प्रोजेक्ट बोल्ड (Project BOLD): खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने राजस्थान के उदयपुर में निचला मांडवा (Nichla Mandwa) गाँव से “सूखे भू-क्षेत्र पर बाँस मरु-उद्यान” (BOLD) नामक एक परियोजना शुरू की गई है।
प्रमुख बिंदु
- इस परियोजना के अंतर्गत विशेष रूप से असम से लाए गए बाँस की विशेष प्रजातियों- बंबुसा टुल्डा (Bambusa Tulda) और बंबुसा पॉलीमोर्फा (Bambusa Polymorpha) के 5,000 पौधों को निचला मांडवा ग्राम पंचायत की 25 बीघा (लगभग 16 एकड़) खाली शुष्क भूमि पर लगाया गया है।
- इस तरह KVIC ने एक ही स्थान पर एक ही दिन में सर्वाधिक संख्या में बाँस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है।
- यह भारत में इस तरह का पहला अभ्यास है। यह परियोजना शुष्क व अर्द्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों में बाँस आधारित हरित पट्टी बनाने का प्रयास करती है।
- इसे 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर “आज़ादी का अमृत महोत्सव” मनाने के लिये KVIC के “खादी बाँस महोत्सव” के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया है।
बाँस को चुनने का कारण:
यह बहुत तेज़ी से बढ़ता है और लगभग तीन वर्ष के समय में इसकी कटाई की जा सकती है।
बाँस को पानी के संरक्षण और भूमि की सतह से पानी के वाष्पीकरण को कम करने के लिये भी जाना जाता है, जो शुष्क और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
बाँस क्या है
- बाँस, ग्रामिनीई (Gramineae) कुल की एक अत्यंत उपयोगी घास है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती है। बाँस एक सामूहिक शब्द है, जिसमें अनेक जातियाँ सम्मिलित हैं। मुख्य जातियाँ, बैंब्यूसा (Bambusa), डेंड्रोकेलैमस (नर बाँस) (Dendrocalamus) आदि हैं।
- बाँस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है।
- यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है।
- ये काष्ठीय बारहमासी सदाहरित पौधों का एक समूह हैं। यद्यपि यह एक वृक्ष की भांति प्रतीत होता है, वर्गिकी रूप से, यह घास है। भारत में, उत्तर-पूर्वी राज्य देश के कुल बांस उत्पादन का लगभग 70% हिस्सा उत्पादित करते हैं।
राष्ट्रीय बांस मिशन 2007 में प्रारंभ किया गया था। इसमें मुख्य रूप से बांस के प्रवर्धन और कृषि पर बल दिया गया था। यद्यपि, इस परियोजना को सीमित सफलता प्राप्त हुई क्योंकि इसने बांस के प्रसंस्करण, उत्पाद विकास और मूल्यवर्धन पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं किया। इन सीमाओं को ध्यान में रखते हुए, 2018 में एक पुनर्गठित राष्ट्रीय बांस मिशन प्रारंभ किया गया था।
सामाजिक लाभ
- यह ग्रामीण व्यक्तियों के मध्य समानता सुनिश्चित करता है क्योंकि इससे महिलाओं और बेरोजगार व्यक्तियों के एक बड़े वर्ग को लाभ प्राप्त होता है।
- बांस, ऐतिहासिक रूप से, अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में उत्पादित किया जाता है। बांस के उपयोग से आदिवासियों को मुख्यधारा की आबादी से जुड़ने में सहायता मिल सकती है और इसलिए वे समावेशी विकास का हिस्सा बन सकते हैं।
महत्त्व:
यह मरुस्थलीकरण को कम करेगा और आजीविका तथा बहु-विषयक ग्रामीण उद्योग में सहायता प्रदान करेगा।
यह सतत् विकास और खाद्य सुरक्षा के रूप में भी कार्य करेगा।
विस्तार:
- KVIC इस साल अगस्त तक गुजरात के अहमदाबाद ज़िले के धोलेरा गाँव और लेह-लद्दाख में भी इसी तरह की परियोजना शुरू करने वाला है।
- अगस्त 2021 से पहले कुल 15,000 बाँस के पौधे लगाए जाएंगे।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) खादी और ग्रामोद्योग आयोग ‘खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम-1956’ के तहत एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ भी आवश्यक हो अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना तथा विकास के लिये योजनाएँ बनाना, उनका प्रचार-प्रसार करना तथा सुविधाएँ एवं सहायता प्रदान करना है। यह भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of MSME) के अंतर्गत कार्य करता है। |