Rajasthan Ke Pratik Chinh I राजस्थान के प्रतीक चिन्ह

Rajasthan Ke Pratik Chinh I राजस्थान के प्रतीक चिन्ह: आज के आर्टिकल में हम राजस्थान के प्रतीक चिन्ह (Rajasthan ke Pratik Chinh ) के बारे में जानेंगे। आज का हमारा यह आर्टिकल परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी होने वाला है। राजस्थान के प्रतीक चिन्हो से सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी यहाँ दी गई है।

राजस्थान के प्रतीक चिन्ह-https://myrpsc.in

राजस्थान के प्रतीक चिन्ह
राज्य वृक्ष – खेजड़ी
राज्य पुष्प – रोहिडा का फुल
राज्य पशु – चिंकारा, ऊँट
राज्य पक्षी – गोेडावण
राज्य गीत -“केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश।”
राजस्थान का राज्य नृत्य – घुमर
राज्य शास्त्रीय नृत्य – कत्थक
राजस्थान का राज्य खेल – बास्केटबाॅल

राज्य पक्षी- गोडावण

राज्य पक्षी गोडावण को 1981 में राज्य पक्षी घोषित किया गया। इसे सामान्य भाषा में ‘माल मोरड़ी’ कहा जाता है। अंग्रेजी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एवं हिंदी में सोहन चिड़िया या हुकना या गुधनमेर के नाम से भी जाना जाता नाम है। जिसका वैज्ञानिक नाम “कोरियोटिस नाइग्रीसेप्स” (Ardeotis nigriceps) है।

उड़ने वाले पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी पक्षी है। बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। गोडावण को सारंग, कुकना, तुकदर, बडा तिलोर के नाम से भी जाना जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला स्वभाव का है।

यह जैसलमेर के मरू उद्यान, सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र सर्वाधिक में पाया जाता है। राष्ट्रीय मरु उद्यान (डेज़र्ट नेशनल पार्क) को गोडावण की शरणस्थली भी कहा जाता है।  जैसलमेर की सेवण घास (Lasiurus sindicus) इसके लिए उपयुक्त है।

  • गोडावण के प्रजनन के लिए जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है।
  • इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों पर प्रकाशित होने वाली रेड डाटा पुस्तिका (बुक) में इसे ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’  श्रेणी में  रखा गया है।
  • गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर-नवम्बर का महिना माना जाता है।यह मुलतः अफ्रीका का पक्षी है।इसका ऊपरी भाग का रंग नीला होता है व इसकी ऊँचाई 4 फुट होती है।इनका प्रिय भोजन मूगंफली व तारामीरा है।गोडावण को राजस्थान के अलावा गुजरात में भी सर्वाधिक देखा जा सकता है।

राज्य वृक्ष – खेजड़ी

राजस्थान के राजकीय वृक्ष खेजड़ी को 31 अक्टूबर,1983 में राज्य वृक्ष घोषित किया गया। राजकीय वृक्ष खेजड़ी पश्चिम राजस्थान में सर्वाधिक पाया जाता है। जो अधिक उपयोगी होने के कारण इसे राजस्थान का “कल्पवृक्ष या कल्पतरू”/ “रेगिस्तान का गौरव” अथवा “थार का कल्पवृक्ष” नाम से भी जाना जाता है। वनस्पति विज्ञान के लेग्यूमेनेसी फैमिली (कुल) के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ‘‘प्रोसोपिस सिनेरेरिया‘ है।

  • खेजड़ी को पंजाबी व हरियाणावी में जांटी व तमिल भाषा में पेयमेय कन्नड़ भाषा में बन्ना-बन्नी, सिंधी भाषा में – धोकड़ा नाम से भी जानते है। स्थानीय भाषा में सीमलो कहते हैं। वेदों एवं उपनिषदों में खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से वर्णित किया गया है।
  • खेजड़ी वृक्ष की विजयाशमी/दशहरे पर पुजा की जाती है। खेजड़ी के वृक्ष के निचे गोगाजी व झुंझार बाबा का मंदिर/थान बना होता है।
  • इसके फूल को मींझर तथा हरी फली-सांगरी (जिसकी सब्जी बनाई जाती है।), सुखी फली- खोखा, व हरी पत्तियों से बना चारा लुंग/लुम कहलाता है।
  • इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है।
  • खेजड़ी वृक्ष को सेलेस्ट्रेना(कीड़ा) व ग्लाइकोट्रमा(कवक) नामक दो किड़े नुकसान पहुँचाते है।
  • राजस्थान में खेजड़ी के 1000 वर्ष पुराने 2 वृक्ष मिले है।(मांगलियावास गाँव, अजमेर में)
  • खेजड़ी के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान अमृतादेवी के द्वारा सन 1730 में दिया गया। 12 सितम्बर को प्रत्येक वर्ष खेजड़ली दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रथम खेजड़ली दिवस 12 सितम्बर 1978 को मनाया गया था।

राज्य पुष्प – रोहिडा का फुल

राज्य पुष्प रोहिडा के फुल को सरकार द्वारा 1983 में राज्य पुष्प घोषित किया गया। रोहिडा के फुल को राजस्थान की “मरूशोभा” या “रेगिस्थान का सागवान” भी कहते है। इसे वैज्ञानिक भाषा मे “टिको-मेला अंडुलेटा” से नाम भी जाना जाता है।

रोहिड़ा सर्वाधिक राजस्थान के पष्चिमी क्षेत्र में पाया जाता है। रोहिडे़ के पुष्प मार्च-अप्रैल के महिने मे खिलते है।इन पुष्पों का रंग गहरा केसरिया-हीरमीच पीला होता है।

यह मारवाड़ टीक के नाम से भी जाना जाता है।रोहिड़ा का वृक्ष राजस्थान के शेखावटी व मारवाड़ अंचल में इमारती लकड़ी का मुख्य स्रोत है। रेत के धोरों के स्थिरीकरण के लिए यह वृक्ष बहुत उपयोगी है।

राज्य पशु – चिंकारा

राज्य पशु चिंकारा को 1981 में राज्य पशु घोषित किया गया।  चिंकारा मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में पाया जाता हैं। देखने में यह हिरण जैसा ही होता हैं। इसलिए इसे छोटा हिरण के उपनाम से भी जाना जाता है। यह “एन्टीलोप” प्रजाती का एक मुख्य जीव है।

इसका वैज्ञानिक नाम गजैला-गजैला है। चिकारों के लिए नाहरगढ़ अभ्यारण्य (जयपुर) प्रसिद्ध है। राजस्थान का राज्य पशु ‘चिंकारा’ सर्वाधिक ‘मरू भाग’ में पाया जाता है।

यह विभिन्न ऋतुओं के अनुसार अपना रंग बदलता रहता हैं. यह शर्मिला स्वभाव का प्राणी है

  • चिंकारा को वन्य श्रेणी में रखा गया हैं।

राज्य पशु ऊँट

ऊँट को राजस्थान का राज्यपशु 2014 में घोषित किया गया।  इसे रेगिस्तान का जहाज भी कहते हैं। ऊँट कैमुलस जीनस के अंतर्गत आने वाला एक खुरधारी जीव है।

  • ऊँट को पालतू पशु श्रेण में रखा जाएगा।

ऊँट काफी लम्बे समय तक बिना पानी जीवित रह सकता है।   ऊँटनी के दूध में बहुत सारा आइरन, विटामिन और मिनरल पाया जाता है।

राज्य नृत्य – घूमर

इसका विकास भील जनजाति ने मां सरस्वती की आराधना करने के लिए किया था। घूमर (केवल महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य) इसे राज्य नृत्यों का सिरमौर (मुकुट) राजस्थानी नृत्यों की आत्मा कहा जाता है।

इस नृत्य में महिलाएं एक बड़ा घेरा बनाते हुए अन्दर और बाहर जाते हुए नृत्य करती हैं।

घूमर प्रायः विशेष अवसरों जैसे कि विवाह समारोह, त्यौहारों और धार्मिक आयोजनों पर किया जाता है।

राज्य गीत -“केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश।”

इस गीत को पहली बार उदयपुर निवासी मांगी बाई के द्वारा गाया गया। इस गीत को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बीकानेर की अल्ला जिल्ला बाई के द्वारा गाया गया। अल्ला जिल्ला बाई को राज्य की मरूकोकिला कहते है। अल्ला जिल्ला बाई के द्वारा इस गीत को “मांड राग” मे सर्वाधिक बार गाया गाया ।


राज्य का शास्त्रीय नृत्य – कत्थक

भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की प्रसिद्ध शैलियों में से एक है। कत्थक उत्तरी भारत का प्रमुख नृत्य है। इस नृत्य को ‘नटवरी नृत्य’ के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर भारत में मुग़लों के आने पर इस नृत्‍य को शाही दरबार में ले जाया गया

कत्थक के जन्मदाता भानू जी महाराज को माना जाता है।

कत्थक नृत्‍य में पखवाज (एक प्रकार का तबला जो उत्तर-भारतीय शैली में उपयोग आता है) का इस्तेमाल होता है।

घराना

  • लखनऊ घराना: अवध के नवाब वाजिद आली शाह के दरबार में इसका जन्म हुआ।
  • जयपुर घराना: राजस्थान के कच्छवा राजा के दरबार में इसका जन्म हुआ। यह कथक का प्राचीनतम घराना है।
  • बनारसघराना: जानकीप्रसाद ने इस घराने का प्रतिष्ठा किया था।
  • रायगढ़ घराना:  छत्तीसगढ़ के महाराज चक्रधार सिंह इस घराने का प्रतिष्ठा किया था।

राज्य खेल – बास्केटबॉल

राज्य खेलबास्केटबॉल को राज्य खेल का दर्जा 1948 में दिया गया।

बास्केटबॉल एक टीम खेल है, जिसमें 5 सक्रिय खिलाड़ी वाली दो टीमें होती हैं, जो एक दूसरे के खिलाफ़ एक 10 फुट (3.048 मीटर) ऊंचे घेरे (गोल) में, संगठित नियमों के तहत एक गेंद डाल कर अंक अर्जित करने की कोशिश करती हैं। बास्केटबॉल को मूलतः एक सॉकर गेंद के साथ खेला जाता था।

राज्य का लोक वाद्य – अलगोजा

अलगोजा- यह प्रसिद्ध फूँक वाद्य बाँसुरी की तरह का होता है। इसे रामसोर नाम से जाना जाता है। इसमें दो बांसुरियों को साथ-साथ मुँह में लेकर बजाया जाता है।

अलगोजा वाद्य यंत्र राजस्थान के बाड़मेर के राणका फकीरों के द्वारा भी बजाया जाता है।

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