राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं एवं पुरातात्विक स्थल

रेड – टोंक

रैढ़ टोंक जिले की निवाई तहसील में ढील नदी के किनारे स्थित पुरातात्विक स्थल है।

उत्खनन कार्य 1938-40 में डॉ. केदारनाथ पूरी के द्वारा करवाया गया।

यह एक लौह युगीन सभ्यता है। लौहे के भण्डार प्राप्त हुए हैं। उत्खनन से बड़ी मात्रा में मिलने वाले लौह उपकरणों तथा मुद्राओं के कारण इसे ‘प्राचीन भारत का टाटानगर’ कहा जाता है।

  • अब तक एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है। रैढ़ में उत्खनन से 3075 आहत मुद्राएं तथा 300 मालव जनपद के सिक्के प्राप्त हुए है। यहाँ से यूनानी शासक अपोलोडोट्स का एक खण्डित सिक्का भी प्राप्त हुआ है।
  • रैढ़ में उत्खनन से हल्के गुलाबी रंग से मिट्‌टी का बना एक संकीर्ण गर्दन वाला फूलदान प्राप्त हुआ है।
  • रैढ़ से मृतिका से बनी यक्षिणी की प्रतिमा प्राप्त हुई है जो संभवत: शुंग काल की मानी जाती है। यहाँ से मालव जनपद के 14 सिक्के, 6 सेनापति सिक्के एवं 7 वपू के सिक्के प्राप्त हुए हैं। रैढ़ से जस्ते को साफ करने के प्रमाण मिले है।

रंगमहल सभ्यता

रंगमहल हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के पास स्थित है। यह एक ताम्रयुगीन सभ्यता है।

इस सभ्यता का उत्खनन डॉ. हन्नारिड के नेतृत्व में 1952 से 1954 में एक स्वीडिश दल के द्वारा किया गया। यहां पर गुरु-शिष्य की मूर्ति मिली है। यहां से कुषाणकालीन एवं पूर्वगुप्तकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए है।

  • यहाँ से कुषाणकालीन तथा उससे पहले की 105 तांबे की मुद्राएँ प्राप्त हुई है  जिनमें कुछ पंचमार्क मुद्राएं भी है।
  • रंगमहल में बसने वाली बस्तियों के तीन बार बसने एवं उजड़ने के प्रमाण मिले हैं।
  • यहाँ से गांधार शैली की मृणमूर्तियाँ, टोटीदार घड़े, घण्टाकार मृद्पात्र एवं कनिष्क कालीन मुद्राएं प्राप्त हुई हैं।
  • यहाँ से कनिष्क प्रथम व कनिष्क III के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इसे कुषाणकालीन सभ्यता के समान माना जाता है। यहाँ के निवासी मुख्य रूप से चावल की खेती करते थे।

सोंथी सभ्यता

  • यह सभ्यता बीकानेर में स्थित है।
  • खोज : अमलानंद घोष द्वारा (1953 में) की गई।
  • इसे कालीबंगा प्रथम के नाम से भी जाना जाता है।यहाँ पर हड़प्पाकालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं।

पीलीबंगा सभ्यता

हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के पास स्थित है। पीलीबंगा सभ्यता (हनुमानगढ़) से ईंटों का कुआं मिला है।

  • पीपल वृक्ष के प्रमाण मिले हैं। बाबा रामदेवजी का मंदिर मिला है।

ओझियाना (भीलवाड़ा)

  • यह सभ्यता भीलवाड़ा जिले में बदनोर के पास कोठरी नदी के तट पर स्थित है। यह स्थल ताम्रयुगीन आहड़ संस्कृति से संबंधित है।
  • इस स्थल का उत्खनन वर्ष 2000 में बी. आर. मीणा तथा आलोक त्रिपाणी द्वारा किया गया।
  • यहाँ से वृषभ तथा गाय की मृण्यमय मूतियां प्राप्त हुई है जिन पर सफेद रंग से चित्रण किया हुआ है।
  • खुदाई में बड़ी मात्रा में कई आकार-प्रकार के मिट्टी के बैलों की आकृतियाँ मिली हैं जिन पर सफेद रंग से चित्रण किया हुआ है। ये सफेद चित्रित बैल ओझियाना बुल’ नाम से प्रसिद्ध हैं। इस स्थल पर प्राप्त पुरावशेषों के आधार पर अनुमान है कि इस सभ्यता का काल 2500 ई. पूर्व से 1500 ई. पूर्व का रहा होगा।
  • यहाँ से प्राप्त अवशेषों के आधार पर इस संस्कृति का विकास तीन चरणों में हुआ माना जाता है। यहाँ से कार्नेलियन फियान्स तथा पत्थर के मनके, शंख एवं ताम्र की चूड़ियाँ तथा अन्य आभूषण भी मिले हैं।

नगरी (चित्तौड़गढ)
  • यह पुरातात्विक स्थल चितौड़गढ़ जिले में बेड़च नदी के तट पर स्थित है
  • नगरी का प्राचीन नाम – मध्यमिका (प्राचीन नाम ‘माध्यमिका’ पतंजलि के महाभाष्य में मिलता है।) नगरी शिवि जनपद की राजधानी भी रही है।
  • जिसका सर्वप्रथम उत्खनन कार्य वर्ष 1904 में डॉ. डी. आर. भण्डारकर द्वारा तथा दुबारा 1962-63 में केन्द्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा करवाया गया।
  • यहाँ से शिवि जनपद के सिक्के तथा गुप्तकालीन कला के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहाँ कुषाण कालीन स्तरों में नगर की सुरक्षा के निमित्त एक मजबूत दीवार भी बनाई जाने के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से घोसूण्डी अभिलेख (द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व) भी प्राप्त हुआ है। यहाँ से चार चक्राकार कुएँ भी प्राप्त हुए हैं।
  • नगरी की खोज 1872 ई. में कालाईल द्वारा की गई।

सुनारी (झुंझुनूं)

  • सुनारी झुंझुनूं की खेतड़ी तहसील में कांतली नदी के किनारे स्थित है।
  • जिसका उत्खनन कार्य 1980-81 में राजस्थान राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा करवाया गया।
  • यहाँ खुदाई में लोहे के अयस्क से लोहा बनाने (लौहा गलाने) की प्राचीनतम भट्टियाँ मिली हैं । लोहे के शस्त्र एवं बर्तन भी यहाँ प्राप्त हुए हैं। ये लोग चावल का प्रयोग करते थे तथा आखेट एवं कृषि पर निर्भर थे। तथा घोड़ों से रथ खींचते थे।
  • सुनारी में भी जोधपुरा, नोह एवं विराटनगर की तरह सलेटी रंग के चित्रित मृद्भाण्ड की संस्कृति (लौह युगीन संस्कृति) के पुरावशेष बड़ी मात्रा में प्राप्त हुए हैं। सुनारी में लौह अयस्क से लौह धातु प्राप्त करने की खुली धमन भट्टी एवं लौह धातु से लौह उपकरण बनाने की धौंकनी वाली भट्टी अलग-अलग प्राप्त हुई हैं।
  • सुनारी से लौहे के तीर, भाले के अग्रभाग, लौहे का कटोरा तथा कृष्ण परिमार्जित मृद‌्पात्र भी मिले हैं।

जोधपुरा (जयपुर):

  • यह स्थल जयपुर जिले की कोटपुतली तहसील में साबी नदी के किनारे स्थित है।
  • जोधपुरा एक लौहयुगीन प्राचीन सभ्यता स्थल है।
  • जिसका उत्खनन कार्य 1972-73 में आर.सी. अग्रवाल तथा विजय कुमार के निर्देशन में
  • सम्पन्न हुआ।
  • जोधपुरा से लौह अयस्क से लौह धातु का निष्कर्षण करने वाली भटि्टयाँ भी प्राप्त हुई है। यह सलेटी रंग की चित्रित मृदभांड संस्कृति का महत्त्वपूर्ण स्थल था। जोधपुरा में अन्य मृद्पात्रों के अलावा ‘डिश ऑन स्टेण्ड’ भी प्राप्त हुआ है।
  • जोधपुरा में मकान की छतों पर टाईल्स का प्रयोग एवं छप्पर छाने का रिवाज था।  यह शुंग एवं कुषाणकालीन सभ्यता स्थल है। जोधपुरा एवं सुनारी (झुंझुनूं) से मौयकालीन सभ्यता के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।

नगर (टोंक)

  • इस सभ्यता को ‘खेड़ा सभ्यता’ के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थल टोंक जिले में उणियारा कस्बे के पास स्थित है। इसे कर्कोट नगर भी कहा जाता है। इसका प्राचीन नाम ‘मालव नगर’ था। यह स्थान मालव गणराज्य की राजधानी था।
  • जिसका उत्खनन कार्य 1942-43 में श्रीकृष्ण देव द्वारा किया गया।
  • यहाँ से बड़ी संख्या में मालव सिक्के तथा आहत मुद्राएं प्राप्त हुई है। जो ईसा पूर्व की द्वितीय शताब्दी से लेकर ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी तक की सभ्यता के प्रमाण हैं।
  • यहाँ खुदाई में गुप्तोत्तर काल की स्लेटी पत्थर से निर्मित महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त यहाँ से मोदक रूप में गणेश का अंकन, फणधारी नाग का अंकन, कमल धारण किए लक्ष्मी की खड़ी प्रतिमा प्राप्त हुई है।
  • यहाँ से उत्खनन में 6000 मालव सिक्के मिले हैं। नगर से लाल रंग के मृद‌्भांड एवं अनाज भरने के कलात्मक मटकों के अवशेष प्राप्त हुए है।

तिलवाड़ा (बाड़मेर)

  • यह स्थल बाड़मेर जिले में लूणी नदी के किनारे स्थित है।
  • जिसका उत्खनन का कार्य डॉ. वी. एन. मिश्र के नेतृत्व में किया गया।
  • यहाँ से 500 ई. पू. से 200 ई. तक विकसित सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं। यहाँ से उत्तर पाषाण युग के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से उत्खनन में पाँच आवास स्थलों के अवशेष मिले हैं। यहाँ से एक अग्निकुण्ड मिला है जिसमें मानव अस्थि भस्म तथा मृत पशुओं के अवशेष मिले हैं।

नोह (भरतपुर)

  यह स्थल भरतपुर जिले में रूपारेल नदी के तट पर स्थित है।

  • जिसका उत्खनन 1963-67 में राजस्थान सरकार के पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा श्री रतनचन्द्र अग्रवाल एवं कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के डॉ. डेविडसन के संयुक्त निर्देशन में करवाया गया था।
  • यहाँ से 5 सांस्कृतिक युगों के अवशेष मिले हैं। यहाँ से लौहे के कृषि संबंधी उपकरण एवं चक्रकूपों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से उत्खनन में विशालकाय यक्ष प्रतिमा तथा मौर्यकालीन पॉलिश युक्त चुनार के चिकने पत्थर से टुकड़े प्राप्त हुए हैं। यहाँ से प्राप्त एक पात्र पर ब्राह्मी लिपि में लेख अंकित है।
  • यह एक लौहयुगीन सभ्यता है तथा यहाँ से प्राप्त भांड काले तथा लाल वेयर युक्त है।
  • यहाँ से कुषाण नरेश हुविस्क एवं वासुदेव के सिक्के प्राप्त हुए है। यहाँ पर एक ही स्थान से 16 रिंगवेल प्राप्त हुए हैं। नोह से ताम्र युगीन, आर्य युगीन एवं महाभारत कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए  हैं।

ईसवाल (उदयपुर)

  ईसवाल राजस्थान के दक्षिण में स्थित उदयपुर ज़िले की प्राचीन औद्योगिक बस्ती है।

  • जिसका उत्खनन कार्य राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के पुरातत्व विभाग के निर्देशन में किया गया।
  • यह एक लौहयुगीन सभ्यता है।
  • यहाँ पर प्रारम्भिक उत्खनन से पाँच प्रस्तरों में बस्तियों के प्रमाण मिले है, जो प्राक् ऐतिहासिक काल से मध्यकाल तक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • यहाँ पर 5वीं शताब्दी ई.पू. में लोहा गलाने का उद्योग विकसित होने के प्रमाण है। यहाँ से प्राप्त सिक्कों को प्रांरभिक कुषाणकालीन माना जाता है। यहाँ से निरन्तर लौहा गलाने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। मौर्य, शुंग, कुषाणकाल में यहाँ लौहा गलाने का कार्य होता था।
  • यहाँ उत्खनन में ऊँट का दाँत एवं हडि्डयाँ मिली हैं।

लाछूरा (भीलवाड़ा):

  • यह पुरातात्विक स्थल भीलवाड़ा जिले की आसींद तहसील में स्थित है।
  • जिसका उत्खनन कार्य वर्ष 1998-1999 में बी. आर. मीना के निर्देशन में किया गया।
  • प्रथम स्तर में 700 BC से 500 BC तक के काल की सामग्री प्राप्त हुई है, जिनमें मानव तथा पशुओं की मृण्यमूर्तियां, तांबे की चूड़ियां, मिट्‌टी की मुहरें जिस पर ब्राह्मी लिपि में 4 अक्षर अंकित है, ललितासन में नारी की मृण्यमूर्ति आदि प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से शुंगकालीन तीखे किनारे वाले प्याले प्राप्त हुए हैं।

नलियासर (जयपुर):

  • नलियासर एक ऐतिहासिक स्थान है जो जयपुर से 83 किमी. पश्चिम में सांभर झील से लगभग 3 मील पर स्थित है। नलियासर के एक टीले पर की गई खुदाई में ईसा पूर्व की तीसरी शताब्दी से लेकर 10वीं शताब्दी ई. के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • इस स्थल से चौहान वंश से पूर्व की सभ्यता के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ खुदाई से प्राप्त सामग्री में आहत मुद्राएँ, उत्तर इंडोसासेनियन सिक्के, हुविष्क के सिक्के, इंडोग्रीक सिक्के, यौधेयों के सिक्के प्रमुख है| यहाँ से ब्राह्मी लिपि में लिखित कुछ मुहरें प्राप्त हुई है।
  • यहाँ से 105 कुषाणकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं।

भीनमाल (जालौर):

  • इस पुरातात्विक स्थल का उत्खनन कार्य 1953-54 में रतनचंद्र अग्रवाल के निर्देशन में किया गया।
  • यहाँ की खुदाई से मृद‌्भांड तथा शक क्षत्रपों के सिक्के प्राप्त हुए है।
  • भीनमाल से यूनानी दुहत्थी सुराही भी प्राप्त हुई है। यहाँ से रोमन ऐम्फोरा (सुरापात्र) भी मिला है। यहाँ से ईसा की प्रथम शताब्दी एवं गुप्तकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • संस्कृत विद्वान महाकवि माघ एवं गुप्तकालीन विद्वान ब्रह्मगुप्त का जन्म स्थान
  • भीनमाल ही माना जाता है। चीनी यात्री हेनसांग ने भी भीनमाल की यात्रा की।

गरड़दा (बूँदी):

  •  यह स्थल छाजा नदी के किनारे स्थित है। इस स्थान से पहली बर्ड राइडर रॉक पेंटिंग प्राप्त हुई है। यह देश में प्रथम पुरातत्व महत्त्व की पेंटिंग है।

किराडोत (जयपुर):

  • इस सभ्यता स्थल से ताम्रयुगीन 56 चूड़ियाँ प्राप्त हुई है। इसमें अलग-अलग आकार की 28 चूड़ियों की 2 सेट प्राप्त हुए हैं।

 कोटड़ा (झालावाड़) :-

  • इस स्थल का उत्खनन वर्ष 2003 में दीपक शोध संस्थान द्वारा किया गया। यहाँ से 7वीं से 12वीं शताब्दी मध्य के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

मलाह (भरतपुर) :-

  • यह स्थल भरतपुर जिले के घना पक्षी अभयारण्य में स्थित है। इस स्थल से अधिक संख्या में तांबे की तलवारें एवं हार्पून प्राप्त हुए हैं।

   जूनाखेड़ा (पाली) :-

  • इस पुरातात्विक स्थल की खोज गैरिक ने की थी।
  • यहाँ से उत्खनन में मिट्‌टी के बर्तन पर ‘शालभंजिका’ का अंकन मिला है। इसके अतिरिक्त यहाँ से काले ओपदार कटोरे तथा छोटे आकार के दीपक प्राप्त हुए हैं।

बरोर (गंगानगर):

  • गंगानगर में सरस्वती नदी के तट पर इस सभ्यता के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
  • वर्ष 2003 में यहाँ उत्खनन कार्य शुरू किया गया। यहाँ से प्राप्त अवशेषों के आधार पर इस सभ्यता को प्राक् प्रारंभिक तथा विकसित  हड़प्पा काल में बांटा गया है।
  • यहाँ के मृद‌्भांडो में काली मिट्‌टी के प्रयोग के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
  • वर्ष 2006 में यहाँ मिट्‌टी के पात्र में सेलखड़ी के 8000 मनके प्राप्त हुए हैं।
  • यह स्थल हड़प्पाकालीन विशेषताओं के समान जैसे सुनियोजित नगर व्यवस्था, मकान
  • निर्माण में कच्ची इटों का प्रयोग तथा विशिष्ट मृद‌्भांड परम्परा आदि से युक्त है। यहाँ से बटन के आकार की मुहरें प्राप्त हुई हैं।

कुराड़ा (नागौर):

  • यह ताम्रयुगीन सभ्यता स्थल है।
  • यहाँ से ताम्र उपकरणों के अतिरिक्त प्रणालीयुक्त अर्घ्यपात्र प्राप्त हुआ है।

कणसव (कोटा) :- इस स्थल से मोर्य शासक धवल का 738 ई. से संबंधित लेख मिला है।

नैनवा (बूंदी) :- यहाँ पर उत्खनन कार्य श्रीकृष्ण देव के निर्देशन में सम्पन्न हुआ। इस स्थल से 2000 वर्ष पुरानी महिषासुरमर्दिनी की मृण मूर्ति प्राप्त हुई है।

डडीकर (अलवर):- इस स्थल से पाँच से सात हजार वर्ष पुराने शैलचित्र प्राप्त हुए हैं।

बांका :- यह स्थल भीलवाड़ा जिले में स्थित है।यहाँ से राजस्थान की प्रथम अलंकृत गुफा मिली है।

गुरारा :- यह स्थल सीकर जिले में स्थित है। यहाँ से हमें चाँदी के 2744 पंचमार्क सिक्के मिले हैं।

बयाना :- यह स्थल भरतपुर में स्थित है। इसका प्राचीन नाम श्रीपंथ है। यहाँ से गुप्तकालीन सिक्के एवं नील की खेती के साक्ष्य मिले हैं।

पुरातात्वविद ओमप्रकाश कुक्की ने बूंदी से भीलवाड़ा तक 35 किमी. लंबी विश्व की सबसे लंबी शैलचित्र श्रृंखला खोजी है। भीलवाड़ा के गैंदी का छज्जा स्थान की गुफाओं में ये शैल चित्र मिले हैं।  

NOTE: चौहान युग से पूर्व की सभ्यता का ज्ञान किस पुरातात्विक स्थल से प्राप्त हुआ है? –  नलियासर

राजस्थान के अन्य पुरातात्विक स्थल
क्र. सं.      पुरातात्विक स्थल      जिला
1.साबणियाबीकानेर
2.चीथवाड़ीजयपुर
3.एलानाजालौर
4.झाडोलउदयपुर
5.नन्दलालपुराजयपुर
6.कोल माहोलीसवाईमाधोपुर
7. बूढ़ा पुष्कर अजमेर
8.पिण्ड-पांडलिया  चित्तौड़
9.चक-84  श्रीगंगानगर
10.तरखानवालाश्रीगंगानगर
11.नैनवाबूँदी
12.धौली मगरा   उदयपुर
13.पुंगलबीकानेर
14.बासमबसईअलवर
15.रेलावनबारां
16.सुखपुराटोंक
17.अहेड़ाअजमेर
18.मरमी गाँव   चित्तौड़गढ़
19.भरनीटोंक
20.खानपुराझालावाड़
21.चन्द्रावतीझालावाड़
22.खुरड़ीपरबतसरनागौर
23.थेहड़हनुमानगढ़
24.जायलनागौर (पुरा पाषाणकालीन)
25.दरभरतपुर (पाषाणकालीन)
26.कोटड़ाझालावाड़
27.डाडाथोराबीकानेर (लघु पाषाणकालीन)
28.तिपटियाँकोटा
29. कुण्डा व ओला  जैसलमेर  (मध्य पाषाणकालीन)
30.वरमाणसिरोही
31.बड़ोपलहनुमानगढ़
32.सीसोलबूँदी
33.कोकानीकोटा
32.बल्लू खेड़ा    चित्तौड़

संस्कृति काल         स्थल  
ताम्रयुगीनबेणेश्वर (डूँगरपुर), नन्दलालपुरा, किराड़ोत, चीथबाड़ी (जयपुर), कुराड़ा (परबतसर), पलाना (जालौर), मलाह (भरतपुर), कोल माहौली (सवाईमाधोपुर) गणेश्वर (सीकर), साबणियां, पूंगल (बीकानेर), बूढ़ा पुष्कर (अजमेर)  
पुरापाषाणकाल  भानगढ़ (अलवर), विराटनगर (जयपुर), दर (भरतपुर), इन्द्रगढ़ (कोटा), डीड़वाना एवं जायल (नागौर)  
मध्यपाषाण काल   तिलवाड़ा (बाड़मेर), बागौर (भीलवाड़ा), विराटनगर (जयपुर)
नवपाषाण काल   कालीबंगा (हनुमानगढ़), आहड़ (उदयपुर),  गिलूंड (राजसमंद), झर (जयपुर)  
ताम्रपाषाण काल   तिलवाड़ा (बाड़मेर), बालाथल (उदयपुर), बागौर (भीलवाड़ा)  
लौहयुगीनसुनारी (झुंझुनूं), विराटनगर, जोधपुरा, सांभर (जयपुर), रैढ़, नगर, नैणवा (टाेंक), भीनमाल (जालौर), नगरी (चित्तौड़गढ़), चक-84, तरखानवाला (गंगानगर), ईसवाल (उदयपुर), नोह (भरतपुर),  

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