को गले लगाओ’ अभियान प्रारम्भ किया गया हैं।
अनुसूचित क्षेत्र: संविधान की पांचवी अनुसूची के भाग-ग के अनुसार ‘‘अनुसूचित क्षेत्र’’ पद से ऐसे क्षेत्र अभिप्रेत है, जिन्हें राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित करें। भारत सरकार की अधिसूचना दिनांक 12.02.1981 से विनिर्दिष्ट क्षेत्रों को राजस्थान राज्य के भीतर अनुसूचित क्षेत्र के रूप में घोषित किया है।
स्वच्छ परियोजना
- UNICEF के सहयोग से वर्ष 1985 में आदिवासी क्षेत्रों में शुरू की गई नारू उन्मुलन परियोजना हैं।
- इस योजना में स्वच्छता एवं पेयजल संसाधनों में वृद्धि के प्रयास किए गए हैं।
- इस योजना का लक्ष्य 1992 में पूर्ण हो गया हैं।
बिखरी जनजाति विकास कार्यक्रम
- बांसवाड़ा व डूंगरपुर के अलावा राज्य के सम्पूर्ण भू-भाग पर आदिवासियों की बिखरी हुई संख्या निवास करती हैं।
- इस योजना का लक्ष्य बिखरी हुई आदिवासी जनजातियों को एकजुट करना हैं।
एकलव्य योजना
- इस योजना का लक्ष्य आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा से वंचित बालकों के विकास हेतु छात्रावास एवं स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना करना हैं।
- रोजगार कार्यक्रम – इस योजना का लक्ष्य आदिवासियो को रोजगार के अतिरिक्त अवसर प्रदान करना हैं।
- रूख भायला कार्यक्रम – इस योजना का उद्देश्य आदिवासी क्षेत्र में सामाजिक वानिकी को बढ़ावा देना तथा पेड़ों की अवैध कटाई को रोकना हैं।
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