मेवाड़ चित्रकला शैली

मेवाड़ चित्रकला शैली: नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान की चित्रकला के अंतर्गत मेवाड़ चित्रकला शैली के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

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यह राजस्थान की चित्रकला की मूल व सबसे प्राचीन शैली हैं, इस चित्रशैली का आरम्भ महाराणा कुम्भा के काल से हुआ, इसलिए महाराणा कुम्भा को राजस्थान में चित्रकला का जनक कहा जाता है।

मेवाड़ चित्रकला शैली में उदयपुर शैली,  नाथद्वारा शैली, चावण्ड शैली, देवगढ़ शैली, शाहपुरा शैली मुख्यत: शामिल की जाती हैं।

उदयपुर चित्रकला शैली

राजस्थानी चित्रकला की मूल शैली है। शैली का प्रारम्भिक विकास कुम्भा के काल में हुआ। इस समय नसीरुद्दीन ने ढोला मारु का चित्र बनाया था। इसी समय बारहमासा का चित्रण किया गया। 

  • जगत सिंह प्रथम (1628-52) का काल मेवाड़ की चित्रकला का स्वर्ण काल था। साहिबुद्दीन नामक चित्रकार महाराणाओं के व्यक्तिगत चित्र किया करता था।
  • जगत सिंह प्रथम ने चित्रों की ओबरी  का निर्माण करवाया जिसे तस्वीरां रो कारखानों  भी कहा जाता है।
  • सन 1260-61 ई. में मेवाड़ के महाराणा तेजसिंह के काल में इस शैली का प्रारम्भिक चित्र श्रावक प्रतिकर्मण सूत्र चूर्णि आहड़ में चित्रित किया गया। जिसका चित्रकार कमलचंद था।
  • सन् 1423 ई. में महाराणा मोकल के समय सुपासनह चरियम/ सुपार्श्वनाथ चरित नामक चित्र चित्रकार हिरानंद के द्वारा चित्रित किया गया।
  • विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतन्त्र नामक ग्रन्थ में पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से मानव जीवन के सिद्वान्तों को समझाया गया है।
  • पंचतन्त्र का फारसी अनुवाद “कलिला दमना” है, जो एक रूपात्मक कहानी है। इसमें राजा (शेर) तथा उसके दो मंत्रियों (गीदड़) कलिला व दमना का वर्णन किया गया है।
  • संग्राम सिंह द्वितीय के समय कलिला- दमना और मुल्ला दो प्याजा  के लतीफों के चित्र बनाए गए। 
  • चित्रित ग्रन्थआर्श रामायण – मनोहर व साहिबदीन द्वारा।  गीत गोविन्द – साहबदीन द्वारा।
  • इस शैली में रामायण, महाभारत, रसिक प्रिया, गीत गोविन्द, बिहारी सतसई इत्यादि ग्रन्थों पर चित्र बनाए गए। मेवाड़ चित्रकला शैली पर गुर्जर तथा जैन शैली का प्रभाव रहा है।

मुख्य चित्रकार– नसीरुद्दीन, साहिबुद्दीन, मनोहर, कृपा राम, गंगाराम जगन्नाथ, नूरुद्दीन आदि।

विशेषताएं:
लाल व पीले रंगों का अधिक प्रयोग किया जाता है।
शिकार के दृश्यों में त्रिआयामी प्रभाव दिखाई देता है।
कदंब के वृक्ष अधिक बनाए गए हैं।

नाथद्वारा शैली: 

इस चित्रकला शैली पर वल्लभ संप्रदाय का प्रभाव है। श्रीनाथजी को यहां कृष्ण का प्रतीक मानकर पूजा की जाती थी इसी कारण कृष्ण लीलाओं को चित्रों में अंकित करने की प्रथा प्रचलित हुई। यहां स्थित श्री नाथ जी मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराजा राजसिंह न 1671-72 में करवाया था।

  • वल्लभ संप्रदाय के मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के पीछे दीवारों या कपड़े के परदे पर कृष्ण लीलाओं का चित्रण किया जाता था जिसे पिछवाई कहते हैं।
  • इस चित्रकला शैली का विकास मथुरा के कलाकारों द्वारा किया गया।
  • महाराजा राजसिंह का काल इस शैली का स्वर्ण काल कहलाता है।
  • पिछवाई चित्रण में केले के वृक्ष अधिक बनाए जाते थे। वर्तमान में इस शैली से संबंधित है संघ के चित्र व्यवसायिक दृष्टि से कपड़े व कागज पर बनने लगे हैं। नाथद्वारा में भित्ती चित्रण में आला गीला फ्रेस्को शैली का उपयोग किया गया है।
  • कमला व इलायची नाथद्वारा शैली की प्रसिद्ध महिला चित्रकार हैं।
चित्रित विषय – श्री कृष्ण की बाल लीलाऐं, गवालों का चित्रण, यमुना स्नान, अन्नकूट महोत्सव आदि।
चित्रकार – खेतदान, नारायण, घासीराम, चतुर्भुज, उदयराम, खूबीराम आदि।

चावण्ड शैली

  • महाराणा प्रताप के समय छप्पन की पहाड़ियों  स्थित राजधानी चावंड से मेवाड़ चित्रकला प्रारंभ हुई।
  • स्वर्णकाल -अमरसिंह प्रथम का काल माना जाता है।
  • चित्रकार – नसीरदीन(नसीरूद्दीन) इस शैली का चित्रकार हैं
  • अमर सिंह के समय राग माला का चित्रण नसीरुद्दीन ने किया।

देवगढ़ शैली:

महाराणा जयसिंह के राज्यकाल में रावत द्वारिका दास चूँडावत ने देवगढ़ ठिकाना 1680 ई. में स्थापित किया। द्वारिका दास चुंडावत के समय देवगढ़ शैली का प्रारंभ हुआ।

इस शैली में शिकार हाथियों की लड़ाई राज दरबार के दृश्यों के चित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

  • यहाँ के सामंत “सौलहवें उमराव” कहलाते थे।
  • इस शैली को मेवाड़, मारवाड़ व ढूंढाड़ की समन्वित शैली के रूप में देखा जाता है। इस शैली के भित्ति चित्र अजारा की ओबरी ,मोती महल आदि में देखने को मिलते हैं।

इस शैली में हरे व पीले रंगों का प्रयोग अधिक हुआ है।

इस शैली के भित्ति चित्र “अजारा की ओवरी“, “मोती महल” आदि में देखने को मिलते हैं।

चित्रकार – बगला, कंवला, चीखा/चोखा, बैजनाथ आदि।

NOTE: देवगढ़ चित्र शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय डॉ. श्रीधर अंधारे को दिया जाता है।

शाहपुरा शैली:

  • यह शैली भीलवाडा जिले के शाहपुरा कस्बे में विकसित हुई।
  • शाहपुरा की प्रसिद्ध कला फड़ चित्रांकन में इस चित्रकला शैली का प्रयोग किया जाता है। फड़ चित्रांकन में यहां का जोशी परिवार लगा हुआ है।
  • श्री लाल जोशी, दुर्गादास जोशी, पार्वती जोशी (पहली महिला फड़ चित्रकार) आदि
  • चित्र – हाथी व घोड़ों का संघर्ष (चित्रकास्ताजू)

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