राजस्थान में लोकायुक्त: भारत में लोकपाल या लोकायुक्त नाम 1963 में मशहूर कानूनविद डॉ. एल. एम. सिंघवी ने दिया था। लोकपाल शब्द संस्कृत भाषा के शब्द लोक (लोगों) और पाला (संरक्षक) से बना है।
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (वर्ष1966-70) ने दो प्राधिकारियों लोकपाल और लोकायुक्त की सिफारिश की थी।
‘लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013’ ने संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की।
- लोकपाल तथा लोकायुक्त विधेयक, 2013 के संसद से पारित होने के बाद 1 जनवरी, 2014 को भारत के राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किये और इसे अधिनियम के रूप में 16 जनवरी, 2014 को लागू कर दिया गया।
- भारत में लोकपाल और लोकायुक्त का पद स्कैंडनेवियन देशों के ‘ऑफिस ऑफ ओम्बुड्समैन’ (Office of Ombudsman) और न्यूज़ीलैंड के ‘पार्लियामेंट्री कमीशन ऑफ इन्वेस्टीगेशन’ (Parliamentary Commission of Investigation) पर आधारित है।
- ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले वैधानिक निकाय हैं।
Note: देश में लोकायुक्त का गठन सबसे पहले वर्ष 1971 में महाराष्ट्र में किया गया, गौरतलब है कि ओडिशा राज्य में वर्ष 1970 में ही लोकायुक्त की नियुक्ति से संबंधित एक विधेयक पारित किया गया था परंतु इसे वर्ष 1983 में पूर्णरूप से लागू किया गया। |
राजस्थान में लोकायुक्त
राजस्थान में सर्वप्रथम 1963 में हरिश्चंद्र माथुर की अध्यक्षता में गठित प्रशासनिक सुधार समिति ने लोकायुक्त जैसी संस्था की स्थापना की सिफारिश की थी जो कार्यपालिका के कार्यो पर नजर रखें तथा शिकायतों व भष्ट्राचार के मामलों की जांच कर सकें।
लोकायुक्त संस्था – एक परिचय लोकायुक्त संस्था का सृजन जन साधारण को स्वच्छ प्रशासन प्रदान करने के उद्देश्य से लोक सेवकों के विरूद्ध भ्रष्टाचार एवं पद के दुरूपयोग सम्बन्धी शिकायतों पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से जॉंच एवं अन्वेषण करने हेतु राजस्थान लोकायुक्त तथा उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1973 के अन्तर्गत हुआ। लोकायुक्त एक स्वतंत्र संस्थान है जिसका क्षेत्राधिकार सम्पूर्ण राजस्थान राज्य है। यह राज्य सरकार का कोई विभाग नहीं है और न ही इसके कार्य में सरकार का कोई हस्तक्षेप है। |
वर्ष 1973 में राजस्थान लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त अध्यादेश पारित हुआ, जो 3 फरवरी, 1973 से राजस्थान में प्रभावी हुआ। इसे 26 मार्च, 1973 को महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो गई और तब से यह अधिनियम के रूप में प्रदेश में प्रभावी है।
- केरल में लोकायुक्त को पब्लिक मैन कहा जाता है।
राजस्थान के पहले लोकायुक्त न्याय मूर्ति आई डी दुआ थे।
राजस्थान के लोकायुक्त एवं उनका कार्यकाल
क्रं. सं. | नाम | अवधि |
1 | न्यायमूर्ति श्री आई.डी. दुआ पूर्व न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय | 28-8-1973 – 27-08-1978 |
2 | न्यायमूर्ति श्री डी.पी. गुप्ता पूर्व मुख्य न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 28-8-1978 – 05-08-1979 |
3 | न्यायमूर्ति श्री एम.एल. जोशी पूर्व कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 06-08-1979 – 07-08-1982 |
4 | न्यायमूर्ति श्री के.एस. सिद्धू न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 04-04-1984 – 03-01-1985 |
5 | न्यायमूर्ति श्री एम.एल. श्रीमाल पूर्व मुख्य न्यायाधीश, सिक्किम उच्च न्यायालय | 04-01-1985 – 03-01-1990 |
6 | न्यायमूर्ति श्री पी.डी. कुदाल पूर्व न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 16-01-1990 – 06-03-1990 |
7 | न्यायमूर्ति श्री एम.बी. शर्मा न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 10-08-1990 – 30-09-1993 |
8 | न्यायमूर्ति श्री वी.एस. दवे न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 21-01-1994 – 16-02-1994 |
9 | न्यायमूर्ति श्री एम.बी. शर्मा | 06-07-1994 – 06-07-1999 |
10 | न्यायमूर्ति श्री मिलाप चन्द जैन पूर्व मुख्य न्यायाधीश, दिल्ली उच्च न्यायालय | 26-11-1999 – 26-11-2004 |
11 | न्यायमूर्ति श्री जी.एल. गुप्ता पूर्व न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 01-05-2007 – 30-04-2012 |
12 | न्यायमूर्ति श्री एस.एस. कोठारी पूर्व न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 25.3.2013 से 07-03-2019 |
13 | न्यायमूर्ति श्री प्रताप कृष्ण लोहरा पूर्व न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय | 09.3.2021 से निरन्तर |
Note
- राजस्थान के प्रथम तथा एकमात्र उप लोकायुक्त श्री के पी यू मेनन थे।
- वर्तमान में उप-लोकायुक्त के पद को समाप्त कर दिया गया है।
वर्तमान में राजस्थान का लोकायुक्त
- राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व जज प्रताप कृष्ण लोहरा को राजस्थान का नया (13वें) लोकायुक्त बनाया गया है।
- राज्यपाल कलराज मिश्र ने 27 फरवरी 2021 को को उनका नियुक्ति पत्र जारी किया
लोकायुक्त की नियुक्ति
- राजस्थान में लोकायुक्त की नियुक्ति मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष एवं हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सलाह के बाद राज्यपाल द्वारा की जाती है।
- हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को लोकायुक्त नियुक्त किया जा सकता है।
लोकायुक्त का कार्यकाल
- राजस्थान में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष का था ।
- जिसे मार्च 2018 में सरकार द्वारा राजस्थान लोकायुक्त तथा उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1973 की धारा 5 में संशोधन द्वारा लोकायुक्त की पदावधि पांच वर्ष से बढ़ाकर आठ वर्ष की गई थी ।
- जुलाई 2019 में लोकपाल एवं उप लोकायुक्त कानून में संशोधन किया गया और लोकायुक्त का कार्यकाल वापिस 8 वर्ष से 5 वर्ष कर दिया गया।
- वर्तमान में राजस्थान में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो।
- वह पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होता है।
हटाने की प्रक्रिया
- कदाचार या असमर्थता की स्थिति में लोकायुक्त को राज्यपाल द्वारा हटाया जा सकता है।
- लोकायुक्त का वेतन हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समान होता है।
लोकायुक्त की संरचना
लोकायुक्त
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उप लोकायुक्त
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सचिव
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उप सचिव
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सहायक सचिव
लोकायुक्त का प्रतिवेदन
लोकायुक्त अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है। जिस पर राज्यपाल विधानसभा में चर्चा करवाता है।
- लोकायुक्त का पद रिक्त होने पर उप लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त का पद रिक्त होने पर लोकायुक्त उसके कार्यों का निर्वहन करता है।
- दोनों का ही पद रिक्त होने पर राज्यपाल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से सलाह करके हाईकोर्ट के किसी भी न्यायाधीश को इनका कार्यभार सौंप सकता है।
लोकायुक्त निम्नलिखित के विरूद्ध शिकायत की जांच करने का अधिकार रखता है –
- राज्य के सभी मंत्री, राज्य का कोई भी लोक सेवक।
- जिला प्रमुख तथा उप जिला प्रमुख।
- पंचायत समितियों के प्रधान तथा उपप्रधान।
- नगर निगम के महापौर तथा उपमहापौर।
- स्थानीय प्राधिकरण नगर परिषद तथा नगर पालिका के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष।
- नगर विकास न्यास (यूआईटी) के अध्यक्ष।
लोकायुक्त निम्नलिखित के विरूद्ध शिकायत की जांच नहीं कर सकता है –
- राजस्थान के मुख्यमंत्री, महालेखाकार, विधायक
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीश।
- भारत के किसी भी न्यायालय के अधिकारी अथवा कर्मचारी।
- राजस्थान विधानसभा सचिवालय के कर्मचारी अधिकारी।
- सेवानिवृत्त लोक सेवक।
- राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्य। (RPSC)
- राज्य का निर्वाचन आयुक्त।
- सरपंचों, पंचों व विधायकों के विरूद्ध भी शिकायतें की जाती हैं किन्तु उनके विरूद्ध प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता है क्योंकि वे अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं,
NOTE:- 5 वर्ष से अधिक पुराने मामलों में शिकायत व जांच नहीं की जा सकती है।
लोकायुक्त के कार्य
सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचारए पदीय दुरूपयोग एवं अकर्मण्यता से सम्बन्धित परिवादों पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष अन्वेषणों के माध्यम से पीड़ित की व्यथा का निराकरण एवं आरोपी के विरूद्ध कार्यवाही की अनुशंसा करना ।
अन्वेषणों में तत्परता एवं निष्पक्षता को बनाये रखना । अधिकार क्षेत्र में आने वाले संगठनोंध्विभागों में जवाबदेही सुनिश्चित करना। अपने कार्य के निष्पादन में निपुणता को बनाये रखना । जन जन की समस्याओं से स्वयं को सम्बद्ध रख लक्ष्य के प्रति समर्पित रहना । किसी भी लोक सेवक, राजनीति पदाधिकारी के खिलाफ शिकायत प्राप्त करना। लोक सेवकों के कृत्यों के विरुद्ध भी शिकायत मिलने पर जांच कर सकता है। जैसे – लोक सेवक द्वारा किसी को हानि पहुंचाना। स्वत: संज्ञान लेकर भी जांच प्रारंभ कर सकता है। |
लोकायुक्त की शक्तियां
- लोक सेवक या उसके विभाग से जांच हेतु दस्तावेज मंगवाना।
- लोक सेवक से शपथ पत्र लेना।
- जांच के दौरान किसी भी व्यक्ति विशेष या लोक सेवक को लोकायुक्त कार्यालय में बुला सकता है।
- उच्च न्यायालय से किसी भी प्रकार के अभिलेख की प्रतिलिपि मांग सकता है।
लोकायुक्त की सीमाएं या आलोचनाएं
- बहुत से लोक सेवक एवं पदाधिकारी अभी भी लोकायुक्त की जांच के दायरे से बाहर है। जैसे – मुख्यमंत्री, महालेखाकार, विधायक, सरपंच, पंच।
- लोकायुक्त की रिपोर्ट पर सदन में उचित चर्चा नहीं होती है।
- स्वयं की जांच एजेंसी का अभाव।
- कर्मचारियों की कमी।
लोकायुक्त को सशक्त बनाने के सुझाव
- सभी लोक सेवक एवं पदाधिकारियों को लोकायुक्त की जांच के दायरे में लाया जाए।
- इसकी सिफारिशों को सरकार द्वारा गंभीरता से लिया जाए।
- किसी भी लोक सेवक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश करने पर सरकार द्वारा तत्काल कार्यवाही की जानी चाहिए।
- लोकायुक्त का स्वयं का जांच तंत्र विकसित किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि राजस्थान सरकार द्वारा 28 फरवरी 2014 को मौजूदा लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन कर इसे सशक्त तथा प्रभावी बनाने हेतु महाधिवक्ता नरपत मल लोढा की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया।
अक्टूबर 2020 में लोकपाल के अध्यक्ष पिनाकी चंद्र घोष ने कहा कि लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून 2013 में पुनर्विचार का व्यापक अधिकार नहीं है। अर्थात लोकपाल की ओर से पारित किसी आदेश पर पुनर्विचार की याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि लोकपाल के पास उसके आदेशों पर पुनर्विचार या समीक्षा की मांग करने वाली कई शिकायतें आ रही है। सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए लोकपाल और लोकायुक्त का गठन किया गया था। लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसका गठन एक चेयरपर्सन और अधिकतम 8 सदस्यों से हुआ है। |
कमियाँ:
- लोकायुक्त की सिफारिशें केवल सलाहकारी होती हैं, वे राज्य सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं होती हैं।
- अधिकांश राज्यों में लोकायुक्त किसी अनुचित प्रशासनिक कार्रवाई के खिलाफ नागरिकों द्वारा की गई शिकायत के आधार पर या स्वयं जाँच प्रारंभ कर सकता है परंतु असम, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में वह स्वयं जाँच की पहल नहीं कर सकता।
लोकपाल एवं लोकायुक्त से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न राजस्थान में लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम 1973 पारित किया गया ? –3 फरवरी1973 लोकपाल शब्द सर्वप्रथम किसने दिया ? –डॉ. एल. एम. सिंघवी राजस्थान के प्रथम लोकायुक्त कौन थे ? –न्याय मूर्ति आई डी दुआ राजस्थान के प्रथम तथा एकमात्र उप-लोकायुक्त कौन थे ? –के पी यू मेनन भारत के किस राज्य में सबसे पहले लोकायुक्त की स्थापना की गई ? –महाराष्ट्र लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य हो सकते हैं। लोकपाल के 50% सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होंगे। |